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Blogspot – Page 22 – Gopal Krishna Agarwal

गौ संवर्धन एवं कृषि

वैदिक काल में समद्ध खेती का मुख्य कारण कृषि का गौ आधारित होना था। प्रत्येक घर में गोपालन एवं पंचगव्य आधारित कृषि होती थी, तब हम विश्व गुरू के स्थान पर थे। भारतीय मनीषियों ने संपूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास एवं संवर्धन के लिये आवश्यक समझा और ऐसी व्यवस्थाऐं विकसित की थी जिसमें जन मानस को विशिष्ट शक्ति बल तथा सात्विक वृद्धि प्रदान करने हेतु गौ दुग्ध, खेती के पोषण हेतु गोबर-गौमूत्र युक्त खाद, कृषि कार्यो एवं भार वहन हेतु बैल तथा ग्रामद्योग के अंतर्गत पंचगव्यों का घर-घर में उत्पादन किया जाता था। प्राचीन काल से ही गोपालन भारतीय जीवन शैली व अंर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग रहा है।

वर्तमान में मनुष्य को अनेकों समस्याओं जैसे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण असंतुलन, जल का दूषित होना, कृषि भूमि का बंजर होना आदि से जूझना पड़ रहा हैं। इन विपरित परिस्थतियों में हमें अपने आप को स्वस्थ एवं आर्थिक रूप से सम्पन्न रखना है तो दैनिक जीवन में गौ-दूग्ध एवं पंचगव्य उत्पादों का तथा कृषि में गौबर एवं गौमूत्र से उत्पादित कीटनाशकों एवं जैविक खादों का उपयोग बढ़ाना होगा।

भारत वर्ष ही एक एैसा राष्ट्र है जिसमें दूध उत्पादन लगातार बढ़ रहा है। आज हमारा देश संसार में सर्वाधिक 140.3 मिलीयन टन दूध उत्पादन करने वाला देश हैं। जो 2019-20 तक 177 मिलीयन टन बढकर हो जाने का अनुमान है। भारत में प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 290 ग्राम है जो संसार के औसत उपलब्धता से ज्यादा हैं। पिछले 5 वर्षो में भारत का दूध उत्पादन 25 मिलीयन टन बढ़ा, इसकी तुलना में अमेरिका में 6.6 मिलीयन टन, चीन में 5.4 मिलीयन टन एवं न्यूजीलैन्ड में2.7 मिलीयन टन ही बढ़ा। इससे सिद्ध होता है कि हमारा पशुपालक एवं पशुधन किसी से कम नहीं है।
यद्यपि हमारे पास 304 मिलीयन का विशाल दुधारू पशुधन है, जिसमें 16.60 करोड़ भारतीय नस्लकीदेशी व 3.3 करोड़ संकर नस्ल की गाये है तथा 10.53 करोड़ भैसे है, जिनसे 7 करोड़ पशुपालकों द्वारा प्रतिदिन 33 करो़ड लीटर दूध का उत्पादन किया जाता है, जो अपने आप में एक कीर्तिमान हैं। 

समय समय पर निति निर्धारकों एवं चिंतको द्वारा ऐसे विचार व्यक्त किये जाते रहे है कि भारत में दूध उत्पादन में ब़ढ़ोतरी करने हेतु संकर गायों की संख्या बढ़ानी होगी। तथापि देशी गायों की उत्पादकता को उत्तरोतर बढ़ाने के उपाय करने होंगें। भारतीय गौवंश गुणवत्ता के आधार पर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ और सभी विदेशी नस्लों में श्रेयस्कर है। भारत में अधिक दूध देने वाली नस्लें भी है गुजरात राज्य की गीर नस्ल की गाय ने ब्राजील में आयोजित विश्व प्रतियोगिता में 64 लीटर दूध देकर विश्व कीर्तिमान स्थापित किया है। भारतीय नस्लों की गायों का दूध अधिक गुणकारी है जिसमें प्रोटीन ।.2 किस्म की होती है, जिसकी प्रकृति धमनियों में रक्त जमाव विरोधी, कैसंर विरोधी एवं मधुमेह विरोधी होती है, इसलिए देशी गाय का दूध दौहरा लाभदायक है वहीं भारतीय गाय के दूध में बच्चों के दिमाग की वृद्धि करने हेतु आवश्यक तत्व सेरेब्रोसाईड, कन्जूगेटेड लिनोलिक ऐसिड एवं ओमेगा थ्री फेटी ऐसिड आवश्यक अनुपात में पाया जाता है।

भारतीय गौवंश में 34 निर्धारित एवं 30 स्थानीय नस्लें अपने-अपने प्रजनन क्षैत्रों में बखूबी योगदान दे रही है। साहीवाल, गीर, रेडसिन्धी, राठी और थारपारकर नस्ल की गायें प्रजनन एवं उत्पादन दोनों में श्रेष्ठ है। उचित प्रबन्धन से इन नस्लों की गायें 12-18 लीटर दूध प्रतिदिन देते हुए दूध की जरूरत को पूरा कर, ग्रामीणों को वर्षपर्यन्त रोजगार एवं भूमि को उपजाऊ बनाऐ रखने के लिए जैविक खाद उपलब्ध करवा सकती है।

हमारे पास देशी गौवंश में 4.80 करोड़ दुधारू गायों सहित 8.92 करोड़ व्यस्क मादा देशी गौवंश है,जिनकी उत्पादकता बढ़ाकर, दो ब्यांत का अन्तराल कम कर दूध एवं दूध उत्पादों की बढ़ती मांगो का पूरा किया जा सकता है । लेकिन हमारे पशुपालकों द्वारा पुराने प्रचलित सिद्धातों जैसे केवल भूसा या कड़वी ही खिलाना, घरों में उपलब्ध एक या दो खाद्यान्न वह भी अल्प मात्रा में दूध देते समय अपने सुविधा अनुसार खिलाना, पशु प्रबंधन जैसे-

ब्याने के पूर्व नहीं खिलाना, ब्याने के 2 माह बाद ग्याभिन नहीं करवाना, नियमित रूप से नमक एवं खनिज मिश्रण नहीं देना, बिमार पशुओं का उचित उपचार नहीं करवाना आदि को अपनाया जाता है,जिनके परिणामस्वरूप पीक दूध उत्पादन का कम होना या एक ब्यांत में कम दिनों तक कम दूध का देना एवं दो ब्यांत का अन्तराल बढ जाने से कम दूध उत्पादन होने की बजह से गोपालन व्यवसाय अलाभकारी सिद्ध होता जा रहा है, जबकि देशी गायों की क्षमता प्रतिदिन 10 से 12 लीटर दूध देते हुये 1 ब्यात में 2000 से 2500 लीटर दूध देने एवं प्रतिवर्ष ब्याने की हैं। इस क्षमता का दौहन करने की आवश्यकता है।

अनुसंधान परिणाम दर्शाते है कि संतुलित आहार से दूध उत्पादन बढ़ता है, उत्पादन लागत घटती हैं तथा मीथेन गैस उत्सर्जन में कमी आती है। दुधारू गायों को संतुलित आहार खिलाये बिना केवल अनुवांशिक क्षमता बढ़ा कर बेहतर दूध प्राप्त करना संभव नहीं है। आमतौर पर दूधारू गायों को स्थानीय स्तर पर उपलब्ध पशु खाद्य पदार्थ, घास एवं सूखे चारे तथा फसल अवशेष ही खिलाये जाते हैं, जिनके फलस्वरूप उनका आहार प्रायः असंतुलित रहता है और उसमें प्रोटीन, ऊजो, खनिज तत्वों तथा विटामिनों की मात्रा कम या ज्यादा हो जाती हैं। असंतुलित आहार न केवल गायों के स्वास्थ्य एवं उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है अपितु दूग्ध उत्पादन में होने वाली आय को भी प्रभावित करता है, क्योकि आहार खर्च में दुग्ध उत्पादान की कुल लागत का 70 प्रतिशत हिस्सा होता हैं। पशुओं की प्रजनन एवं दूध उत्पादन क्षमता में सुधार लाने, दो ब्यात का अन्तराल कम करने तथा दूध उत्पादको की शुद्ध आय में बढ़ोतरी हेतु दूध उत्पादकों को संतुलित आहार के बारे में शिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है।

