पानी का मूल्य बढ़ने पर नहीं महत्व समझने पर रहे ध्यान

गोपालकृष्ण अग्रवाल, 

आर्थिक विषज्ञ

भारत पानी की कमी वाला देश नहीं है। हमारे पास पानी की पर्याप्त उपलब्धता है। फिर भी हमारे दैनिक जीवन में हम इस उपलब्धता को महसूस नहीं करते हैं और हमारे देश का बड़ा वर्ग शुद्ध पानी से वंचित है। कारण ऐतिहासिक रूप से जल संसाधनों का अकुशल वितरण और प्रबंधन है। पानी जीवन के लिए आवश्यक होने के कारण एक बहुत ही संवेदनशील विषय है और इसकी अनेक चुनौतियां और विभिन्न आयाम है। जरूरी है कि यह सभी तक समान रूप से उपलब्ध हो, इसका सही उपयोग हो, अच्छी गुणवत्ता हो। इसके साथ ही आंतरिक विस्थापन, व्यावसाईकरण, निजीकरण, शहरीकरण और अंतरराज्यीय संघर्ष भी इससे जुड़े हैं। सरकार के पास इन मुद्दों के समाधान की बड़ी चुनौती है।

घरेलू पानी का उपयोग गरीब परिवार के जीवनयापन का भी एक अभिन्न अंग क है। पानी और स्वास्थ्य सेवाओं को ब बुनियादी स्तर तक पहुंचाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। पूर्ववर्ती सर्वे के मि अनुसार प्रति व्यक्ति घरेलू पानी की खपत क और भारतीय मानक (बीआइएस), क 2001, दिल्ली मास्टर प्लान, केंद्रीय है सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग और प्र पर्यावरण संगठन और जापान म इंटरनेशनल द्वारा दिए गए अनुशंसित ह मानदंडों के बीच तुलनात्मक विश्लेषण में क कम आय वाले क्षेत्रों में खपत की धूमिल तस्वीर दिखाई देती है।

इंडिया-अर्बन स्लम सर्वे (एनएसएस), 69 वें राउंड के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर हालाकि स्लम क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों में पीने के पानी का स्रोत बढ़ा हुआ दिखता है, लेकिन दूसरी ओर गैर-झुग्गी-झोपड़ी क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों के पीने के पानी के बेहतर स्रोत का प्रतिशत उस के अनुपात से काफी अधिक दिखता है। इससे चलता है कि समाज के आर्थिक रूप से निचले और ऊपरी तबके के बीच पानी की उपलब्धता और उपयोग में असमानता बढ़ रही है।

वर्तमान सरकार की जल जीवन मिशन योजना लगभग देश में सभी उन्नीस करोड़ घरों को नल के द्वारा पानी उपलब्ध कराने (हर घर जल) की महत्त्वपूर्ण पहल है और संविधान के अंतर्गत सरकार की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना है। इसका लक्ष्य हासिल करने से पहले हमें और भी बहुत कुछ करना होगा। पानी की गुणवत्ता, मूल्य और मात्रा सुनिश्चित करनी होगी। नीतिगत स्तर पर इस लिहाज से कई विचारधाराएं और विचार हैं। विशेष रूप से मूल्य निर्धारण और संरक्षण को लेकर स्पष्टता नहीं है। हमें पानी के विषय पर गहन चर्चा और पारदर्शिता की आवश्यकता है। व्यक्तियों या घरों के व्यावहारिक उपभोग पर पानी के मूल्य के प्रभाव के संबंध में विविध विचार चल रहे हैं। पानी जैसी घरेलू आवश्यक वस्तुओं की कीमत के उपभोग पर प्रभाव को ले कर कई अध्ययनों से पता चलता है कि उपभोग पूरी तरह मूल्य पर आधारित नहीं है। इसके विपरीत कुछ अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि कीमत एक अच्छा जल-मांग प्रबंधन उपकरण हो सकता है। आर्थिक सिद्धांत के आधार पर कीमतों में वृद्धि के साथ अधिकांश वस्तुओं की मांग की मात्रा कम हो जाती है, लेकिन जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं पर यह सिद्धांत पूरी तरह नहीं लागू होता।

हम यह जानते हैं कि कीमत के बारे में जागरूकता और पानी की कीमत में बदलाव के आधार पर उपभोग में बदलाव मूल्य संवेदनशीलता को मापने के लिए एक संकेतक माना जाता है। इस संकेतक पर हमारे वर्तमान अध्ययन में पाया गया है कि कम आय वाले लगभग 90 प्रतिशत घरों की खपत पानी के मूल्य बढ़ने से कम नहीं होगी, क्योंकि मूल रूप से उन घरों में पानी के उपभोग का स्तर पहले से ही आवश्यकता के अनुपात में बहुत कम पाया गया है। पानी पर खर्च की गई व्यक्तिगत आय का कुल आय के अनुपात को एक और पैरामीटर माना जाता है। हमारे अध्ययन के अनुसार औसतन पानी पर खर्च व्यक्तिगत आय, कुल आय का 4.93 प्रतिशत ही है। जैसे-जैसे हम निम्न आय वर्ग से उच्च आय वाले उपनिवेशों में जाते हैं, उनका पानी पर खर्च की जाने वाली आय का अनुपात और भी कम हो जाता है। इसलिए निम्न आय वर्ग की कीमतों की संवेदनशीलता उच्च आय समूहों की तुलना में कहीं अधिक है। इससे यह स्पष्ट होता है की कीमतों का पानी की खपत पर प्रभाव हाशिए पर रहने वाले वर्ग पर ही अधिक होगा।

निष्कर्ष के रूप में हम कह सकते हैं कि पानी की मांग अत्यधिक मूल्य-संवेदी नहीं है। मुख्य कारण यह है कि लोग पानी का उपयोग एक आवश्यकता के रूप में ही करते हैं, न कि एक विलासिता के रूप में। इसका तात्पर्य यह भी है कि कीमत बढ़ाने से घरेलू पानी की खपत में उल्लेखनीय कमी नहीं आ सकती है। यह भी मत भूलिए जब तक किसी चीज की कमी बनी रहेगी लोग आवश्यकता की वजह से उसके भुगतान के लिए तो तैयार हो ही जाएंगे, लेकिन पानी जैसी जरूरी चीज के बारे में निर्णय लेते समय लोगों के सामर्थ्य को ही प्राथमिकता देनी होगी। पानी का मूल्य निर्धास्ण एक महत्त्वपूर्ण नीतिगत निर्णय है। इससे उच्च आय वर्ग की तुलना में गरीब वर्ग ही अधिक प्रभावित होगा।

घर में पानी की बर्बादी को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है घर में पानी बचाने के उपायों के बारे में जागरूकता फैलाई जाए। कम प्रवाह वाले शावर और नल, दोहरी फ्लशिंग प्रणाली, कपड़े और बर्तन धोने के लिए पानी की बचत करने वाले उपकरण मदद कर सकते हैं। सरकार सभी को पानी उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। साथ ही लागत वसूली के लिए मूल्य निर्धारण और इसके अत्यधिक उपयोग को रोकने में संतुलन बना रही है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

Budget will need to tackle covid hurdles

By Gopal Krishna Agarwal,

The government is aware of the pain points. It will make required interventions in order to propel our economy to the next level

Global economies have been hit hard by the COVID-19 pandemic, and India is no exception. Post-pandemic economic recovery is a big challenge for all of us. Governments and central banks across the world resorted to fiscal and monetary measures to ward off the negative impact of the crisis. These measures included liquidity infusion, credit enhancement, deficit financing, direct benefit transfers, even the printing of currency, and the distribution of helicopter money.

These stimulus packages did help in the economic recovery, but disruptions in the global supply chain and the resultant strengthening of commodity prices and liquidity overhang have led to inflation. Now, when the central banks have started sucking the liquidity out of the system to contain inflation and governments are reversing the stimulus in the interests of fiscal consolidation, a sustainable global economic recovery seems to be a distant goal.

