जल संसाधनों के प्रबंधन, आपूर्ति और स्वामित्व में सरकार के लिए पानी के विषय में संवैधानिक अधिकारों को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। वर्तमान में, जल का अधिकार भारत में न्यायालयों के विभिन्न निर्णयों के माध्यम से ही निर्धारित किया जा रहा है। कई अदालती मामलों में दोहराया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के रूप में सरकार द्धारा देश के सभी नागरिकों को पीने का पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। अब तक सरकार ने पानी के प्रबंधन और वितरण के लिए मार्गदर्शक निर्देशन के रूप में तीन राष्ट्रीयजल नीतियां बनाई हैं।
जल का उपयोग सभी क्षेत्रों द्धारा किया जाता है, चाहे वह कृषि, उद्योग, वाणिज्यिक सेवाएं और आवासीय क्षेत्र हो। हालांकि ये सभी क्षेत्र एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं, परन्तु व्यक्तिगत और घरेलू उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता एक मानव अधिकार है। प्रत्येक मनुष्य को पानी का अधिकार है, जो पर्याप्त, सुरक्षित, स्वीकार्य, भौतिक रूप से सुलभ और वहनीय हो। भारत के शहरों में पानी के लिए मानव अधिकार एक बढ़ती हुई चुनौती है, जो तेजी से शहरीकरण के साथ साथ, बुनियादी सेवाओं में गुणवत्ता के लिए नागरिकों की अधीरता का कारण भी है। 2019 तक, केवल दो करोड़ घरों में पानी के लिए नल के कनेक्शन थे, यह संख्या बढ़कर लगभग नो करोड़ घरों में नल के द्धारा पानी की उपलब्धता हो गई है। बेशक, किसी के घर में या उसके आस पास केवल नल से पानी का स्रोत होना अच्छी गुणवत्ता या पर्याप्त मात्रा में पानी की कोई गारंटी नहीं है, फिरभी हर घर जल की योजना अति महत्वपूर्ण हे।
जहां बुनियादी पहुंच ही नहीं है, वहां स्वच्छता का आश्वासन नहीं दिया जा सकता है। इसलिए पानी और स्वास्थ्य क्षेत्रों के लिए बुनियादी स्तर की पहुंच प्रदान करना सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। पानी की आपूर्ति के लिए लोगों को बहुत और प्रयास करना पड़ता है। घर से दूरी पर पानी का स्रोत, कपड़े धोने, नहाने आदि जैसी गतिविधियों को सुनिश्चित नहीं कर सकता है। पीने के पानी के लिए भी असमानता देखी जाती है इसलिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ के लिए, पानी की उपलब्धता और उसका विस्तार किया जाना आवश्यक है।
भारत में पानी एक भावनात्मक मुद्दा है। बढ़ती आबादी, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण पानी की मांग लगातार बढ़ रही है जबकि पानी का उपलब्ध स्तर स्थिर बना हुआ है। विभिन्न उपभोगकर्ताओं, उपयोगों, क्षेत्रों और राज्यों के बीच संघर्ष नियमित चलता रहता है।
हालांकि भारत के संविधान में पानी के अधिकार को स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन अदालतों द्धारा इसकी व्याख्या की गई है कि जीवन के अधिकार में संरक्षित और पर्याप्त पानी का अधिकार शामिल है। अधिकांश देशों के राष्ट्रीय कानून में पानी के अधिकार के स्पष्ट संदर्भ की कमी के कारण अदालतों के माध्यम से ही इस अधिकार को समावेश करने की आवश्यकता होती है। इसलिए कई देशों में पानी के विषय को पर्यावरण या सार्वजनिक स्वास्थ्य कानून के तहत लाया गया है। अदालतों ने अन्य संवैधानिक अधिकारों, जैसे जीवन के अधिकार या स्वस्थ पर्यावरण के तहत पानी के अधिकार की भी व्याख्या की है।