हरा चारा पशुओं के लिये पोषक तत्वों का एक किफायती स्त्रोत है परन्तु इसकी उपलब्धता सीमित है। चारे की खेती के लिये सीमित भूमि के कारण, चारा फसलों एवं आम चारागाह भूमि से चारे की उत्पादकता में सुधार पर ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है साथ ही अतिरिक्त उत्पादित हरे चारे के संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करना होगा, जिससे कि हरे चारे की कमी के समय इनकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके।

विभिन्न प्रयोगों में पाया गया है कि खनिज तत्वों की कमी वाले आहारों का निरन्तर उपयोग करते रहने से पशु शरीर में उपस्थित खनिजों के क्रियात्मक संयोगों एवं विशिष्ठ सांद्रताओं में परिवर्तन उत्पन्न हो जाते है कई प्रकार की व्याधिया उत्पन्न हो जाती है। पशुओं को दूध देने, पुनः ग्याभिन होने एवं ब्याने के दौरान प्रोटीन व ऊर्जा की ज्यादा आवश्यकता पड़ने के कारण खनिज तत्वों एवं विटामिनों की आवश्यकता बढ़ जाती है। अतः पशुओं की सामान्य वृद्धि दर, प्रजनन क्षमता एवं उत्पादन के स्तर को बनाये रखने के लिए सभी खनिज तत्व प्रर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाना आवश्यक है। इन दिनों अधिकांश गौपालकों द्वारा महसूस किया जाने लगा है कि गायों को पर्याप्त मात्रा में दाना/बाटा/चारा देने के उपरान्त भी दूध उत्पादन में कमी, प्रजनन क्षमता में कमी, अधिक उम्र में परिपक्व होना, समय पर ग्याबिन नहीं होना आम बात हो गई है।

दूध के साथ निकलने वाले खनिजों की पूर्ति करने एवं पशु शरीर की सामान्य वृद्धि व उत्पादन के स्तर को बनाये रखने, परासरण दाब एवं तापमान को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से पशु की इच्छा अनुसार या पच्चीस से 30 ग्राम साधारण नमक एवं 40-50 ग्राम कम्पलीट खनिज मिश्रण अवश्य ही दिया जाना चाहिये।

गौ पालन और गाय के रखरखाव में कई सारी कमियों के बावजूद आज भारत विश्व का प्रथम स्थान वाला दुध उत्पादित देश है। अगर हम अपनी इन कमियों को कम करने की कोशिश करते है तो हम दुध उत्पादन की क्षमता का अंदाजा भी नहीं लगा सकते है। गाय के पालन और रखरखाव में बुनियादी चीजों को जोड़ने से देश की न सिर्फ अर्थव्यवस्था को फायदा होगा, बल्कि भारत की रीड़ भारतीय किसानो को भी पैकेट खाद्य और नए तकनीक के उपकरणों पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा। जो जमीन को समय अंतराल पर बंजड़ बना देते है। गौपालन एंव गौसंवर्धन में जागरुकता लाकर हम दुध उत्पादन में विश्व नम्बर एक पर बने रहने वरण और कई क्षेत्र में कई देशों से आगे निकल सकते है।

गौ हत्या बन्दी – ऐतिहासिक आंकलन

गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्‍या व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। दुधारू पशु होने के कारण यह बहुत उपयोगी घरेलू पशु है। गाय न सिर्फ अपने जीवन में लोगों के लिए उपयोगी होती है वरन मरने के बाद भी उसके शरीर का हर अंग काम आता है। गाय का चमड़ा, सींग, खुर से दैनिक जीवनोपयोगी सामान तैयार होता है। गाय की हड्‍डियों से तैयार खाद खेती के काम आती है। परन्तु इसका कतई मतलब यह नहीं है कि इन चीजो की प्रप्ति के लिए समय से पहले ही इसकी हत्या कर दी जाए और तर्क यह दिया जाए की इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा हो रहा है। भारत और दुनिया के कई ऐसी जगह है जहां गायों की निर्मम हत्या कि जा रही है। हालाकि इसे रोकने के लिए हिन्दुओं के द्वारा कई वर्षों से प्रयास किया जाता रहा है। इसी संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण बाते।।

इस स्थिति के सही आकलन के लिए गोहत्या बन्दी पर चल रहे आन्दोलनों के इतिहास को विस्तार से समझना आवश्यक है।

ग़ौरतलब है कि देश में बड़े पैमाने पर गौकशी होती है। यह सब गौ मांस और उसके अवशेषों के लिए किया जाता है, जिससे भारी मुनाफ़ा होता है। मांस के लिए गायों को तस्करी के ज़रिए पड़ोसी देशों में भेजा जाता है। इस सबकी वजह से सवा अरब से ज़्यादा की आबादी वाले इस देश में दुधारू पशुओं की तादाद महज़ 16 करोड़ ही है। पिछने कई साल के आकड़ो में केंद्र सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ़ एनिमल हसबेंडरी के मुताबिक़, 1951 में40 करोड़ की आबादी पर 15 करोड़ 53 लाख पशु थे। इसी तरह 1962 में 93 करोड़ की आबादी पर 20 करोड़ 45 लाख, 1977 में 19 करोड़ 47 लाख, 2003 में 18 करोड़ 51लाख 80 हज़ार पशु बचे और 2009 में यह तादाद घटकर महज़ 16 करोड़ रह गई। बरस दर बरस इस संख्‍या में गिरावट दर्ज की जा रही है। राजधानी दिल्ली में 19.13 फ़ीसदी दुधारू पशु कम हुए हैं, जबकि गायों की दर 38.63 फ़ीसदी घटी है। फौरी तौर पर उपरोक्‍त आंकड़ों पर नज़रे फिराने भर से भी स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाती है।

10 सितम्बर, 1952 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री माधव सदाशिव गोलवलकर ‘श्री गुरू जी’ ने गौहत्या बन्दी कानून पर देश भर से एकत्रित किए गए लगभग 1 करोड से अधिक हस्ताक्षर तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को सौंपा। 22 फरवरी, 1953 को आर्यसमाज की सार्वदेशिक प्रतिनिधि सभा में गौहत्या बन्दी पर प्रस्ताव पारित किया। 4फरवरी, 1954 को स्वामी प्रभूदत्त ब्रह्मचारी जी की प्रधानता में एक अखिल भारतीय गौहत्या विरोधी समिति बनी और देश भर में जनान्दोलन हुए। जनान्दोलन के भारी दबाव में 5सितम्बर, 1955 को उत्तरप्रदेश सरकार तथा 5 अक्टूबर, 1955 को बिहार सरकार द्वारा गौहत्या निवारण कानून पारित कर दिया गया. देश की सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष गौहत्या बन्दी का विषय आया तो सर्वोच्च न्यायालय की पूरी पीठ ने 23 अप्रैल, 1958 को अपना निर्णय गौहत्या बन्दी के पक्ष में दिया। गाय, बछडे की हत्या को सम्पूर्णतया बन्द करने की कार्यवाही को वैध माना गया और मुसलमानों की गौहत्या करने की धार्मिक अधिकार वाली बात को अमान्य कर दिया गया. उपयोगी पशुओं की हत्या पर रोक स्वीकार कर ली गई परंतु अनुपयोगी पशुओं की हत्या पर छूट रही।

31 जनवरी, 2010 को तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटिल को देश भर के लगभग 10करोड से अधिक हस्ताक्षरित ज्ञापन सौंपा गया जिसमें से लगभग 11 लाख मुस्लिम तथा लगभग 76 हजार ईसाई प्रतिनिधियों के भी हस्ताक्षर थे। गाजियाबाद के ग्लोबल फूड्स लिमेटेड, डेराबस्सी जैसे अनेक कत्लखानों के विरुद्ध अभी भी गौहत्या बन्दी को लेकर देश भर में आन्दोलन चल रहा है।

तो वहीं भाजपा की सरकार आने से देशवासीयों में एक आशा की किरण जगी है। इसकी वजह यह है कि जन्माष्टमी के अवसर पर मोदी जी ने लोगों से आग्रह किया था कि वे गौहत्या को बढ़ावा दे रही ‘गुलाबी क्रांति’ (मांस व्यापार प्रसार) को अस्वीकार कर दें।