The Indian government also came out with a stimulus package in the form of Atmanirbhar Bharat (self-reliant India), which had several measures but stopped short of printing currency, and did not resort to the distribution of helicopter money. So, post-pandemic, the Reserve Bank of India (RBI) is comfortably placed in its fight to contain inflation. It can reverse the excess liquidity from the economy in a phased manner while continuing to extend credit support to the needy segments. The government also has ample space for fiscal consolidation.

Our economy, at present, is in a resilient mode, and we are witnessing a sharp post-pandemic recovery, thanks to the farsighted approach of the Narendra Modi government and the RBI. This confidence in our economy is not only visible domestically but also seen within the global investor community. Our macroeconomic parameters are strong across segments. The government and the RBI. This confidence in our economy is not only visible domestically but also seen within the global investor community. Our macro-eco-nomic parameters are strong across segments. The government is continuing with its infrastructure spending, and schemes such as Production Linked Incentives (PLI) are bringing the desired results in the domestic manufacturing sector.

It is against this background that the budget for 2022-23 will be presented. The first requirement to put economic growth on a sustainable path is to identify current challenges and to come up with a roadmap to address them.

The economic repercussion of the pandemic in India has not been equitable,e and it has been particularly harsh on the informal sector.

Consequently, there has been a deepening of income and wealth disparity in society. The last few years have seen very little growth in aggregate private consumption in the economy. Any support for the informal sector will help in increasing private consumption as well.

Micro, small, and medium enterprises (MSMEs) are the growth engines of the economy, but were severely affected by COVID-19-related disruptions. They require working capital and other credit facilities. It is expected that the government will extend the credit guarantee scheme for MSMEs. There is also a fear that the looming liquidity crisis might transform into a solvency crisis; it would, therefore, be advisable that the Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) provide additional relief to small firms. There is a growing consensus that this segment requires new instruments for private capital formation.

It is expected that the government will focus on fiscal consolidation from the coming financial year. However, there is considerable uncertainty regarding its pace. A fiscal consolidation road map will help in the orderly working of the financial and capital markets. However, the glide path of fiscal consolidation should not be too steep.

Another important issue is the rapid rise in commodity prices, affecting businesses because they are not able to pass on the increased costs to consumers due to weak demand. Reducing import duties on such products will tame costs and reduce inflation, particularly the wholesale price index (WPI). This will also help manufacturing industries, which were adversely impacted due to the rising costs of base metals and raw materials.

Though Goods and Services Tax (GST) collections are increasing, over the years, the average tax rate under GST has come down to around 11.6%, much below the revenue-neutral GST rate of 15-15.5% as envisaged at the time of GST implementation. There is space to improve the average tax rate to bring it to around 15.5%. The government must improve the tax-to-Gross Domestic Product (GDP) ratio.

The corporate tax rate has also been reduced to around 25% on average. However, for the tax-paying middle and upper middle class, the highest marginal rate of taxation is above 40% right now. If the government introduces infrastructure bonds, which provide for additional investment-related deduction from taxable income, then not only will it bring down its total tax liability, but also generate critical financial resources to invest in infrastructure.

Disinvestment has been one of the focus areas of the Narendra Modi government, and the driving principle behind this is the government’s belief that public money locked in such assets should generate higher returns. However, a section of analysts and Opposition parties have tried to portray this as an exclusively revenue-generating measure. The government needs to reaffirm the principles of better utilisation of public capital, underlying the disinvestment plan in the budget. Monetisation of the assets of public sector undertakings has not been taken up as envisaged earlier and will require renewed efforts.

Our government is well aware of these pain points. The public is confident that it will make required interventions in this budget to propel our economy to the next level, and this positive sentiment is quite visible in the business ecosystem. The government will continue on its path of economic reforms to build on this business confidence.

Gopal Krishna Agarwal is the Bharatiya Janata Party’s national spokesperson on economic affairs

बड़ी आर्थिक चुनोतिया लेकिन चिंता की जरुरत नहीं

गोपालकृष्ण अग्रवाल

आर्थिक विषज्ञ

आज भारत की अर्थव्यवस्था को लेकर कई लोग बहुत चिंतित हैं। कोग्रेस की जाट के उपरांत वैश्विक स्तर पर कई देशों की अर्थव्यवरथा चरम गई है। कुछ देन अभी भी उस अवस्था से नहीं निकाल पाए है, लेकिन भारत उन कुछ देशों में शुमार है, जो अपनी आर्थिक स्थिति संभालने में सक्षम हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय वित्तीय संस्कार टिव बैंक एवं वित मंकेनेसह पर चालते हुए देश के आर्थिक विकासको सही पटरी पर ला दिया है। जना को जागरूकता, नेतृत्व के निर्णय में विश्वास और संकल्प का इसमें बड़ा योगदान है।

आज हमारी अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज गति से बढ़ रही है। हमारे सारे व्यापक आर्थिक पैमाने जैसे मुद्रा भहार, विदेशी पिवेशनांत में लगातार बढ़ोतरी मुई के और जीएसटी संग्रह भी लगातार बढ़ रहा है। हा माह नीएसटी संग्रह 1.5 लाख करोड़ से ज्यादा हो रहा है। प्रत्यक्ष कर के संग्रहण में भी 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

हमारी आर्थिक प्रगति में देश एवं विदेशी निवेशकों का विश्वास बरकरार है। वैसे आर्थिक जगत की कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां भी हैं। विश्व स्ता पर मुद्रास्त बहुत बढ़ रही है लेकिन यूरोप एवं अमेरिका के अनुपात में भारत इस चुनौती को बेहतर संभाली। भारत में मुद्रास्फीति ? प्रतिशत है। भारतीय रिजर्व बैंक एवं विस मंत्री ने संसद में कहा है कि हम इससे जल्द निपट लेंगे। कच्चे तेल की कीमत बहुत बढ़ गई है। समस्या यह है भारत 70 प्रतिशत तेल आयात करता है. जिससे हमारे रुपये की कीमत पर असर पड़ता है। सरकार रिजर्व बैंक के माध्यम से रुपये के मूल्य को भी निधारित कर की है। सरकार ताल की कीमत को रूस, ईरान से तेल आयात कर और आंतरिक रूप से वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत बढ़ाकर संभाल रही है। उपर अच्छी बात है कि अब कच्चे तेल के दाम लगातार घट रहे हैं, तो तेल आयात सस्ते भाव पर होने लगेगा।

पीएल आई के माध्यम से सरकार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को समर्थन देकर घरेलू उत्पादन बढ़ा रही है, जिसके कारण हमारा निर्यात बढ़ रहा है। रक्षा क्षेत्र में भी सरकार ने घरेलू खरीद को बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया है। सरकार आधारभूत ढांचे जैसे एयरपोर्ट, सड़क, जल मार्ग, रेल मार्ग में महत्वपूर्ण निवेश कर रही है, जिससे बहुत लाभ हो रहा है। ईज ऑफ डुइंग बिजनेस और ईन ऑफ लिविंग के साथ बाजार में साल बड़े एवं उसके फलस्वरूप देश में निजी निवेश बढ़ जाए, तो इसका प्रभाव रोजगार के नए अवसर पैदा करने पर भी पढ़ेगा। बेरोजगारी एक बड़ी चुनौती है सरकारी विभागों में 10 लाख नियुक्तियों की घोषणा हुई है।

सरकारको जन-कल्याण योजनाएं भी कारगर साबित ही सही है। वित्त मंत्री एवं प्रधानमंत्री सही कहते हैं कि तमाम आर्थिक चुनौतियों के बावजूद अर्थव्यवस्था पटरी पर है औरराम आर्थिक संकटसे अच्छी तरह न्यूझ रहे हैं। हमारी आर्थिक स्थिति कई श्रीलंका, पाकिस्तान या बांगलादेश आदि देशों को तय नहीं है। देशका सामूसिंकाय एवं सफल नेतृत्व हमें स्वतंत्रता के अमृत महोलाय पर आने वाले अमृत काल के लिए मजबूत नीव प्रदान कर रहा है। भारत की अर्थव्यवस्था को और तेज गति से आगे बढ़ना है और विश्व पटल पर जी मंदी की मार पड़ की है, उसके प्रभाव से भी बचना है। इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण आर्थिक सुधार हमें जल्दी ही करने पड़ेगे। इसमें महत्वपूर्ण है बिमाती उत्पादन एवं वितरण में प्रदेश स्तर पर मुफ्त बिजली देने से हो रहा घाटा इससे रोकना पड़ेगा। दुखद है, रेवड़ी के रूप में पंजाब जैरो कई प्रदेश बोट बटोरने के लिए पैसा चांटना चाहते हैं। इस प्रवृत्ति को जनता के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए रोकना पड़ेगा।