भारत में जल के अधिकार के लिए न्यायिक दृष्टिकोण, स्पष्ट रूप से सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों के पानी के अधिकार को आश्रय देने के आग्रह को दर्शाता है, जिससे गरीब से गरीब व्यक्ति को जीवन की बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जा सकें। स्वच्छ पेयजल तक पहुंच का संवैधानिक अधिकार भोजन के अधिकार, स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार और स्वास्थ्य के अधिकार से लिया जा सकता है, ये सभी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित हैं। संविधान अनुच्छेद 21 के अलावा, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 39ब में भी समुदाय के भौतिक संसाधनों पर समाज के सभी वर्गों के लिए समान पहुंच के सिद्धांत को मान्यता दी गई है।
भारत में भूजल के अधिकार को भूमि के अधिकार के पालन के रूप में देखा जाता है। भारतीय सुगमता अधिनियम, 1882, भूजल के स्वामित्व को भूमि के स्वामित्व से जोड़ता है और यह कानूनी स्थिति तब से ही बरकरार है। लेकिन अधिकार की परिभाषा बताती है कि यदि आपका पड़ोसी बहुत अधिक पानी निकालता है और जल स्तर को कम करता है, तो आपको उसे ऐसा करने से रोकने का अधिकार है। इस प्रकार, भूजल के दोहन के किसी व्यक्ति के अधिकार की भी सीमाएं हैं।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में, 28 जुलाई 2010 को संकल्प 64/292 के माध्यम से, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने स्पष्ट रूप से पानी और स्वच्छता प्रदान करने के मानव अधिकार को मान्यता दी हे, और स्वीकार किया है कि स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता का अधिकार मानवाधिकारों की प्राप्ति के लिए आवश्यक हैं। यह संकल्प राज्यों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से सभी के लिए सुरक्षित, स्वच्छ, सुलभ और किफायती पेयजल और स्वच्छ जीवन प्रदान करने के लिए देशों से, विशेष रूप से विकासशील देशों की मदद करने के लिए वित्तीय संसाधन, क्षमता निर्माण और आह्वान हस्तांतरण प्रदान करने का आह्वान करता है।
भारत में जल अधिकारों और कानूनों का दायराव्यापक हो गया है और भारतीय न्यायपालिका द्धारा एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मानकों को दर्शाता है। भारतीय संविधान की समीक्षा करने वाले राष्ट्रीय आयोग ने अपनी रिपोर्ट में संवैधानिक प्रावधान द्धारा स्पष्टता लाने के लिए सुरक्षित पेयजल के अधिकार के रूप में एक नए अधिकार को शामिल करने की सिफारिश भी की हे। राष्ट्रीय जल कानून 2016 सही दिशा में एक कदम था, लेकिन दुर्भाग्य से यह संसद में पास नहीं हो पाया। पानी के प्रावधान के लिए विभिन्न सरकारों और संस्थाओं के अधिकारों और कर्तव्यों को स्पष्ट रूप से रखने वाला एक कानून समय की आवश्यकता है।
पानी के मूल्य निर्धारण संरक्षण एवं केहाशिएवर्ग की खपत
भारत पानी की कमी वाला देश नहीं है। हमारे पास पानी की पर्याप्त उपलब्धता है। फिर भी, हमारे दैनिक जीवन में हम इस उपलब्धता को महसूस नहीं करते हैं। मुद्दा जल संसाधनों का अकुशल वितरण और प्रबंधन, विशेष रूप से शहरी जल प्रबंधन है।
पानी, जीवन के लिए आवश्यक होने के कारण, एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है और इसकी चुनौतियां और विभिन्न आयाम हैं, जैसे समान पहुंच, प्रतिस्पर्धी उपयोगए गुणवत्ता के मुद्दे, विकास के साथ विस्थापन, व्यावसायीकरण, निजीकरण, शहरीकरण और अंतर-राज्यीय संघर्ष। सरकार के पास इन मुद्दों के समाधान की बड़ी चुनौती है।