प्रधानमंत्री कार्यालय ने गुजरात जैसे कुछ राज्यों द्वारा अपने यहां लागू किए गए गौहत्या प्रतिबंध कानून पर आधारित मॉडल बिल को अन्य राज्यों के विचार के लिए जारी करने के संबंध में विधि मंत्रालय से राय मांगी है। इस मॉडल बिल को प्रसारित करने के पीछे प्रधानमंत्री कार्यालय का मकसद अन्य राज्यों में भी इसी प्रकार के कानून को लागू करने पर विचार करने के लिए राज्यों को कहना है।

सरकार की विधि शाखा को भेजे गए पत्र में पीएमओ ने संविधान के एक ऐसे ही प्रावधान का हवाला दिया है जो गौ वध और अन्य दुधारू पशुओं के वध को प्रतिबंधित करता है। संविधान का अनुच्छेद 48 कहता है, राज्य को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से कृषि एवं पशुपालन के प्रयासों को आगे बढ़ाना चाहिए और विशेष रूप से नस्लों में सुधार और उनके संरक्षण, गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू पशुओं और मवेशियों के वध पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। प्रधानमंत्री द्वारा भेजे गए पत्र में यह उल्लेख भी किया गया है कि वर्ष 2005 में उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार द्वारा गौ वध पर प्रतिबंध लगाने के लिए लागू किए गए कानून की वैधता को बरकरार रखा था।

जमानत भी नहीं मिलेगी। उत्तर प्रदेश, झारखंड और गुजरात जैसे कई राज्य हैं जिन्होंने गौवध को प्रतिबंधित किया हुआ है। महाराष्ट्र ने हाल ही में इस प्रकार का प्रतिबंध लगाया है। जिसमें यह तय किया गया है कि

·         गायों के खरीद बिकरी पर रोक लगा दि जाएगी।

·         गायों को मार कर उसके मांस के आयात निर्यात पर रोक होगी।

·         और इस कानून को न मानने, गायों की हत्या, और खरीद बिकरी करते पाए जाने वालों को 5 साल की सजा और 10000 रुपए जुर्माना देना होगा, साथ ही यह कानून के अन्तर्गत दोषी को

देश को पूर्ण विकसित बनाने का सपना पूरा करना है तो हमें सबसे पहले गौवंश का विकास एंव सेवा का संकल्प लेना होगा। गौ माता की रक्षा के लिए पूरे समाज को आगे आना चाहिए ताकि गौ हत्या न हो सके।हमें गाय से केवल दूध लेना ही नहीं बल्कि उसकी सेवा करना भी सीखना चाहिए। समय रहते अगर चेता नहीं गया तो खराब परिणाम ही मिलेंगे।इसमें फिर कोई आश्‍चर्य नहीं होना चाहिए। किसी भी बेजुबान की बेवजह या फिर अपने निजी स्‍वार्थ के लिए उसकी हत्‍या कर देना कायरता का दूसरा रूप है। और अन्त में गौहत्या बन्दी का मूल्यांकन केवल आर्थिक आधार पर नहीं हो सकता यह करोड़ो हिन्दुओं की आस्था का सवाल है।

लेखक

गोपाल कृष्णा अग्रवाल

राष्ट्रीय प्रवक्ता भाजपा

देसी गायों का महत्व

हृदय रोग से बचाता हें गाय माता का दूध

भारतीय संस्कृति में गाय का बेहद उच्च स्थान है। इसे कामधेनु कहा गया है। इसका दूध बच्चों के लिए बेहद पौष्टिक माना गया है और बुद्धि के विकास में कारगर भी। उसमें भी देसी नस्ल की गाय का दूध ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। आखिर देसी नस्ल की गाय में क्या खूबियां होती हैं जो उसके दूध का इतना महत्व होता है। गाय के दूध का महत्व उसमें मौजूद तत्व बढ़ाते हैं।सेहत के लिहाज से गाय का दूध फायदेमंद तो है ही, कुछ वर्ष पहले एक वैज्ञानिक ने दावा किया है कि हिमाचल प्रदेश में पली-बढ़ी गाय के दूध में पाया जाने वाला प्रोटीन हृदय की बीमारी, मधुमेह से लड़ने में कारगर और मानसिक विकास में सहायक होता है।गाय और गाय के दूध के बारे जितना कहा जाए उतना ही कम होगा। भारत और खासकर हिन्दू धर्म में तो गाय के महान और अनमोल गुणों को देखते हुए उसे मां, देवी और भगवान का दर्जा दिया गया है, जो कि उचित भी है। भारतीय गायों की एक खाशियत ऐसी है जो दुनिया की अन्य प्रजातियों की गायों में नहीं होती। भारतीय नश्ल की गायों के शरीर में एक सूर्य ग्रंथि यानी सन ग्लैंड्स पाई जाती है। इस सूर्य ग्रंथि की ही यह खाशियत है कि यह उसके दूध को बेहद गुणकारी और अमूल्य औषधी के रूप में बदल देती है।

देसी गायों के दूध में ए-2 बीटा प्रोटीन मिलता है जो हृदय की बीमारी, मधुमेह और मानसिक रोग के खिलाफ सुरक्षा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हॉलस्टीन और जर्सी नस्ल की गायों में यह प्रोटीन नहीं पाया जाता।गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। आयुर्वेद के अनुसार गाय के ताजा दूध को बहुत उत्तम माना जाता है। गाय के दूध में स्वर्ण तत्व होता है जो शरीर के लिए काफी शक्तिदायक और आसानी से पचने वाला होता है। गाय की गर्दन के पास एक कूबड़ होती है जो ऊपर की ओर उठी और शिवलिंग के आकार जैसी होती है। गाय की इसी कूबड़ के कारण उसका दूध फायदेमंद होता है। वास्तव में इस कूबड़ में एक सूर्यकेतु नाड़ी होती है। यह सूर्य की किरणों से निकलने वाली ऊर्जा को सोखती रहती है, जिससे गाय के शरीर में स्वर्ण उत्पन्न होता रहता है। जो सीधे गाय के दूध और मूत्र में मिलता है। इसलिए गाय का दूध भी हल्का पीला रंग का होता है। यह स्वर्ण शरीर को मजबूत करता है, आंतों की रक्षा करता है और दिमाग भी तेज करता है। इसलिए गाय का दूध सबसे ज्यादा अच्छा माना गया है।

आइये जाने देसी गायों के बारे में—-

क्या हें ए1ए2 दूध विज्ञान :—.

का छोटा प्रोटीन स्वच्छ्न्द रूप से मानव शरीर में अपना अलग आस्तित्व बना लेता है. इस 7 एमीनोएसिड के प्रोटीन को बीसीएम 7 BCM7 (बीटा Caso Morphine7) नाम दिया जाता है. जीव विज्ञान के अनुसार भारतीय गायों के 209 तत्व के डीएनए DNA में 67 पद पर स्थित एमिनो एसिड प्रोलीन Proline पाया जाता है. इन गौओं के ठंडे यूरोपीय देशों को पलायन में भारतीय गाय के डीएनए में प्रोलीन Proline एमीनोएसिड हिस्टीडीन Histidine के साथ उत्परिवर्तित हो गया. इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक भाषा में म्युटेशन Mutation कहते हैं.

 (देखें-Kwai-रुको KF, Grosclaude F.2002:. दूध प्रोटीन की जेनेटिक बहुरूपता. में: पीएफ फॉक्स औरMcSweeney PLH सम्पादित लेख “ उन्नत डेयरी रसायन विज्ञान ,737-814, Kluwer शैक्षणिक / सर्वागीण सभा प्रकाशक, न्यूयॉर्क)

1. मूल गाय के दूध में Proline अपने स्थान 67 पर बहुत दृढता से आग्रह पूर्वक अपने पडोसी स्थान 66पर स्थित अमीनोएसिड आइसोल्यूसीन Isoleucine से जुडा रहता है. परन्तु जब प्रोलीन के स्थान पर हिस्टिडीन आ जाता है तब इस हिस्टिडीन में अपने पडोसी स्थान 66 पर स्थित आइसोल्युसीन से जुडे रहने की प्रबल इच्छा नही पाई जाती। इस स्थिति में यह एमिनो एसिड Histidine, मानव शरीर की पाचन क्रिया में आसानी से टूट कर बिखर जाता है। इस प्रक्रिया से एक 7 एमीनोएसिड

 2. BCM7 एक Opioid (narcotic) अफीम परिवार का मादक तत्व है। जो बहुत शक्तिशाली Oxidantऑक्सीकरण एजेंट के रूप में मानव स्वास्थ्य पर अपनी श्रेणी के दूसरे अफीम जैसे ही मादक तत्वों जैसा दूरगामी दुष्प्रभाव छोडता है. जिस दूध में यह विषैला मादक तत्व बीसीएम 7 पाया जाता है, उस दूध को वैज्ञानिको ने ए1 दूध का नाम दिया है. यह दूध उन विदेशी गौओं में पाया गया है जिन के डीएन मे 67स्थान पर प्रोलीन न हो कर हिस्टिडीन होता है.