आर्थिक सुधार के तहत श्रम सुधार भी लाना है। कृषि क्षेत्र में व्यापक बदलाव को आवश्यकता है। अमेरिका, यूरोपीय देशों, ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात से मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए सरकार पहल कर रही है। सरकार जानती है कि अगर देश को विश्व में ऊंचा स्थान प्राप्त करना है, तो आर्थिक मजबूती आवश्यक है। सुधार के प्रयास लगातार चल रहे हैं। चुनौतियां अवश्य हैं. पर चिंता की जरूरत नाहीं।

तमाम आर्थिक चुनौतियों के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था सही पटरी पर है और हम आर्थिक संकट से अच्छी तरह जूझ रहे हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

India is the most compelling story of the present era. We mustn’t squander this opportunity

By Gopal Krishna Agarwal,

The current geopolitical situation arising out of the US-China trade war and our conflict with Pakistan can be leveraged to India’s advantage. How we do so will decide the future of India.

The destination of Viksit Bharat is that we become a robust economy with high per capita income, have strong defence and military capabilities, and intense global engagements with world leaders and international institutions that match our stature.

The current situation provides opportunities for India in all these three arenas: economic power, defence capabilities, and global engagement. How we leverage them will decide the future of India. Ultimately, it is the people, their perception, and will to achieve that matters.

The current geopolitical situation arising out of the US-China trade war and our conflict with Pakistan can be leveraged to India’s advantage. Domestically, our economic fundamentals like low inflation, a fiscal consolidation glide path, good foreign exchange reserves, highest foreign direct investment flows, infrastructure growth, digital public infrastructure in place, booming capital markets, and revival of public sector undertakings and banks, among other things, are helping build a robust Indian economy.

India’s new trade advantage

The trade tension between the US and China is benefiting India. American buyers are looking toward Indian suppliers, improving India’s prospect for better engagement with the world. We have free trade agreements (FTAs) with Australia, the UAE, and have just concluded an expansive FTA with the United Kingdom. An interim trade deal with the US is also imminent.

Our increasing economic and commercial engagement with the wider world dramatically increases the market for Indian products. Reduction in import duties will impart competitiveness for Indian manufacturers and boost their overall productivity. India has already undertaken a number of structural reforms, and a lot more are in the pipeline.

Though there will be resistance to reforms by vested interest groups, and the success of government will be measured in how deftly it manages to blunt political opposition to the reform agenda. Other countries in the world are also trying to capture the opportunities arising from trade disruptions. India will need to be extremely agile to be able to emerge as a winner.

A message to Pakistan and the world

In the recent standoff with Pakistan, India has demonstrated its intent as well as the ability to punish the purveyors of terrorism. It has made it clear that no place in Pakistan is outside the reach of Indian armed forces. We have been able to destroy Pakistan-sponsored core terrorist group infrastructure, situated deep inside Pakistan, at nine places.

During Operation Sindoor, India destroyed and destabilised Pakistani defences at places like Lahore, Karachi, and Rawalpindi. India’s targeted strikes on eleven major Pakistani airbases have decisively shifted regional military dynamics. These pre-emptive attacks, carried out with precision, have dismantled Pakistan’s ability to maintain any air superiority, and any meaningful counter-response from these bases having critical function, inflicting psychological and strategic damage to the Pakistani military establishment.

The successful neutralising of Pakistan’s military aerial intrusions, and our ability to defend Indian airspace, is also evident. At the same time, India’s repeated declarations that our actions were non-escalatory in nature gave Pakistan enough opportunity to off-ramp, ensuring global support for our actions.

Prime Minister Shri Narendra Modi ji said that terrorism and talks, and terrorism and trade, cannot go together. He added that any future talk with Pakistan will be on Pak-Occupied Kashmir (PoK) and state-sponsored terrorism only. The emphatic statement that any terrorist action will be considered an ‘act of war’, and keeping the Indus Water Treaty in abeyance, shows a clear policy shift in our dealing with Pakistan.

An issue at hand is also how a regional conflict with an adversary that is in a dire state—of unstable economy, multiple state actors within the ruling establishment, and civic unrest from Baluchistan and Punjab province uprisings—can impact us.

Even so, the world over, it is acknowledged that India is the most compelling story of the present era, attracting huge global investments, and we must not squander this opportunity.

Brand India on the rise

Prime Minister Modi’s engagement with global leadership and at international platforms has been exemplary. His interventions in the Ukraine-Russia war, and the statement that “this is not an era of war” to President Putin, have been very well appreciated across the world. The success of the G20 has established ‘Brand India’. Our US engagement shows the finesse of a mature diplomacy and a mutuality of interests. India’s straight and frank talks with European nations about preaching and practising democracy, or dealing with oil sanctions, come from clear vision and inner strength. India now acts and talks like a global leader, and as our economy grows bigger, our say in global affairs will increase even more.

The stage is set for India to assume strong leadership status at the global level, but it needs to do a lot of work on many fronts domestically. India has to grow its GDP at over 8 per cent per annum on a sustained basis, something that has never been achieved in the country till now. Our tryst with destiny, and opportune time is here; whether we the people of India, and our politics, will rise to the occasion, only time will tell.

Gopal Krishna Agarwal is the national spokesperson of the BJP. He tweets @gopalkagarwal. Views are personal.

Don’t pauperise farmers for profit

By Gopal Krishna Agarwal,

Agricultural land is being acquired from farmers at throwaway prices by the Government and is being handed over to builders, who are developing mega projects and selling them to middle-class investors. In the process, the farmer is the ultimate loser

Dimensions of corruption have changed the recent past. Unchecked globalisation and economic development have created a situation where large amounts of unaccounted money are chasing limited available assets. This black money is generated through corruption, deficit financing and several welfare scheme freebies.

The major portion of this money is finding its way into the real estate sector. Corrupt politicians, Ministers and bureaucrats, in connivance with builders and developers, are exploiting gullible middle-class investors who dream of owning a house.

Agricultural land is being acquired from farmers at throwaway prices by the Government and is being handed over to builders, who are developing mega projects and with the efforts of their brand managers, dream-sellers and marketing personnel are selling them to middle-class investors. Local authorities are part of this racket and are now operating as real estate development companies. They are helping fill the coffers of some corrupt politicians.

When farmers whose land has been acquired come to know of these manipulations at a later stage and find out that their interests have not been protected by the faulty and outdated Land Acquisition Act, they are bound to agitate. This is what is happening in villages like Bhatta- Parsaul near Greater Noida. And if any corrective action takes place under pressure from courts or due to the agitation of the local people, leading to cancellation of these projects, then the middle-class investor’s money goes down the drain

Similar is the situation in the case of land acquired for mining and industrial development. The economic develop- ment of the country also suffers. Land acquisition for industrial purposes has become one of the most contentious issues now. Land acquisition, in principle, is governed by the Land Acquisition Act of 1894. The Act, despite getting amended in 1967 and 1984, does not address the twin issues of rehabilitation and resettlement of the displaced people In view of this, the Government of India announced the National Policy on Resettlement and Rehabilitation on Project-Affected Families in 2003, which came into force in February 2004. Later, in order to make the policy more effective Inverder the Act consistent with it. two Billsendmete Bill. 2007. and the Land Acquisition Rehabilitation and Resettlement Bill. 2007- were drafted but have been kept pending without being put up to Parliament.

 The Government must immediately take corrective measures. Foremost is the need to pass an amended Land Acquisition Act, taking into consideration proper compensation for farmers not only in monetary terms but also securing their livelihood. This can be done by paying compensation in installments over a longer duration, giving farmers a stake in the future profitability of the development project, and providing some form of employment for the families of those losing land.