घरेलू पानी का उपयोग गरीब परिवार के जीवन यापन का एक अभिन्न अंग है। यह गरीबी उन्मूलन का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। पानी और स्वास्थ्य सेवाओं को बुनियादी स्तर तक पहुंचाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। सभी नीतिगत निर्णयों का लक्ष्य हैं की पर्याप्त स्तर पर जल संसाधन मिलने वाले घरों की संख्या में वृद्धि करना और हाशिए के वर्गों की खपत पर विशेष ध्यान केंद्रित करना।
पूर्ववर्ती सर्वे के अनुसार प्रति व्यक्ति घरेलू पानी की खपत और भारतीय मानक (BIS), 2001, दिल्ली मास्टर प्लान, केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग और पर्यावरण संगठन, और जापान इंटरनेशनल द्धारा दिए गए अनुशंसित मानदंडों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण में कम आय वाले क्षेत्रों में खपत की धूमिल तस्वीर दिखाई देती है।
श्इंडिया-अर्बन स्लम सर्वे: (एनएसएस), 69 वें राउंड’ के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर, हालांकि स्लम क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों में पीने के पानी का स्रोत बढ़ा हुआ दिखता है,
लेकिन दूसरी ओर, गैर-झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के पीने के पानी के बेहतर स्रोत का प्रतिशत उस के अनुपात से काफी अधिक दिखता है। इससे पता चलता है कि समाज के आर्थिक रूप से निचले और ऊपरी तबके के बीच पानी की उपलब्धता और उपयोग में असमानता बढ़ रही है।
वर्तमान सरकार की जल जीवन मिशन योजना लगभग देश में सभी उन्नीस करोड़ घरों को नल के द्धारा पानी उपलब्ध कराने: हर घर की महत्वपूर्ण पहल है और संविधान के अंतर्गत सरकार की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसे हासिल करने से पहले हमें और भी बहुत कुछ कार्य करना होगा। पानी की गुणवत्त्ता, उसका मूल्य और मात्रा सुनिस्चित करना होग।
नीति स्तर पर प्रतिस्पर्धी विचारधाराएं और विभाजित विचार हैं, विशेष रूप से मूल्य निर्धारण और संरक्षण को लेकर स्पष्टता नहीं है, हमें पानी के विषय पर गहन चर्चा और पारदर्शिता की आवश्यकता है। व्यक्तियों या घरों के व्यावहारिक उपभोग पर पानी के मूल्य निर्धारण के प्रभाव के संबंध में विविध विचार चल रहे हैं। पानी जैसे घरेलू उपभोग्य वस्तुओं की कीमत के प्रभाव पर कई अध्ययनों से पता चलता है कि उपभोग पूरी तरह मूल्य पर आधारित नहीं है। इस अंतर्निहित असमानता के बावजूद भी कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कीमत एक अच्छा जल-मांग प्रबंधन उपकरण हो सकता है। आर्थिक सिद्धांत के आधार पर कीमतों में वृद्धि के साथ अधिकांश वस्तुओं की मांग की मात्रा कम हो जाती है, कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि कुशल जल प्रबंधन के लिए स्पष्ट मूल्य संकेतों की आवश्यकता होती है जो घरों में पानी के कुशल उपयोग के लिए प्रोत्साहन प्रदान करते हैं ओर परिणामस्वरूप पानी की प्रतिस्पर्धी मांगो के बीचकुशल आवंटन भी होता है।
हम ये जानते हे की, कीमत के बारे में जागरूकता और घरों द्धारा पानी की कीमत में बदलाव के आधार पर उपभोग में बदलाव, मूल्य संवेदनशीलता को मापने के लिए एक संकेतक माना जाता हैए लेकिन हमारे वर्तमान अध्ययन में पाया गया है कि कम आय वाले लगभग 90 प्रतिशत घरों की खपत पानी के मूल्य बढ़ने से कम नहीं होगी, क्यूंकी मूल रूप से उन घरों में पानी के उपभोग का स्तर पहले से ही आवश्यकता के अनुपात में बहुत कम पाया गया है। पानी पर खर्च की गई ब्यक्तिगत आय कुल आय के अनुपात को एक और पैरामीटर माना जाता है। प्राथमिक आंकड़ों का उपयोग करते हुए हमारे अध्ययन की गणना के अनुसार पानी पर खर्च की गई मात्रा आय के अनुपात का 4.93 प्रतिसत ही है, जिसका अर्थ है कि घरों में पानी के उपभोग पर खर्च मात्रा उनके कुल आय के अनुपात में बहत कम है। इसलिए परिवारों में पानी का उपयोग पानी की कीमत पर कम आधारित हैं। और जैसे जैसे हम निम्न आय वर्ग से उच्च आय वाले उपनिवेशों में जाते हैं, उनका पानी पर खर्च की जाने वाली आय का अनुपात ओर भी कम हो जाता ह। इसलिए निम्न आय वर्ग की कीमतों की संवेदनशीलता उच्च आय समूहों की तुलना में कहीं अधिक है। जिससे यह स्पष्ठ होता है की कीमतो का पानी की खपत पर प्रभाव हाशिए पर रहनेवाली वर्ग पर ही अधिक होगा।
निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि पानी की खपत की मांग अत्यधिक मूल्य-संवेदी नहीं है। मुख्य कारण यह है कि लोग पानी का उपयोग एक आवश्यकता के रूप में देखते हैं, न कि एक विलासिता के रूप में। इसका तात्पर्य यह भी है कि कीमत बढ़ाने से घरेलू पानी की खपत में उल्लेखनीय कमी नहीं आ सकती है। घरेलू जल उपभोक्ताओं द्वारा भुगतान करने की सहमति के आधार पर अधिकांश साहित्य, पानी के बाजार मूल्य को उचित ठहराते हैं। लेकिन इन अध्ययनों में एक महत्वपूर्ण पहलू नजरअंदाज किया गया है कि कमी की स्थिति में भुगतान करने की इच्छा हमेशा आवश्यकताओं के लिए बनी रहेगी। पानी जैसे आवश्यक तत्वों से संबंधित नीतियों को डिजाइन करने में सामर्थ्य को ही अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए। पानी का मूल्य निर्धारण एक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय है। जिससे उच्च आय वर्ग की तुलना में गरीबवर्ग ही अधिक प्रभावित होंगे।
घर में पानी की बर्बादी को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है घर में पानी बचाने के उपायों के बारे में जागरूकता फैलाना। लापरवाही से पानी के उपयोग के परिणामों के बारे में लोगों में जागरूकता पैदा करने से लोगों को हम इस संसाधन का सही उपयोग करने में अधिक संवेदन शील होने में मदद मिलेगी। कुछ जल प्रबंधन के कुशल उपकरण जैसे कम प्रवाह वाले शावर और नल, दोहरी फ्लशिंग प्रणाली, कपड़े और बर्तन धोने के लिए पानी की बचत करने वाले उपकरण या पुनर्वास कॉलोनियों में सामूहिक नल आदि भी संरक्षण में बहुत मदद कर सकते है।
इस श्रृंखला में, हमने पानी के अधिकार, संरक्षण और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों की खपत ओर पानी के मूल्य निर्धारण के प्रभाव को देखा। हमारी सरकार सभी के लिए पानी की उपलब्धता का प्रयास करती है और लागत वसूली के लिए मूल्य निर्धारण और इसके अत्यधिक उपयोग को रोकने में संतुलन बनाती है।
पानी जीवन कातत्व: हाशिए के वर्ग की मूल्य संवेदनशीलता और खपत
के लेखक
इस श्रृंखला में, हमने पानी के अधिकार, संरक्षण और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों की खपत ओर पानी के मूल्य निर्धारण के प्रभाव को देखा। हमारी सरकार सभी के लिए पानी की उपलब्धता का प्रयास करती है और लागत वसूली के लिए मूल्य निर्धारण और इसके अत्यधिक उपयोग को रोकने में संतुलन बनाती है।
इस श्रृंखला में, हमने पानी के अधिकार, संरक्षण और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों की खपत ओर पानी के मूल्य निर्धारण के प्रभाव को देखा। हमारी सरकार सभी के लिए पानी की उपलब्धता का प्रयास करती है और लागत वसूली के लिए मूल्य निर्धारण और इसके अत्यधिक उपयोग को रोकने में संतुलन बनाती है।
पानी जीवन कातत्व: हाशिए के वर्ग की मूल्य संवेदनशीलता और खपत
के लेखक
गोपाल कृष्ण अग्रवाल (अध्यक्ष जलाधिकार फाउंडेशन और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता)
युथिका अग्रवाल (सहायक प्रोफेसर, अर्थशास्त्र, दिल्ली विश्वविधालय)