आरम्भ में जब दूध को बीसीएम7 के कारण बडे स्तर पर जानलेवा रोगों का कारण पाया गया तब न्यूज़ीलेंड के सारे डेरी उद्योग के दूध का परीक्षण आरम्भ हुआ। सारे डेरी दूध पर करे जाने वाले प्रथम अनुसंधान मे जो दूध मिला वह बीसीएम7 से दूषित पाया गया। इसी लिए यह सारा दूध ए1 कह्लाया

तदुपरांत ऐसे दूध की खोज आरम्भ हुई जिस मे यह बीसीएम7 विषैला तत्व न हो. इस दूसरे अनुसंधान अभियान में जो बीसीएम7 रहित दूध पाया गया उसे ए2 नाम दिया गया. सुखद बात यह है कि विश्व की मूल गाय की प्रजाति के दूध मे, यह विष तत्व बीसीएम7 नहीं मिला,

इसी लिए देसी गाय का दूध ए2 प्रकार का दूध पाया जाता है.

इसी लिए देसी गाय का दूध ए2 प्रकार का दूध पाया जाता है. देसी गाय के दूध मे यह स्वास्थ्य नाशक मादक विष तत्व बीसीएम7 नही होता. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से अमेरिका में यह भी पाया गया कि ठीक से पोषित देसी गाय के दूध और दूध के बने पदार्थ मानव शरीर में कोई भी रोग उत्पन्न नहीं होने देते। भारतीय परम्परा में इसी लिए देसी गाय के दूध को अमृत कहा जाता है. आज यदि भारतवर्ष का डेरी उद्योग हमारी देसी गाय के ए2 दूध की उत्पादकता का महत्व समझ लें तो भारत सारे विश्व डेरी दूध व्यापार में सब से बडा दूध निर्यातक देश बन सकता है.

देसी गाय की पहचान—–

प्रामाणिक रूप से यह जानने के लिए कि कौन सी गाय मूल देसी गाय की प्रजाति की हैं गौ का डीएनए जांचा जाता है. इस परीक्षण के लिए गाय की पूंछ के बाल के एक टुकडे से ही यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह गाय देसी गाय मानी जा सकती है या नहीं . यह अत्याधुनिक विज्ञान के अनुसन्धान का विषय है.

पाठकों की जान कारी के लिए भारत सरकार से इस अनुसंधान के लिए आर्थिक सहयोग के प्रोत्साहन से भारतवर्ष के वैज्ञानिक इस विषय पर अनुसंधान कर रहे हैं और निकट भविष्य में वैज्ञानिक रूप से देसी गाय की पहचान सम्भव हो सकेगी. इस महत्वपूर्ण अनुसंधान का कार्य दिल्ली स्थित महाऋषि दयानंद गोसम्वर्द्धन केंद्र की पहल और भागीदारी पर और कुछ भारतीय वैज्ञानिकों के निजी उत्साह से आरम्भ हो सका है.

आज सम्पूर्ण विश्व में यह चेतना आ गई है कि बाल्यावस्था मे बच्चों को केवल ए2 दूध ही देना चाहिये. विश्व बाज़ार में न्युज़ीलेंड, ओस्ट्रेलिया, कोरिआ, जापान और अब अमेरिका मे प्रमाणित ए2 दूध के दाम साधारण ए1 डेरी दूध के दाम से कही अधिक हैं .ए2 दूध देने वाली गाय विश्व में सब से अधिक भारतवर्ष में पाई जाती हैं. यदि हमारी देसी गोपालन की नीतियों को समाज और शासन का प्रोत्साहन मिलता है तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ए2 दूध आधारित बालाहार का निर्यात भारतवर्ष से किया जा सकता है. यह एक बडे आर्थिक महत्व का विषय है.

छोटे ग़रीब किसनों की कम दूध देने वाली देसी गाय के दूध का विश्व में जो आर्थिक पक्ष है वह बहुत महत्व हो सकता है। परन्तु दुख इस बात का है कि गाय की कोई भी बात कहो तो उस मे सम्प्रदायिकता दिखाई देती है, चाहे यह कितना भी देश के लिए आर्थिक और समाजिक स्वास्थ्य के महत्व का विषय हो। इस मानसिकता को हम सबको बदलना होगा।

गौ हत्या को रोकना भारतवासियों का संवैधानिक अधिकार है

पहले आप सब ये जान ले भारत मे 3600 कत्लखाने ऐसे हैं जिनके पास गाय काटने का लाइसेन्स है ! इसके अलावा 36000 कत्लखाने गैर कानूनी चल रहे हैं ! प्रति वर्ष ढाई करोड़ गायों का कत्ल किया जा रहा है। भारत में अखिल भारतीय गौ सेवक संघ है और अहिंसा आर्मी ट्रस्ट दोनों ने सुप्रीम कोर्ट मे मुक़द्दमा दाखिल किया और बाद मे पता चला की गुजरात सरकार भी मुक़द्दमे मे शामिल हो गई ! कि गाय और गौ वंश की ह्त्या नहीं होनी चाहिए !

मुक़दमे में कसाईयों का कुतर्क !!

1) गाय जब बूढ़ी हो जाती है तो बचाने मे कोई लाभ नहीं उसे कत्ल करके बेचना ही बढ़िया है! और हम भारत की अर्थ व्यवस्था को मजबूत बना रहे हैं क्यूंकि गाय का मांस निर्यात कर रहे हैं।

2) भारत मे लोगो को रहने के लिए जमीन नहीं है गाय को कहाँ रखें?

3) इससे विदेशी मुद्रा मिलती है।

4) और सबसे खतरनाक कुतर्क जो कसाइयों की तरफ से दिया गया कि गाय की ह्त्या करना हमारे धर्म इस्लाम मे लिखा हुआ।

इन सब कुतर्को का तर्कपूर्वक जवाब दिया गया।

एक स्वस्थ गाय का वजन 3 से साढ़े तीन कवींटल होता है उसे जब काटे तो उसमे से मात्र 70 किलो मांस निकलता है एक किलो गाय का मांस जब भारत से निर्यात होता है तो उसकी कीमत है लगभग 50 रुपए ! तो 70 किलो का 50 से गुना को ! 70 x 50 = 3500 रुपए। फिर हड्डियाँ निकलती है वो भी 30-35 किलो हैं। जो 1000 -1200 के लगभग बिक जाती है। तो कुल मिलकर एक गाय का जब कत्ल करे और मांस,हड्डियाँ खून समेत बेचें तो सरकार को या कत्ल करने वाले कसाई को 5000 रुपए से ज्यादा नहीं मिलता।और अगर इसको जिंदा रखे तो कितना मिलेगा? तो उसका कैल्क्यलैशन ये है