To secure the interests of investors and control the real estate development lobby, there has to be a regulatory authority which will scrutinise all schemes, check disclosures regarding promises and risk factors, and make sure these are backed by proper legal documents. It also has to ensure that developers deliver on their promises and in the event of any default, investor interests are properly protected and they are duly compensated.

 An important aspect from the point of view of the national economy is the need to break the nexus between real estate developers, corrupt politicians and their Public Private Partnership protects which generates black monry through corrupt means. Otherwise, over a period of time, a real estate bubble will be created and will lead to unprecedented problems in our economy.

This asset bubble is also the result of the deficit financing to which the Government resorts every year. Experts have said that emerging economies such as Brazil and India face fiscal and current account deficits and a crisis similar to the one triggered by the global financial meltdown is inevitable.

The recent chain of events, whether it is the farmers agitation in Uttar Pradesh or the Maoist insurgency in various other parts of the country, reflect this point. We must immediately act on these issues and check this particular corrupt practice.

अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ नव शिराएं

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विकास का एक नया मॉडल खड़ा किया है। इसमें कानून-व्यवस्था, परिवहन, शिया-स्वास्थ्य और नीतिगत सुगमता जैसी बुनियादी बातों में सुधार के साथ स्थानीयता को प्रदेश के विकास का आधार बनाने की सोच है। इस रणनीति से उत्तर प्रदेश भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्प्रेरक बनने की स्थिति में आ गया है

उत्तर प्रदेश उद्योगपतियों के लिए एक दुःस्वप्न से कम नहीं था जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानून-व्यवस्था में विश्वास रखने वालों के लिए एक स्वर्ग के अनुरूप परिवर्तित कर दिया है। योगी जी के विकास मॉडल ने साढ़े चार वर्षों में प्रदेश में न सिर्फ परिस्थितियां बदली हैं, बल्कि छवि और सोच भी बदल दी है।

कानूनव्यवस्था

वर्ष 2017 में जब पहली बार योगी जी की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी, तब यहां गुण्डा राज था, उगाही अपनी चरम सीमा पर थी और संगठित अपराध का बोलबाला था। योगी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर कदमों ने माफिया की कमर तोड़ दी। इनका स्थान या तो जेल में रह गया या फिर वे परलोक सिधार गए। अब तक इनकी 1,848 करोड़ रुपये की अवैध सम्पति जब्त कर ली गई है।

परिवहन सुधार

आज प्रदेश में एक्सप्रेसवे, एफएनजी सड़क, पेरीफेरल सड़कों का अद्वितीय संजाल तैयार है। विश्वस्तरीय फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण, मल्टी मॉडल ट्रान्सपोर्टेशन हब की स्थापना कभी उत्तर प्रदेश में सोची ही नहीं गई थी। जेवर जैसे बड़े विश्वस्तरीय हवाई अड्डे के साथ आठ और हवाई अड्डों को चालू किया गया है। तेरह और हवाई अड्डों का निर्माण भी किया जाएगा। प्रदेश में दस शहरों, नोएडा, लखनऊ, गाजियाबाद, कानपुर, आगरी, मेरठ, गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज एवं झांसी में मेट्रो की स्थापना की गई है।

शिक्षास्वास्थ्य सुधार

सड़कें, रेल, हवाई अड्डे ही नहीं चल्कि रहने के लिए घर, स्कूल, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, मॉल, इन सुविधाओं का भी शहरी विकास में ध्यान रखा गया है। आठ नए राज्य विश्वविद्यालय, 70 नए राजकीय महाविद्यालय, 28 इंजीनियरिंग कालेज जैसी कई शैक्षिक संस्थाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि विद्यार्थियों को सही शिक्षा मिले और उद्योग एवं अन्य संस्थाओं को सेवा योग्य शिक्षित व्यक्ति मिल सकें। योगी जी ने केवल उद्योगों पर ही ध्यान नहीं दिया बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर भी लगातार काम किया है। 59 जनपदों में कम से कम एक मेडिकल कालेज की स्थापना हो चुकी है। आर्थिक विकास और औद्योगीकरण के लिए इनका बहुत महत्व है।

व्यवसाय सुधार

योगी जी के नेतृत्व में जरा सुनेर सरकार के 187 व्यवसाय सुधार कार्ययोजनाओं के मुख्मयों में से 166 सुझावों को श्रेणी में देश में दूसरे पायदान पर आओ श्रेणी में प्रदेश देश के बार बीमारू राज्यों की में ये परिणाम योगी सरकार के आर्थिक सुधारों की पहल का ही परिणाम है।उत्तर प्रदेश में हुई पहली इनवेस्टर समिट में 4,68,000 करोड़ रुपये के निवेश अनुबन्ध हुए थे और इसमे से लगभग तीन लाख करोड़ रुपए रुपए के निवेश की परियोजनाएं चालू भी हो गई है।

श्रम सुधार

योगी सरकार ने श्रम सुधार लागू किए हैं। ऑनलाइन एकीकृत पंजीकरण सुविधा भी लागू कर दी है। जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित करके केन्द्र सरकार के लैंड बैंक पोर्टल पर डाल दी गई है ताकि कम्पनियों को फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन की उपलब्धता पारदर्शी रूप में हो जाए। भवन निर्माण के लिए आवश्यक अनुमति तीव्रता से मिल रही रही है। है। उत्तर प्रदेश के उद्योग मित्र पोर्टल ने तो पारदर्शिता और सुविधा का नया मापदण्ड ही देश में स्थापित कर दिया है। सभी योजनाओं और आयामों में सरकार ने नौकरियों के सृजन को भी ध्यान में रखा है। पिछले वर्षों में 4,50,000 नई सरकारी नौकरियों में भर्ती भी की गई है।

औद्योगिक हब

गौतमबुद्धनगर में इलेकट्रॉनिक पार्क, कपड़ा उद्योग, फिल्म सिटी, मोबाइल फैक्ट्रियां, वाहनों के पुर्जे बनाने का उद्योग, मिडिया हब और शिक्षा संस्थाएं स्थापित हो रही हैं। माइक्रो साफ्ट, सैमसंग आदि अनेक वैश्विक कम्पनियां यहां अपना निवेश कर रही हैं। आज नोएडा शहर को देश में सबसे ज्यादा निवेश प्राप्त हो रहा है। अकेले नोएडा में पिछले कुछ वर्षों में 64,000 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है। गौतमबुद्धनगर जिला देश का सबसे उत्कृष्ट औद्योगिक निवेश वाला जिला बन कर उभरा है। कोरिया जैसे जैसे बड़े निवेशक देशों ने अपना कोरियन चैम्बर आफ कॉमर्स का कार्यालय भी नोएडा में खोल दिया है। रक्षा के क्षेत्र में भी देश के दो में से एक औद्योगिक पार्क उत्तर प्रदेश में ही बनेगा।

पर्यटन विकास

पर्यटन क्षेत्र को देखें तो उत्तर प्रदेश में कई स्थान हैं। योगी जी ने धार्मिक स्थानों और मंदिरों के नवीनीकरण एव विकास पर विशेष ध्यान दिया है। अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे सात सौ के लगभग धार्मिक स्थलों का विकास कर इन स्थानों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जागृत किया है। बौद्ध सर्किट, रामायण सर्किट, महाभारत सर्किट, शक्ति पीठ सर्किट, अध्यात्म सर्किट, जैन तथा सूफी सर्किट में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया है। यही नहीं, कुम्भ के आयोजन को इतनी विशालता प्रदान कर दी कि वह अपने आप में धार्मिक अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए विश्वस्तर पर एक मिसाल बन गया है।