एक स्वस्थ गाय एक दिन मे 10 किलो गोबर देती है और ढाई से 3 लीटर मूत्र देती है। गाय के गोबर सेfertilizer (खाद) बनती है !जिसे organic खाद कहते हैं। वैज्ञानिको ने कहा की इसमें 18 micronutrients (पोषक तत्व )है। जो सभी खेत की मिट्टी को चाहिए जैसे मैगनीज है,फोस्फोरस है,पोटाशियम है,कैल्शियम,आयरन,कोबाल्ट, सिलिकोन आदि | गाय का खाद रासायनिक खाद से 10 गुना ज्यादा ताकतवर है। अब बात करते हैं मूत्र की रोज का 2 – सवा दो लीटर और इससे ओषधियाँ बनती है। डाइअबीटीज़,की ओषधि बनती है ! आर्थ्राइटस,की ओषधि बनती है | ब्रांगकाइटस, टबर्क्यलोसिस, ऐसे 48 रोगो की ओषधियाँ बनती है। अमेरिका में गौ मूत्र पैटन्ट हैं ! और अमरीकी सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र  इम्पॉर्टकरती है और उससे कैंसर की मेडिसन बनाते हैं। गाय के गोबर और मूत्र की बात छोड़ दें तो जो सबसे विषेश है वो है गाय का दुध जो की सबसे ज्यादा मूल्यवान है जिससे कई प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाए जाते है। और रही बात गाय का कत्ल करना हमारा धार्मिक अधिकार तो पुराने दस्तावेज़ जब निकाले गए तो उससे पता चला कि भारत मे जितने भी मुस्लिम राजा हुए एक ने भी गाय का कत्ल नहीं किया ! इसके उल्टा कुछ राजाओ ने गायों के कत्ल के खिलाफ कानून बनाए ! इस्लाम की कोई भी धार्मिक पुस्तक मे नहीं लिखा है की गाय का कत्ल करो। और अंत में सारी दलिलैं के बाद कोर्ट का जज्मन्ट आ गया। ये 61 पनने का  जज्मन्ट है जिसे आप http://judis.nic.in, supremecourtcaselaw.com को लिंक पे जाकर आप देख सकते है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की गाय को काटना सांविधानिक पाप है धार्मिक पाप है ! और सुप्रीम कोर्ट ने कहा गौ रक्षा करना,सर्वंधन करना देश के प्रत्येक नागरिक का सांविधानिक कर्त्तव्य है ! सरकार का तो है ही नागरिकों का भी सांविधानिक कर्तव्य है ! अब तक जो संविधानिक कर्तव्य थे जैसे , संविधान का पालन करना ,राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करना ,क्रांतिकारियों का समान करना ,देश की एकता, अखंडता को बनाए रखना आदि आदि अब इसमे गौ की रक्षा करना भी जुड़ गया है। बावजूद इसके गौ हत्या को टालते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा की भारत की राज्यों की सरकार की जिम्मेदारी है की वो गाय का कत्ल आपने आपने राज्य में बंद कराये और किसी राज्य में गाय का कत्ल होता है तो उस राज्य के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी है।

राष्ट्रीय गोकुल मिशन की सरकारी पहल

केंद्र सरकार ने 28 जुलाई 2014 को स्वदेशी गायों के संरक्षण और नस्लों के विकास को वैज्ञानिक तरीके से प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन (राष्ट्रव्यापी योजना) की शुरुआत की. यह मिशन राष्ट्रीय पशु प्रजनन एवं डेयरी विकास कार्यक्रम (एनपीबीबीडीडी) पर केन्द्रित परियोजना है. इस मिशन का शुभारंभ केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने नई दिल्ली में किया.

इसकी विषेशता इस प्रकार है, 500 करोड़ रुपये की लागत वाले इस मिशन को देशभर में लागू करने के लिए कार्ययोजना तैयार की जा रही है। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत एक हजार गाय पालने वाले सगठनों तथा आश्रमों को सरकार केंद्रीय सहायता देगी।लेकिन इसमें शर्त यह होगी कि 40 प्रतिशत गायें बिना दूध देने वाली बूढ़ी व बीमार होनी चाहिए और 60 प्रतिशत दुधारु होनी चाहिए। मिशन के तहत गौपालन के लिए छतदार आवास, पानी, साफ-सफाई आदी शर्तो का पालन संस्थाओं को करना होगा।

मिशन के उद्देश्य

·         स्वदेशी नस्लों का विकास और संरक्षण.

·         स्वदेशी पशु नस्लों के लिए नस्ल सुधार कार्यक्रम शुरु करना ताकि अनुवांशिक सुधार और पशुओं की संख्या में वृद्धि की जा सके.

·         दूध उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के लिए.

·      नॉन–डेसक्रिप्ट पशुओं का गीर, साहीवाल, राठी, देउनी, थारपारकर, रेड सिन्धी और अन्य कुलीन स्वदेशी नस्लों के जरिए अपग्रेडेशन करना.

·         प्राकृतिक सेवाओँ के लिए उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले सांडों का वितरण.

इस परियोजना के लिए सरकार ने वित्त वर्ष 2014–15 में 150 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. जबकि, 12वीं पचवर्षीय योजना में इस कार्यक्रम पर 500 करोड़ रुपये खर्च किए जाने हैं.

योजना के तहत धन का आवंटन इस प्रकार किया जाएगा

·         एकीकृत स्वदेशी पशु केंद्र जैसे गोकुल ग्राम की स्थापना.

·         उच्च आनुवांशिक योग्यता वाले स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए बुल मदर फार्म्स को मजबूत बनाना.

·         प्रजनन तंत्र में क्षेत्र प्रदर्शन रिकॉर्डिंग (एफपीआर) की स्थापना.

·         सर्वश्रेष्ठ जर्मप्लाज्म को रखने वाले संस्थानों/ संगठनों को सहायता देना .

·         बड़ी आबादी के साथ स्वदेशी नस्लों के लिए वंशावरी चुनाव कार्यक्रम का कार्यान्वयन.

·         ब्रीडर्स सोसायटी: गोपालन संघ की स्थापना.

·         प्राकृतिक सेवाओँ के लिए उच्च आनुवंशिक योग्यता वाले रोगमुक्त सांडों का वितरण.

·         स्वदेशी नस्लों के कुलीन पशुओं को रखने वाले किसानों को प्रोत्साहन.

·         बछिया पालन कार्यक्रम, किसानों को पुरस्कार (गोपाल रत्न) और ब्रीडर्स सोसायटी (कामधेनु).

·         स्वदेशी नस्लों के लिए दुग्ध उत्पादन प्रतियोगिता का आयोजन.

·         स्वदेशी पशु विकास कार्यक्रम संचालित करने वाले संस्थानों में काम करने वाले तकनीकी और गैर–तकनीकी लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन.

गोकुल ग्राम
मिशन के तहत स्वदेशी पशु केंद्रों या गोकुल ग्राम की स्थापना स्वदेशी नस्लों के प्रजनन इलाकों में की जाएगी. गोकुल ग्राम की स्थापना पीपीपी मॉडल के तहत की जाएगी और इसकी स्थापना.

·         देशी प्रजनन इलाकों में और शहरी पशु आवास के लिए महानगरों के निकट की जाएगी.

गोकुल ग्राम किसानों के लिए प्रशिक्षण केंद्र में आधुनिक सुविधाएं प्रदान करेगा. मेट्रोपोलिटन गोकुल ग्राम का केंद्र शहरी पशुओं के आनुवांशिक उन्नयन पर होगा.

राष्ट्रीय गोकुल मिशन का आर्थिक परिप्रेक्ष्य 
गोकुल ग्राम एक संस्थान होगा जो निम्नलिखित चीजों की बिक्री के जरिए आर्थिक संसाधन पैदा करेगा.

दूध, जैविक खाद, केंचुआ–खाद, मूत्र डिस्टिलेट, घरेलू खपत के लिए बायो गैस से बिजली का उत्पादन, पशु उत्पादों की बिक्री

ये गतिविधियां गोकुल ग्रामों को आत्मनिर्भर संगठन बनाएंगी.

पशुओं को बीमारियों से मुक्त कैसे रखा जाएगा?

नस्लों को बीमारी मुक्त रखने के लिए जानवरों को जीडी, टीबी और ब्रूसीलोसिंस जैसी बीमारियों से बचाने के लिए नियमित जांच की जाएगी. इसके अलावा, गोकुल ग्राम में एक डिस्पेंसरी और एआई केंद्र भी होगा।

इस स्कीम मे रजिस्ट्रेशन और लाभ

इस स्कीम से जुड़ने और इसके लाभ पाने के लिए आप  राष्ट्रीय पशु प्रजनन एवं डेयरी विकास कार्यक्रम  के तेहत रजिस्ट्रेशन कराकर गौ सेवा में अग्रसर हो सकते है। इस स्कीम से जुड़ने और जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे कुछ लींक दिए जा रहे है।

India- The Success Story of 2015

India is back in the spotlight and all for the good reasons. It is not just fervent hope but an assertion grounded in reality. The government has taken number of steps to put the growth story back on track and the effects are for everyone to see. India’s GDP forecast for 2015 has been revised up significantly from 6.4% to 7.5% by International Monetary Fund (IMF), and China’s growth forecast was revised down from 7.1% in October to just 6.8%, it means that for the first time since 1999 India is projected to grow faster than China. It means that India is going to be the fastest growing major economy in the world in this year. IMF also expects India to continuously grow faster than China until 2020. According to a new data from IMF India is poised to surpass Russia this year in size and nearly equal Brazil’s in 2016.

Raising India’s credit rating by Moody’s is a further confirmation of the right steps being taken by the government. Moody‘s ratings, revised India’s sovereign rating outlook to “positive” from “stable”. It expects that the actions by the policymakers will enhance the country’s economic strength in the medium term. There is a precursor to a rating upgrade by Moody and other Credit Rating Agencies. This will reduce the cost of external borrowing for Indian business. It would also increase Foreign Portfolio Investment (FPI) in the Indian Capital Market. For an economy that is short of capital, this is a major positive development.

Labour, Capital and Natural Resources are the three main factors that help economic growth. We have abundant labour and natural resources but are short of Capital. If the economic outlook for the country improves, we will be able to attract international investments. Developed country’s main strategy has been to attract resources all across the world. Some recent development shows that we are moving in this direction.

The statements by IMF and Moody, point towards strong economic outlook for India in near future. PM Narender Modi’s foreign policy has just achieved this impossible in a short span of time. The IMF lauded the economic policies of Narendra Modi’s Government.

The reason for India’s economic resurgence is a decisive government under a strong leadership. The sense of despondency and despair has been replaced by a can-do belief and by a renewed hope for a better future. For the first time in the last 30 years a political party was voted to power with complete majority in the Lok Sabha. It was a positive vote for a change by a young and restless population that was not willing to let its leaders squander opportunities. “The conditions are ripe for India to reap the demographic dividend and become a key engine for global growth,” Christine Lagarde (Managing Director IMF), said at an event organized at a women’s college in New Delhi.

According to World Bank in its twice-yearly South Asia Economic Focus report, India’s expected growth acceleration is “driven by business-oriented reforms and improved investor sentiment” and that growth could reach 8 per cent in fiscal year 2017-18.

The role of Government cannot be overemphasized. Factors like young population, high savings and investment rates were very much present under the previous regime as well and yet the economy was faltering due to weak political leadership.

The break from the past was quite visible right after the elections. Though the new government took number of measures to put economy back on track, it is the large vision for the country and the confidence in its executional abilities that is inspiring confidence and optimism in the economy. The attitude of Government towards big business has been of a participatory nature for economic regeneration. Earlier investments had crippled due to lack of certainty and transparency. The government is trying to restore the confidence of the corporate sector. The complaint, if any, has been on the ‘slow speed’ of the reform measures.

With a firm realization that no piecemeal approach is going to work, the government is taking steps to address the structural problems of the economy and is not hesitating from either taking politically tough decisions or truncating its own powers and privileges in the larger national interest. The courage to take tough decisions comes from the conviction that national interest must prevail over fights based on narrow political considerations. Nothing but this explains the government’s resolve to amend the Land Acquisition Act. The government has also relaxed foreign investments in sectors such as Defence, Insurance, E-commerce and Railways and is focusing on ease of doing business.

The investor-friendly Narendra Modi government, which came to power in May 2014, promising faster growth, more jobs and quick clearances, has taken measures to fast-track clearances for projects, boosts infrastructure investment and remove policy uncertainty in mining and coal sectors. The target of Modi government is to increase the contribution of manufacturing sector to GDP from the present level.

The paradigmatic shift in approach is to address focused growth issues and propel economic growth. To flag major initiatives of the government to achieve above objectives are:

a.       Make in India: Accepting the fact that agriculture alone cannot provide gainful employment to the vast population, currently dependent on it and to pull people out of poverty, the government has made ‘Make in India’ one of its credo and has taken number of steps to boost manufacturing sector including reforming labour laws, availability of capital and skilled manpower. It is hoped that a host of measures being taken by the government will make India a preferred destination for setting up manufacturing base.

b.      Mudra Bank (Micro Units Development Refinance Agency): Prime Minister Narendra Modi launched Mudra Bank which will benefit small and micro entrepreneurs and will also act as a regulator for ‘Micro-Finance Institutions (MFIs).  The roles envisaged for MUDRA include refinancing, their accreditation and rating requirements.

c.       Ease of Doing Business: The government is committed to ensure that starting, running and winding up of an enterprise does not continue to be a regulatory nightmare and entrepreneurs are not harassed due to burden of unnecessary regulatory compliances.

d.      Goods and Services Tax (GST): The government has already placed the Final Bill in the Parliament, which will be most probably passed in this session. Once implemented, it will create a common national market and also boost tax buoyancy. This will result in increase of about two percent in our GDP.

e.       Increase in FDI Limits: Foreign investment limit in Defense and Insurance sector has been increased to 49%. It is expected that the limits would be liberalized for other sectors as well.

f.        Reinvigoration of the Federal Structure:

·         14th Finance Commission: Under the present arrangement the state governments have the responsibility for most of the developmental work and maintain the requisite state apparatus but are dependent on the Centre for financial resources. The government by accepting the recommendation of the 14th Finance Commission has ensured that States’ share in central taxes has increased to an unprecedented 42%. The States also get more freedom to determine the expenditure and to tailor them according to local needs. This will help them getting out of the central sponsored straight jacketed fixed schemes.

·         Niti Aayog: The motive behind dismantling the Planning Commission and replacing it with Niti Aayog is to make the developmental process more participative. It is expected that Niti Aayog will emerge as an institution to formalize the sharing of best practices of states. With increased financial allocation to the State governments, it is a must that their institutional capacity is enhanced to properly spend this money.

g.       Land Acquisition Amendment Bill: Armed with feedbacks from various state governments and other stake-holders on the impracticability of certain provisions of the Land Acquisition Act of 2013, the government has placed an Amendment Bill 2015, making certain changes in the Act and will get the bill passed by the Parliament.

h.      Transparency in resource allocation: Successful allocation of spectrum and coalmines through auction has shown the way for the future. The robustness of the process also gives confidence to the corporate sector that the allocation would withstand challenge in the Court of Law. This process is expected to be followed in the future as, and has led to huge increment to the exchequer.

i.        Strong measures including a new Bill, are being implemented to check and control Black Money generation in the economy and it’s parking in Tax Havens.

j.        Farmers are the backbone of Indian economy. With more than 60% of our population dependant on agriculture and contributing only about 15 percent to GDP, there is an ever increasing problem of disguised and under employment. We need major boost for this sector. New focus is being given to development of rural infrastructure, establishment of cottage and village industries, electrification and provision of irrigation facilities in rural areas etc.

k.      Setting up of 100 Smart Cities: It is expected to bring in huge foreign investment and technology and make our cities better in terms of physical and social infrastructure, sustainable environment and geographical development across the Nation. This will also prevent urban migration and over crowding of urban clusters.

l.        Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana (PMJDY): The Jan Dhan Yojana of the government was started for comprehensive financial inclusion with the goal of opening a bank account for every household in India. Apart from financial inclusion, this scheme is also expected to check the leakages in the subsidy and will make it more targeted for the poor. With the linking of health and accidental insurance, it has also become an instrument for social security. More then 13 crore bank accounts have been opened in a short span and its success has been recognized internationally.

As must be expected, or even desired, there are some risks to this success story as well. The government lacks majority in the upper house of the Parliament and therefore major legislative reforms cannot be passed without the support of the opposition parties. While it has been the effort of the government to forge consensus even in the lower house (Lok Sabha) where it enjoys a comfortable majority, major legislative interventions can become hostage to narrow partisan considerations. Secondly the government has also been fortunate to have low oil prices giving it some space for fiscal maneuvering.

Moody’s has well grasped what the government is trying to achieve. In its recent statement it has said that, India’s policymakers are establishing a framework that will most likely allow India’s growth to continue to outperform that of its peers over medium term and improve India’s macro-economic, infrastructure and institutional profile. The effort of the government is to create an ecosystem of institutions, systems and processes that will ensure that the economy continues to grow rapidly with the government playing a supportive role in the background.

Finance Minister’s statement at America aptly sums up the strong fiscal numbers, when he says that the inflation is down to 5 percent, fiscal deficit to 3.9 percent, current account deficit to around one percent and GDP poised to grow around 7.5 percent, India is in for major leap on economic front. And as economists will agree with me, that strong economic growth is the answer to many of our Socio-economic problems, we are all in for good times ahead.