स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा

कोरोना संकट में प्रदेश के 40 लाख प्रवासी मजदूर वापस आए, उन्हें अपने ही ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार मिले, इसके लिए लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। एक जिला- एक उत्पाद की पहल गांवों एवं कस्बों में परंपरागत छोटे-छोटे उद्योगों नको बढावा दे रही है। हर जिले की अपनी अलग पहचान होगी और उससे संबधित उद्योग चेन स्थापित होंगे। अलीगढ़ में ताले, फिरोजाबाद में शीशे का काम, मेरठ में क्रिकेट का सामान, मुरादाबाद का पीतल उद्योग, मथुरा के पेड़े, काशी की सिल्क की साड़ियां, नोएडा का कपड़ा उद्योग, रामपुर में जरदोजी का काम, ऐसे सभी उद्योग चेन प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नया आयाम प्रदान कर रहे हैं।

किसान कल्याण

किसानों की आय को बढ़ाने पर भी योगी जी का पूरा ध्यान है। ग्रामीण क्षेत्र में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का तेजी से विस्तार, प्रधानमंत्री आवास योजना में घरों का निर्माण एवं सभी जनपदों में हर घर जल योजना से जल की आपूर्ति सुनिश्चित की गई है। योगी जी द्वारा निराश्रित गोंवंश के रख-रखाव एवं पशुपालन को बढ़ावा देने की विशेष पहल से किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा।

उत्तर प्रदेश तैयार है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जो भारत को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यस्था बनाने का लक्ष्य है, उसका मार्ग निश्चय ही उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरेगा। और योगी जी ने जो संकल्प लिया है कि हम प्रदेश की अर्थव्यवस्था को एक खरब डॉलर की कर देंगे, वह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति के फलस्वरूप जल्द पूरा होगा। जिस प्रकार से विश्वस्तर पर उत्तर प्रदेश उद्योगों की स्थापना के लिए आकर्षण का केन्द्र बन रहा है, इसमें देर नहीं है जब अपनी 23 करोड़ जनसंख्या और बड़ी भौगोलिक भूमि के कारण विशाल बाजार व्यवस्था का केन्द्र बनकर यह प्रदेश चीन को सीधा टक्कर दे दे। योगी आदित्यनाथ के सफल नेतृत्व और नरेन्द्र मोदी के मार्गदशन में उत्तर प्रदेश डबल इंजन की विकास की तीव्र गति से आगे बढ़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

महागठबंधन : एक ढकोसला

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नफरत के कारण एकजुटता दिखा रहे और अपने राजनैतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे विभिन्न विपक्षी दल, बिना किसी साझा नीति या विचारधारा के, खुद को ‘महागठबंधन’ का नाम देकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस अपने को इस महागठबंधन का केंद्र बताने की कोशिश कर रहा है, लेकिन दूसरे राजनैतिक दल उसके नेतृत्व को कतई स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। राज्य स्तर पर महत्व रखने वाली कई राजनीतिक पार्टियां भी महागठबंधन में शामिल नहीं हुई हैं। इससे साफ है कि एनडीए के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा करना सम्भव नहीं हो पा रहा है।

अगर हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से शुरू करें तो वहां पर समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने के लिए गठबंधन किया है लेकिन इसमें कांग्रेस शामिल नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है और कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बीच वाकयुद्ध शुरु हो गया है। दिल्ली में ऐसा माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेगी, इसलिए उनके बीच भी किसी प्रकार के गठबंधन की संभावना कम ही है।

केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट खड़ा है और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से लेफ्ट और कांग्रेस के बीच लड़ाई और भी तेज हो गई है। ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी कमोवेश यही हाल है। कांग्रेस असम में बदरुद्दीन अजमल के संगठन के साथ भी गठबंधन करने में विफल रही है। इन सभी राज्यों में त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबला होगा, जिसने महागठबंधन को अप्रासंगिक बना दिया है। इन 8 राज्यों में लोकसभा की कुल 226 सीटें हैं।

हालांकि, कांग्रेस खुद को एक राष्ट्रीय पार्टी कहती है, लेकिन बिहार में महागठबंधन की प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) है और कांग्रेस को 40 में से सिर्फ नौ सीटें दी गई हैं, जबकि बाकी सीटें उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी जैसे नेताओं के छोटे दलों को दे दी गईं। तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को केवल नौ सीटें मिली हैं, जबकि पुड्डुचेरी एकमात्र सीट उसे लड़ने के लिए दी गई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर की तीन लोकसभा सीटों के लिए गठबंधन किया है और तीन अन्य सीटों पर दोस्ताना चुनाव लड़ने की बात की हैं। कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) ने 8 सीटें पाने के लिए काफी मोलभाव किया है और कांग्रेस वहां पर 20 सीटों पर अपना भाग्य आजमाएगी, जबकि राज्य में पहले से ही जेडी (एस) का मुख्यमंत्री है।

झारखंड में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं। कांग्रेस को सात सीटें, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को चार, झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) को दो और लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी को एक सीट दी गई थी। लेकिन यहां भी महागठबंधन में दरारें आ चुकी हैं। आरजेडी ने सीटों के इस बंटवारे पर आपत्ति जताई और चतरा से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया, जबकि यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आई थी। झारखंड में सीट बंटवारे के समझौते के अगले दिन ही आरजेडी की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी भाजपा में शामिल हो गई जो गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका है। महाराष्ट्र में कांग्रेस 26 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) – अपने लिए 22 सीटें हासिल करने में कामयाब रही है। एनसीपी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस में आंतरिक कलह चल रही है और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण भी इससे नाराज हैं।

एक ओर जहां इस तथाकथित महागठबंधन को लेकर पूरी तरह से अनिश्चितताएं हैं, वहीं एनडीए में पहले से ही 39 राजनीतिक दलों गंठबधन है। एनडीए की एकता तभी नजर आ ई गई थी जब उन्होंने विहार की लोकसभा सीटों न के लिए उम्मीदवारों की घोषणा को साथ में क किया था। गुजरात की गांधीनगर सीट से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नामांकन के समय भी एनडीए ने अपनी पूरी ताकत का प्रदर्शन किया र गया था। भाजपा पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। ये दोनों ही भाजपा के दशकों पुराने सहयोगी हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता का विश्लेषण यह बताता है कि चुनाव पूर्व परिदृश्य में महागठबंधन विखंडित है और नेतृत्वहीन नजर आ रहा है। एनडीए की तुलना में अखिल भारतीय स्तर पर महागठबंधन की मौजूदगी भी वैसी नहीं है। एनडीए के सभी सहयोगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे है। महागठबंधन में शामिल दल कई राज्यों में अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। यह सीटों के बंटवारे को लेकर किसी भी तरह का समझौता न कर पाने में विफलता के अलावा और कुछ नहीं है।

महागठबंधन का यह शोर-शराबा केवल एक ढोंग है और मोदीजी के विरोध का ये हौआ इस लोकसभा चुनाव के आगे बढ़ने वाला नहीं है।

(लेखक भाजपा के आर्थिक मामलों के प्रवक्ता है)

विमुद्रीकरण सम्बन्धी तथ्य

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

देश में इस पर बहस चल रही है कि क्या विमुद्रीकरण से भ्रष्टाचार को समाप्त करने और कालेधन के उन्मूलन में मदद मिल सकेगी।इसका अर्थव्यवस्था पर अल्प, माध्यमिक और दीर्घकाल में क्या प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे लघु एवं मध्यम उद्योगों और छोटे व्यापारियों, दुकानदारों और दैनिक मजदूरों आदि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।बड़े आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है कि हम डिजिटल अर्थव्यवस्था की नई क्रांति की तरफ बढ़ें।

विमुद्रीकरण सम्बन्धी हाल की घोषणाओं ने देश के आर्थिक परिदृश्य में भारी हलचल पैदा कर दी है। देश में इस पर बहस चल रही है कि क्या इससे भ्रष्टाचार को समाप्त करने और काले धन के उन्मूलन में मदद मिल सकेगी। इसका अर्थव्यवस्था पर अल्प, माध्यमिक और दीर्घकाल में क्या प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रो, छोटे लघु एवं मध्यम उद्योगों और छोटे व्यापारियों, दुकानदारों और दैनिक मजदूरों आदि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। बड़े आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है कि हम डिजिटल अर्थव्यवस्था की नई क्रांति की तरफ बढ़े। विमुद्रीकरण को इसी परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है।