Gopal Krishna Agarwal

Member of National Executive BJP and Economics Policy Formulation Group

Email: gopal.agarwal@bjp.org

भूमि-अधिग्रहण का सच एवं भ्रम

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

आर्थिक मामलों पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता

भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर विपक्षी दलों ने देशभर में जो माहौल बनाया है उससे भ्रम अधिक फैला है। जबकि सच्चाई दब कर रह गई है।

भूमि अधिग्रहण संसोधन विधेयक पर विपक्ष के तेवर उक्रामक हैं। उनका दावा है कि वर्तमान संशोधनों से इस विधेयक का स्वरूप किसान विरोधी हो जाएगा। ध्यान होगा कि जब भारतीय जनता पार्टी ने एक अध्यादेश के तहत दिसंबर 2014 में संशोधन लेकर लाई थी तो चारों तरफ इसका विरोध हुआ था। इसी को ध्यान में रखकर यह बताना आवश्यक है कि अध्यादेश लाना कानूनी अवश्यकता थो। ‘भूमि अधिषहण विधेयक 2013’ में एक क्लॉज था, जिसके तहत 13 पूर्व ऐक्ट ऐसे थे, जिन पर नवा भूमि अधिग्रहण कानून लागू नहीं होता। इसलिए उन 13 कानून के बहत अधिग्रहित की गई भूमि पर मुआवजा पुराने दर से ही किसानों को मिलता, यदि उसको 31 दिसंबर, 2014 तक इस नए कानून के तहत नहीं ल्या जाता। नए कानून कानून के तहत किसानों को ज्यादा मुआवजा मिले, इसके लिए अध्यादेश लाना जरुरी या। अध्यादेश के बाद जन संशोधन विधेयक संसद में लाया गया तो हर जगह इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई। यह कहा गया कि यह संशोधन किसान विरोधी है। जबकि स्थिति ऐसी नहीं है। जो भ्रम फैलाया गया, उसे दूर करने के लिए भाजपा ने छह सदस्यीय भूमि अधिग्रहण समिति का गठन किया। किसान संगठनों के प्रतिनिधि और सीधे किसानों से मुलाकात कर समिति ने एक रिपोर्ट थी।

 इसके बाद सरकार ने संशोधन विधेवक में कुल नौ संशोधन पेल कर लोकसभा में पारित करवाए। समिति ने रिपोर्ट में कुछेक व्यावहारिक समस्याएं गिनाई थीं। दरअसल, देश की 60 प्रतिशत से अधिक जनता खेती पर निर्भर है, जिसकी देश की सकल घरेलू उत्पादन में मात्र 13 प्रतिशत भागीदारी है। पू-स्वामी की औसत भूमि कर पट्टा बहुत छोटा हो गया है, जो व्यापारिक खेती के लिए पर्याप्त नहीं है। इन सब लोगों को वैकल्पिक रोजगार के संसाधन ढूंढ़ने पढ़ेंगे। साथ ही यदि इनको भूमि की कीमत सही नहीं मिली तो परिस्थिति विफ्ट हो जाएगी। अधिग्रहण से कम से कम उसका मूल्य ठीक-ठाक मिल जाता है। साय हो जिस क्षेत्र में आधारभूत ढांचे का निर्माण होता है, उसके आस-पास की भूमि के दाम भी बढ़ जाते हैं। यह समहाना होगा कि भू-अधिग्रहण के बाद ही तो देश के सभी कोने में आधारभूत संरचना को तैयार किया जा सका है।

 अगर इन संशोधनों को हम बारीकी से देखें तो पता चलेगा कि लोगों की चिंवा भूमि अधिग्रहण कानून में भू-स्वामी की सहमति से जुड़े एक क्लॉज को लेकर थी, जिसे भाजपा ने हटा दिया। भूमि अधिग्रहण बरनून 2013 के बारे में सभी की मान्यता है कि यह किसानों के हित में है। यह जानना आवश्यक है कि उसमें भी सरकारी परियोजनाओं के लिए भू-स्वामी की सहमति का बलॉज नहीं था। केवल दो प्रकार के अधिग्रहणों के लिए किसानों की सहमति की बात थी। पहला अगर सरकार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहित करती है तो 70 प्रतिशव भू-स्व्वामियों से सहमति लेने की आवश्यकता थी। अगर सरकार किसी प्राइवेट परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहित करती है वो 80 प्रतिशत भू-स्यामियों की सहमति की जरूरत थी। इसके अतिरिक्त यदि सरकार अपने लिए लगभग नौ क्षेत्र की परियोजनाओं में किसी भूमि पर अधिग्रहण करती तो उसमें सहमति वाले क्लॉज नहीं थे। यह अधिधाहण सरकारी परियोजना के लिए था, जिसमें किखनों की सहमति की आवश्यकता नहीं थी। पुराने कानून के नौ क्षेत्र जिसमें सहमति जरूरी नहीं थी, उसमें अब सरकार ने केवल पांच आवश्यक क्षेत्रों को रखा है।

बगैर सहमति के भूमि अधिद्याहित किए जाने वाले जो पांच क्षेत्रों को जोड़ा है, उसमे आधारभूत संरचना, औद्योगिक क्षेत्र के विकास जैसे को शामिल किया गया है। इसमें सरकार ने कहा है कि औद्योगिक क्षेत्र के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर से ज्यादा क्षेत्र अधिग्रहित नहीं किया जाएगा। ‘पीपीपी’ परियोजना में भूमि का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा, उसमें भी सामाजिक ढांचागत परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहित करने का अधिकार सरकार ने अपने पास से हटा लिया है। निजी अस्पताल और निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए भूमि अधिग्रहित नहीं की जाएगी। वे सुझाव हमें मिले थे, जिसे सरकार ने माना भी है। मुआवजे की रकम मिलने में वर्षों लग जाते हैं, ऐसी समस्या भी सामने आई। इससे निपटने के लिए जिला स्तर पर समाधान केन्द्र स्थापित करने की यात को सरकार ने माना। इस तरह ज्यादातर सुझावों को सरकार ने मान लिया है। जब इस बिल को लोकसभा में आया गया था, तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के कुछ घटक दान भी इसके पक्ष में नहीं थे, लेकिन उनके सुदयवों को शामिल किया गया। मुझे लगता है कि राज्यसभा में आने तक राजग के घटक इसके पक्ष में तो आ ही जाएंगे। अन्य राजनीतिक पार्टियों को भी सरकार के साथ आना चाहिए। ऐसे गंभीर मसले पर राजनीति साधना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे देश का विकास बाधित होगा। 

Suggestions on SME Platform of the Stock Exchanges

BSE and NSE started their SME platforms in the year 2012. As on date today, a total of 89 companies are listed on these platforms, with 83 companies being listed on BSE platform (BSE SME) and 6 companies on NSE’s platform (Emerge). The total amount of capital raised is Rs. 785 crores as on 31st December 2014. The total market capitalization hovers around Rs. 9,000 crores.

SME listing has an important role to play with regards to financing small & medium businesses in the country. As few years have already passed since this platform was made operational, it is probably the right time to suggest some changes based on the experience:

Suggestions

1.      To lower the minimum trading lot size of Rs.1 lakh post listing as we feel that the minimum lot size of Rs.1 lakh could deter many genuine investors.

2.      To review the minimum 25% equity dilution, that is required at the time of listing. At time SMEs do not want to test the waters with a high amount of dilution. A policy reform required is to dilute the norm of minimum public shareholding from 25% to 10% for SMEs.

3.      The authorities should popularize the concept of ‘priority investing’ to improve the financial conditions of SMEs in India. The regulator should mandate Institutional Investors to invest in SMEs. Currently only institutional investors like mutual funds, private equity and venture funds are allowed to invest and trade in companies listed on the SME platforms. Definition of nominated investors should be widened to include wealthy individuals, non-institutional investors, corporate bodies.

4.      SEBI should encourage dual listing of SMEs on both BSE and NSE’s SME platforms.

5.      The existing requirement of market making for a period of 3 years should be reduced to maximum one year.

6.      Lack of consistency in the definition of MSME sector continues here as well. For a company to be eligible to be listed on the SME platform the minimum post issue paid up capital should be 1 cr and the maximum should be 25 cr. This minimum post paid capital be reduced.

7.      Institutional support from Govt. /SEBI like creation of a specialized agency that helps the SMEs list on the platforms is required. Most of the SMEs are not too well acquainted with the way in which stocks are listed and the stock market functions. BSE and NSE have been organizing seminars/road shows to spread awareness about the availability of the platform and the benefits of listing but the cost of listing and complying with continuing obligation can prove to be too heavy for the smaller companies. This specialized agency should provide merchant banking facilities and compliance with continuing obligation for a minimal charge.