देश में आर्थिक विकास लाने तथा भ्रष्टाचार एवं काले धन के उन्मूलन के दो महत्वपूर्ण जनादेश पर हमारी सरकार सत्ता में आई थी। वर्तमान अर्थतंत्र को ध्यान में रखकर उसके कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को हमे देखना जरूरी हैः

  • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार देश का 20 प्रतिशत धन सभी परिसम्पदा वर्ग जैसे रियल एस्टेट, स्वर्ण तथा कैश करेंसी आदि में विद्यमान है।
  • विश्व सम्पत्ति रिपोर्ट 2016 से पता चलता है कि देश की मात्र 1 प्रतिशत जनसंख्या का देश की 58 प्रतिशत से अधिक सम्पत्ति पर अधिकार है। भारत पूरे विश्व में रूस के बाद कान्सनट्रेशन आफ वेल्थ में दूसरे नम्बर पर आता है।
  • हमारे देश की 97 प्रतिशत आवादी की कुल सम्पत्ति 10.000 डालर अर्थात् 7,00,000 रुपए से भी कम की है।
  • भारत में नकद करेंसी का जीडीपी अनुपात 12 प्रतिशत है, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की तुलना में कहीं अधिक है।
  • सरकार का वार्षिक चजट संसाधन बहुत ही सीमित है। कुल 5.5 लाख करोड़ रुपए का लगभग योजनागत व्यय-इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकताओं से निपटने के लिए किसी भी कीमत पर पर्याप्त नहीं है।
  • देश का प्रत्येक नागरिक अप्रत्यक्ष करों के रूप में कर अदा कर रहा है. परन्तु यदि इस ट्रांजेक्शन को समुचित रूप से खाते में न डाला जाए तो यह आम जनता द्वारा दिया गया कर सरकार के खजाने में नहीं पहुंचेगा। इस व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए लेन-देन सम्बन्धी ट्रांजेक्शन की बैंकिंग प्रणाली में रिकार्डिंग बहुत आवश्यक है।

विमुद्रीकरण का विश्लेषण ऊपर दिये परिदृश्य को ध्यान में रखकर करना आवश्यक है। आरम्भ से ही श्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा निचे दिए गए कई उपायों में यह एक मह्त्वपूर्ण कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं

सत्ता में आते ही दूसरे दिन से सरकार ने इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कई कड़े कदम उठाएः

1. श्री मोदी के सत्ता में आते ही एसआईटी का गठन किया गया, ताकि देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए उपाए किये जाएं।

2. विदेशी अवैध परिसम्पदा घोषणा योजना।

3. मॉरीशस, साइप्रस और सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय कर संधियों पर पुनः वार्ता, जिस के माध्यम से अधिकांश हवाला कारोबार होता था।

4. फाटका: FATCA के अन्तर्गत वित्तीय सूचना साझा करने के लिए अमेरिका के साथ संधी।

5. (OECD) और जी20 देशों के साथ वित्तिय सूचना के आदान-प्रदान करने के लिए मोदी जी की पहल।

6. इनकम डिस्क्लोजर प्लैन (आईडीएस)

7. बेनामी परिसम्पत्ति के कानूनों के प्रावधानों का पारित किया जाना, जोकि पिछले दस वर्षों से लम्बित पड़ा था।

8. संसद को वर्तमान सत्र में भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम एवं व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम में संशोधन बिल पेश करना।

9. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का लाना यह उन लोगों को दण्डित करने के लिए हैं. जो बैंकिग चैनलों में काला धन वर्तमान में घोषित करते हैं।

10. अभी के ढाई वर्षों में लगभग 92 वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों पर दण्डित किया गया है जो विगत वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

काले धन के उन्मूलन और भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ने के लिए विमुद्रीकरण एक बड़ी योजना का हिस्सा है। यह देश के सभी भौगोलिक हिस्सों में एवं समाज के आम आदमी के आर्थिक विकास के लिए समान एवं पारदर्शी अवसरों को प्रदान करने की प्रक्रिया का एक जरिया है।

विमुद्रीकरण के लाभ

  • भारी मात्रा में कैश करेंसी के सर्कुलेशन के कारण अर्थव्यवस्था पर मांग का भारी दबाव

         था. जिसके चलते आवास आदि महंगे हो गये थे, आम आदमी का घर का सपना उसके हाथों से फिसलता जा रहा था। विमुद्रीकरण से रियल एस्टेट की कीमतें घटेगी तथा इससे सभी प्रकार की महंगाई भी कम होगी।

  • गरीबों और अल्प आय ग्रुपों एवं विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए और सामाजिक योजनाओं के लिए सरकार को अधिक संसाधन प्राप्त होंगे।
  • इससे कम ब्याज दर वाली अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने में मदद मिलेगी, आवासीय ऋण, गरीबों के और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को कम दरों पर ऋण मिल सकेंगे।
  • जीएसटी जिससे की अप्रत्यक्ष करों को कम करने में मदद मिलेगी, उसके सुचारू कार्यान्वयन के लिए ढांचा तैयार होगा।
  • नकली करेंसी को अर्थव्यवस्था से हटाया जा सकेगा, आतंकवादी, माओवादी घटनाएं और

लूट-खसोट जैसी आपराधिक गतिविधियां पर लगाम लगेगा।

  • ऑनलाइन भुगतान तथा मोबाइल बैंकिंग के द्वारा जो ट्रांजेक्शन होती है उसकी कीमत प्रति ट्रांजेक्शन काफी कम बैठती है। इसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिलेगा (ऑनलाइन भुगतान पर सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम के तहत जागरुकता की नई पहल की गई हैं)
  • लोगों द्वारा कर अनुपालन का स्तर देश में बढ़ेगा।

तीसरी तिमाही की कर रिपोर्ट से पता चलता है:

– अप्रत्यक्ष कर संग्रह में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

– प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है

सरकार करेंसी की आवाजाही की कमी से पूर्ण रूप से अवगत है, परन्तु इसे जल्द सुलझा लिया जाएगा। हम लोगों से ऑनलाइन भुगतान और मोबाइल बैंकिंग के माध्यम द्वारा कम नकद अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने का आग्रह कर रहे है. परन्तु हम इसे लोगों में जागरूकता के द्वारा करेंगे. इसे अनिवार्य नहीं बनाएंगे। सरकार सिस्टम में कैश करेंसी खत्म नहीं कर देगी, परन्तु उसे जीडीपी का लगभग 8 से 9 प्रतिशत तक रखने का प्रयास करेगी।

सरकार इस बात से भलीभांति अवगत है कि करेंसी की इस कमी का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

इसलिए सरकार द्वारा जीडीपी के विकास और अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का रोडमैप तैयार है:

(क) बैंकों के चालू खाते और बचत खातों में जमाधन की वृद्धि होगी। इससे बैंकों के पास जमा धन कि कीमत कम होगी और इसके परिणाम स्वरूप सस्ते दर के फंड की उपलब्धता बढ़ेगी।

(ख) लघु एवं मध्यम क्षेत्रों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप, स्टैंडअप, मुद्रा ऋण कम व्याज दरों पर दिया जाए इस पर ध्यान दिया जाएगा।

(ग) रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट और ईएमआई का रेट कम करने से आवास आम लोगों की पहुंच में आ सकेगा तथा इससे निर्माण उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।

 (घ) अधिक कर अनुपालन से सरकार कराधान के दर कम करने की तरफ बढ़ सकेगी और पहली बार ईमानदारी का फल लोगों को प्रत्यक्ष रूप से मिलेगा।

(ङ) काले धन के संचालन के कारण अर्थव्यवस्था में कई विसंगतियां आ गई हैं, इसे खत्म करने का प्रयास तभी पूर्ण सफल होगा जब लोग पुराने कालेधन को नई करेंसी में कन्वर्ट न कर सकें। इसीलिए सरकार कुछ कठोर नियमावलियों को ला रहीं हैं।

(च) करापूर्ति में वृद्धि और अधिक संसाधनों से. सरकार भारी निवेश कर सकेगी और सामाजिक क्षेत्र में व्यय से आम आदमी के जीवन की उत्कृष्टता में भी सुधार आएगा।

(छ) जीएसटी के कार्यान्वयन से अप्रत्यक्ष करों में कमी आएगी। इसके लिए सही इकोसिस्टम की आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार वातावरण बना रही है, ताकि लेन-देन को समुचित पारदर्शी रूप से रिकार्ड किया जा सके।

काले धन के उन्मूलन और भ्रष्टावार से लड़ाई लड़ले के लिए विमुद्रीकरण एक बड़ी योजना का हिस्सा है। यह देश के सभी भौगोलिक हिस्सों में एवं समाज के आम आदमी के आर्थिक विकास के लिए समान एवं पारदर्शी अवसरों को प्रदान करने की प्रक्रिया का एक जरिया है।

(लेखक भाजपा के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता है)

सबल विदेश नीति, सक्षम अर्थव्यवस्था

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

मोदी के प्रयासों से भारत निवेश और व्यापार के लिए आकर्षक जगह बना

भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य है भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास। भारत 2032 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन कर 175 करोड़ रोजगार के सृजन का लक्ष्य प्राप्तस करना चाहता है तो विदेश नीति को घरेलू आर्थिक सुधारों के साथ जोड़ना जरूरी है। तभी हम विदेशी पूंजी को बड़े पैमाने पर आकर्षित कर पाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने विश्व के महत्वपूर्ण नेताओं के साथ जो व्यक्तिगत घनिष्ठता स्थापित की है, उसने भारत को नया आत्मविश्वास प्रदान किया है। यहां तक कि विश्व की दो बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के साथ संतुलन स्थापित करने में भी भारत के हित को ध्यान में रखा गया है।

यात्राओं का असर

अभी जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन और अमेरिका के आपसी संबंध तनावपूर्ण दिखे, लेकिन भारत के प्रति दोनों का रवैया मैत्रीपूर्ण था। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में कई प्रकार की समस्याएं उभर कर आ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अगर फिर 2008 जैसा संकट आया तो पश्चिमी देशों की सरकारे अपनी वित्तीय संस्थाओं को संभाल नहीं पाएंगी। मोदी जी ने वैश्विक स्तर पर लोगों के मन से यह शंका पूरी तरह निकाल दो है कि भारत आने वाले समय में आर्थिक शक्ति के रूप में नहीं उभर पाएगा। उन्होंने भ्रष्टाचार, पारदर्शिता, व्यापार का सरलीकरण और आर्थिक सुधारों की प्रतिवद्धता को लेकर सभी का भ्रम दूर कर दिया है। सरकार ने कर प्रणाली में सुधार के साथ-साथ कॉरपोरेट कानूनों में बदलाव भी किया है। संसाधनों के निष्पक्ष आवंटन, परियोजनाओं को समयबद्ध सरकारी अनुमति और प्रशासनिक बाधाओं को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए है

मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया, डिजिटल कट इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, स्वच्छ गंगा, नी जीएसटी जैसी नई परियोजनाएं व नीतियां शुरू बदी कर देश के विकास की नई रूपरेखा तैयार की यह है। रुकी हुई परियोजनाओं के पुनर्संचालन व आने विदेशी निवेश संबंधी नीति को उदार बनाकर नहीं भारत में निवेश आसान बना दिया गया है। र्शता, विश्व व्यापार क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार संबंधों व सुधारों समझौतों का महत्व अब बहुपक्षीय समझौतों से न दूर ज्यादा हो गया है। बहुपक्षीय व्यापार संगठनों सुधार पर सभी देशों को एकमत करना कठिन होता बदलाव जा रहा है। इसलिए आसियान, ब्रिक्स और वंटन, अफ्रीकी देशों के संगठन जैसे छोटे-छोटे समूहों अनुमति और द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों को भारत करने के के आर्थिक एवं सामरिक हितों को बढ़ावा देने के लिए अधिक महत्व दिया जा रहा है।

पिछले दो वर्षों में मोदी जी ने 42 से अधिक देशों का दौरा किया, जिनमें हर द्विपक्षीय वार्ता के केंद्र में आपसी आर्थिक विकास को रखा। उनकी पहल से भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल में एकीकृत परिवहन नीति बनी। उत्तर- पूर्व से म्यांमार तक सड़क परियोजना प्रारंभ हुई जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र का तेजी से विकास होगा। द्विपक्षीय पहलकदमियों के तहत मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ वर्षों से लंबित भूमि सीमा विवाद समझौता और सामुद्रिक सीमा समझौता किया। अफगानिस्तान में भारत द्वारा समर्थित विकास परियोजनाओं को गति प्रदान की। भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह के निर्माण का त्रिपक्षीय समझौता (भारत-अफगानिस्तान-ईरान) आने वाले समय में बहुत महत्वपूर्ण होगा।

 भारत-जापान संबंध लगातार मजबूत हो रहा है। जापान हमारे आधारभूत ढांचे के निर्माण में विशेष सहयोगी है। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के साथ प्रगाढ़ संबंधों के चलते जर्मनी भारत की तकनीकी और पूंजीगत जरूरतें पूरी कर रहा है। जर्मनी का नदियों के संरक्षण का अनुभव हमारे गंगा सफाई अभियान के लिए आवश्यक है। फ्रांस के साथ साझा कार्यक्रम के  तहत हमने सौर ऊर्जा समझौता किया है, जिसका मुख्यालय गुरुग्राम, हरियाणा में बनाया गया है।

मोदी जी ने मध्य एशिया के साथ भी रिश्ते बेहतर किए हैं। उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देश हमारी ऊर्जा जरूरतों के लिए अहम हैं। अफ्रीकी देशों के साथ आदान-प्रदान बढ़ाने की दृष्टि से दिल्ली में पिछले साल इनका सम्मेलन आयोजित किया गया था, जो बेहद सफल रहा। मोदी जी ने एक दूरदर्शितापूर्ण कदम उठाते हुए अनिवासी भारतीयों को देश की विकास प्रक्रिया से जोड़ा।

मोदी जी की विदेश नीति के कई सार्थक आर्थिक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। 2015 में भारत विश्व में सबसे ज्यादा एफडीआई प्राप्त करने में सफल हुआ है, जिससे विकास की कई बाधाएं दूर हुई। हमें लगभग 200 अरब डॉलर निवेश का आश्वासन अलग-अलग देशों से प्राप्त हुआ है। 2014 में भारत का कुल आयात-निर्यात क सकल घरेलू उत्पाद का 46 प्रतिशत था, जिसे अगले दशक में दोगुना करने का लक्ष्य है। । 2019 तक हम विश्व के अग्रिम स्टार्टअप वाले . देश बन जाएंगे और व्यापार के क्षेत्र में सरलता – की दृष्टि से 50 वें पायदान के ऊपर आ जाएंगे। देश में 60 फीसदी डिजिटल पेनीटेशन हो । जाएगा। 2022 तक हमारे उद्योग जगत का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 15 पर्सेट से बढ़कर 25 पर्सेट हो जाएगा।

भ्रष्टाचार और काला धन

■ पहले जिन विषयों पर हम बचाव की मुद्रा में थे, उन पर चल रही विश्वस्तरीय चर्चाओं में मोदी जी की पहल साफ नजर आ रही है। जी-20 सम्मेलन में मोदी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भ्रष्टाचार और कालेधन पर जीरो टॉलरेंस होना चाहिए। हमे विनीय चोरों की शरणस्थली टैक्स हैवन समाप्त करने हैं और इनको बढ़ावा देने वाली विश्व की कठिन कर संरचना और बैंकिंग प्रणाली को पारदर्शी बनाना है। मोदी जी की ऐसी पहलकदमियों को पूरी दुनिया का समर्थन मिल रहा है।

(लेखक बीजेपी के आर्थिक मामलो के प्रवक्ता हैं)

अधिग्रहण पर भ्रामक प्रचार

भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर विपक्षी दलों की आपत्तियों को आधारहीन मान रहे हैं –

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर विपक्ष के तेवर काफी आक्रामक हो गए है। कई विपक्षी पार्टियों ने पैदल मार्च कर राष्ट्रपति को इसुके विरोध में ज्ञापन सौपा। उनका दावा है कि वर्तमान संशोधनों से इस विधेयक का स्वरूप किसान विरोधी हो जाएगा। जब भाजपा एक अध्यादेश के तहत संशोधन दिसंबर में लाई थी तो चारों तरफ इसका विरोध हुआ था। इसी को ध्यान में रखकर यह बताना आवश्यक है कि अध्यादेश लाना कानूनो आवश्यकता थी। भूमि अधिग्रहण विधेयक 2013 में एक क्लॉज था जिसके तहत 13 पूर्व कानूनों पर नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू नहीं होता। इसलिए उन 43 एक्ट के तहत अधिग्रहीत की गई भूमि पर मुआवजा पुराने रेट से ही किसानों को मिलता अगर उसको नए एक्ट के तहत 31 दिसंबर 2014 तक नहीं लाया जाता।

नए कानून के तहत किसानों को ज्यादा मुआवजा मिले. इसके लिए अध्यादेश लाना जरूरी हो गया था। यह किसानों के हित की बात थी। अध्यादेश के बाद जब संशोधन विधेयक संसद में लाया गया तो हर जगह इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं हुई। हर जगह कहा गया कि यह संशोधन किसान विरोधी है जबकि स्थिति ऐसी नहीं है। संशोधन किसान विरोधी नाहीं है। पाटी नेतृत्व को लगा कि यह सब भ्रामक स्थितियों के कारण है। इसमें विरोधी दलों का दुष्प्रचार भी शामिल है। भाजपा ने महसूस किया कि किसानों से सीधी बात करनी चाहिए और उनकी जरूरतों पर चर्चा करनी चाहिए। किसान एवं किसान संगठनों से सीधी वार्ता एवं उनके सुझशवों को शामिल करने के लिए भाजपा ने छह सदस्यीय भूमि अधिग्रहण समिति का गठन किया। अलग-अलग संशोधनों पर उनके विचारों को शामिल कर ही रिपोर्ट देनी थी, जो उस समिति ने दी और सरकार ने इस संशोधन विधेयक में कुल नौ और संशोधन पेश करके लोकसभा में पारित करवाया।

रिपोर्ट में हमने कुछ समस्याएं बताई थी। आम तौर से आप देखेंगे तो किसान इस एक्ट के तहत भूमि अधिग्रहण के पक्ष में है। वे यह भी जानते हैं कि अगर इसमें सरकार थोड़ा संशोधन नहीं करती तो वर्तमान कानून में इतनी पेचीदगियां है कि कोई अधिग्रहण के लिए सामने नहीं आएगा और अगर यह प्रक्रिया नहीं होती है तो आज जो खेती का हाल है उससे जीविका चलाना मुश्किल है। भूमि अधिग्रहण एक्ट 2013 के बारे में सभी की मान्यता है कि यह किसानों के हित में है। यह जानना आवश्यक है कि उसमें भी सरकारी परियोजनाओं के लिए भू-स्वामी की सहमति का कत्र्याज नहीं है।

उसमें केवल दो प्रकार के अधिग्रहणों के लिए किसानों की सहमति की बात यो। पहला अगर सरकार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहीत करती है तो ही 70 प्रतिशत भू स्वामियों से सहमति लेने की आवश्यकता थी और अगर सरकार किसी प्राइवेट परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहीत करती है तो उसमें 80 प्रतिशत भू-स्वामियों की सहमति की जरूरत थी। इसके अलावा अगर सरकार अपने लिए नौ क्षेत्रों की परियोजनाओं में किसी भूमि का अधिग्रहण करती तो उसमें सहमति वाला क्लॉज नहीं था। यह अधिग्रहण सरकारी प्रोजेक्ट के लिए है, जिसमें किसानों की रसहमति की आवश्यकता नाहीं थी। पुराने एक्ट के 9 क्षेत्र जिसमें सहमति जरूरी नहीं है इसमें अब केवल 5 और आवश्यक क्षेत्रों को जोड़ा है।

पूर्व में कुछ आवश्यकताओं के लिए भूमि अधिग्रह्नण पर सहमति नहीं चाहिए थी। पहली सुरक्षा संबंधी आवश्यकता के लिए। दूसरी आधारभूत ढांचे के लिए। तीसरी कृषि क्षेत्र की आवश्यकताओं के लिए। चौथी इंडस्ट्रीषल कोरिडोर के लिए। पांचवीं सामरिक प्रयोजनों या भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा अथवा राज्य पुलिस, जनररुधारण की सुरक्षा के महत्वपूर्ण कार्य के लिए। छठवीं भारत सरकार के के आर्थिक कार्य, कृषि प्रसंस्करण शैक्षणिक और अनुसंधान स्कीमों इत्यादि के लिए।

सातवी परियोजना से प्रभावित कुटुबों की पुनर्वास परियोजना के लिए। आठवीं विशेष वर्ग के लिए और गृह निर्माण परियोजना। नौवीं निर्धन, भूमिहीन या प्राकृतिक आपदा से प्रभावित व्यक्तियों के लिए। इसलिए स्पष्ट होना चाहिए कि सरकार ने अब इसमें पांच नई आवश्यकताओं को ही सम्मिलित किया है। बिना सहमति से भूमि अधिग्रहीत किए जाने वाले जो पांच वर्ग है उनमें इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, इडस्ट्रियल कोरिडोर जैसे बिंदुओं को और भी सौमित किया गया है। इसे सरकार ने माना कि इंडस्ट्रीयल कोरिडोर के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर से ज्यादा का क्षेत्र अधिग्रहीत नहीं किया जाएगा। निजी-सार्वजनिक भागीदारी वाली परियोजनाएं जिसमें भूमि का स्वामित्व तो सरकार के पास ही रहेगा उसमें भी सामाजिक ढांचागत परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहीत करने का अधिकार सरकार ने अपने पास से हटा लिया है। निजी अस्पताल और निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए भूमि अधिग्रहीत नहीं की जाएगी।

कुछ लोगों का इस पर मतभेद है कि सरकार ने सामाजिक प्रभाव आकलन की आवश्यकता को भी हटाया है। यह धारणा सही नहीं। सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि परियोजना के लिए जितनी जमीन मांगी गई है, क्या वास्तव में उतनी जमीन की आवश्यकता है और इतनी जमीन ही अधिग्रहीत की जाए जितनी कम से कम आवश्यक हो। देश में जितनी बंजर भूमि है उसका सर्वेक्षण कर एक ‘लैंड बैंक’ बनाया जाए जिसमें परियोजनाओं को लगाने की छूट हो। इस सारी बंजर भूमि की जानकारी संलग्नक में दी जाए। अधिग्रहीत क्षेत्र में खेतिहर मजदूर के परिवार के कम से कम एक सदस्य को परियोजना में रोजगार देना आवश्यक किया गया है।

फिर भी अगर सबका विचार बनेगा तो सामाजिक प्रभाव आकलन का संशोधित रूप लागू किया जा सकता है। संशोधनों के तहत अब बिल में किसानों की ज्यादातर बात मान ली गई है। अब जो विपक्ष का मार्च है वह केवल राजनीति के तहत ही लगता है, क्योंकि जिला स्तर पर किसानों की शिकायतों के निस्तारण के लिए ट्रिब्यूनल का गठन करने की बात और उसकी सुनवाई भी जिला स्तर पर ही किए जाने का प्रावधान और साथ में राज्य सरकारों को इस संशोधन को लागू करने या न करने की स्वतंत्रता देकर केंद्र सरकार ने राज्यों को काफी स्वतंत्रता दे दी है। अब इस आदोलन की आवश्यकता नहीं है।

किसान जानते है कि अगर सरकार संशोधन नहीं करती तो वर्तमान कानून में इतनी पेचीद गियां हैं कि कोई अधिग्रहण के लिए सामने नहीं आएगा

(लेखक भाजपा की भूमि अधिग्रहण समिति के सदस्य हैं)