8.      A uniform format of information should be developed preferably by the Institute of Chartered Accountants of India or SEBI so that the information becomes comparable. At present no such format is available

9.      A separates index needs to developed for SME exchange.

Integrating the Concepts of One Person Company, Small Company, Limited Liability Partnership and Presumptive Taxation to facilitate ‘Ease of Doing Business’.

The instrumentalities of One Person Company (OPC), Small Company, Limited Liability Partnership (LLP) and Presumptive Taxation are present on various statute books of India. Their application, however, has not been uniform. OPC and Small Company in the Company Act provide the benefit of limited liability, LLPs have very limited statutory compliances under the LLP Act and the provision of presumptive taxation as provided under the Income Tax Act greatly reduce the cost of doing business. As the avowed purpose for their introduction is to facilitate the ease of doing business, it is logical that they be applied in a uniform and consistent manner to realize the said objective.

Our Suggestion is if we combine the benefit of these concepts present in the three Acts- Company Act 2013, Limited Liability Partnership Act and the Income Tax Act, we can radically improve the ease of doing business in India. This is possible with minor modifications in respective laws as given in our suggestions below:

Background of respective Acts

1. One Person Company (OPC) The Companies Act, 2013 has introduced a corporate structure for businesses being run by individuals as proprietors, namely ‘One Person Company’ (OPC). Section 2 (62) defines OPC as a company which has only one person as a member. This format allows proprietors not only a limited liability cover but also a perpetual succession.

2. Section 2(85): Small Company

The Companies Act, 2013 also has introduced another format of companies known as ‘Small Company’. As per section 2(85) ‘‘small company’’ means a company, other than a public company

a) paid-up share capital of which does not exceed fifty lakh rupees or such higher amount as may be prescribed which shall not be more than five crore rupees; or

b) turnover of which as per its last profit and loss account does not exceed two crore rupees or such higher amount as may be prescribed which shall not be more than twenty crore rupees:

3. The Limited Liability Partnership Act, 2008 ( the LLP Act)

In January, 2009, the Limited Liability Partnership Act, 2008 ( the LLP Act) was implemented with the objective of permitting partnership firms to operate in limited liability environment on the same lines as to companies formed under the Companies Act. In addition to limited liability cover, partnership firm registered under the LLP Act would be required to file very few information with the Registrar and disclose very limited information. Section 34 to 38 of the LLP Act read with Rules 24, 25 and 27 deal with the disclosure requirements for LLPs. The LLP Act also has provisions for easier winding up and dissolution of LLPs. Section 63 to 65 of the LLP Act read with Limited Liability Partnership (Winding up and Dissolution) Rules, 2012 deal with these issues.

4. Presumptive taxation scheme under sections 44AD and 44AE

As per the Income-tax Law, a person engaged in business is required to maintain regular books of account and further, he has to get his accounts audited. To give relief to small taxpayers from this tedious work, the Income-tax Law has framed the presumptive taxation scheme under sections 44AD and 44AE. A person adopting the presumptive taxation scheme can declare income at a prescribed rate and, in turn, is relieved from tedious job of maintenance of books of account and also from getting the accounts audited.

The presumptive taxation scheme of section 44 AD is designed to give relief to small taxpayers engaged in any business (except the business of plying, hiring or leasing goods carriages referred to in sections 44AE).These provisions cannot be adopted by a person who has made any claim towards deductions under section 10A/ 10AA/10B/ 10BA or under sections 80HH to ​80RRB in the relevant year.

The Company Act, 2013 does not give relaxation to an OPC as well as to a Small Company with regard to filing of documents and disclosure of financial information as much as has been given to a LLP under the LLP Act. The companies Act, 2013 also does not have easier winding up and dissolution provisions for OPC and Small companies as has been provided to LLP under the LLP Act. On the other hand the benefits of provisions of presumptive taxation are available only to individuals and do not extend to either to OPC and Small Company or to LLPs.

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल – मेरा अनुभव

रचनात्मक विधाओं में साहित्य ऐसा क्षेत्र है जिसे संगीत, नाटक, पेन्टिंग और मूर्तिकला आदि आदि से ज्यादा प्रतिष्टा हासिल है। शायद इसकी वजह है मीडिया से जुड़े लोग साहित्य सृजको के मुखातिब रहते आए है। दुनिया के सारें लोकप्रिय साहित्य मेलों में से जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की एक अपनी अलग ही पहचान बन गई है।

आयोजको के अनुसार हेरीटेज रिसोर्ट डिग्गी पैलेस के छह आयोजन स्थलों पर आयोजित हुए। इस महोत्सव में करीब 240 लेखकों ने 175 से अधिक सत्रों में हिस्सा लिया। 15 से अधिक देश के लेखकों एवं विशेषज्ञों की समारोह में मौजूदगी रही। महोत्सव की संस्थापक निदेशक नमिता गोखले ने बताया कि विभिन्न मुद्दों के ही साथ ‘डेमोक्रेसी डायलाग्स’ विषयों पर चर्चा द्वारा राजनीतिक एवं सामाजिक बदलाव के बड़े मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया। 

समारोह में क्षेत्रीय भाषाओं के इतिहास पर भी प्रकाश डाला गया। इसमें मुझे दो दिन भाग लेने का मौका मिला। जिन विचारकों को मुझे सुनने और बातचीत करने का मौका मिला इसमें प्रमुख थे। डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम, एन आर नारायण मूर्ती, राजीव मलोहत्रा आदी। अब्दूल कलाम जी को सुनने का युवाओं में काफी उत्साह था।

महोत्सव में महत्वपूर्ण बात लगी की उसका स्वरुप ऐसा रखा गया है कि सम्मेलन में 80 प्रतिशत भागीदीरी 30/35 वर्ष से कम के लोगों आयु की थी। और वे बहुत बड़- चड़ कर भागीदारी ले रहे थे। चर्चा के बाद सभी में प्रस्न उत्तर जरुर रखें गए थे। उन प्रश्नों का स्तर बहुत अच्छा था। जानने और सुनने की जिज्ञासा सभी में बहुत थी। विदेशी साहित्याकारों की काफी संख्या में मौजूदगी थी।

सत्रों में भागीदारी निशुल्क थी। यह महत्वपूर्ण उपलब्धी थी क्योंकि आयोजन की विशालता को देखकर ही समझ आता था कि खर्च काफी किया गया था लेकिन प्रयोजक मिल गए थे। यह साहित्यिक गतिविधियों के लिए शुभ संदेश है।

संस्कृत भाषा पर भी एक महत्वपूर्ण सत्र था। इस दौरान पौराणिक ग्रंथो रामायण और महाभारत पर भी चर्चा की गई। दर्शन पर एक सत्र Bettany Hughes की किताब, Socrates, Athens and Search for good life पर बड़ा अच्छा था Socrates के विचार और उनके जिवन एंव मृत्यु सभी प्रेरणादायी है। Socrates ने अपने आप कुछ भी नहीं लिखा है। उन्हें जहर इसलिए पीना पड़ा क्योंकि उनपर इल्जाम था कि वे युवाओं को सोचने के लिए प्रेरित कर रहें है।

एक सत्र बड़ा अच्छा लगा जिसमें इंगलैंड की lunar societies के बारे में काफी विस्तार से जानकारी दी गई और चर्चा की गई कि कैसे इस समूह ने इंगलैंड में नए नए आविश्कारों के लिए  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह समूह हर पंद्रह दिन में परिवारों से मिलता और नए नए विचारों के द्वारा आविश्कार कर पाया।

अन्तिम सत्र में जो चर्चा का विषय था culture is the new politics जिसमें online poll भी था। इसमें लगा कि आयोजकों ने जानबूझ कर शाजिया इलमी को भाजपा/संघ विचार की प्रष्टभूमी पर बुलवा कर पूरी विचारधारा को कटघरें में खड़ा करने का प्रयास किया। सुहैलसेठ आक्रामक तरीके से बोल कर शाजिया की कमजोर विचारधारा की पकड़ कों उभारने का काम कर रहें थे।

हमारी तरफ से कोई प्रखर विचारक होना चाहिए था। जो विषय की गहराई को समझ कर ठीक ढ़ग से अपने पक्षको रख सकता। श्री राजीव मलहोत्रा ने जरुर अपना पक्ष मजबूती से रखा।

कुल मिलाकर आयोजन अच्छा एंव सफल था। युवाओं की इसमें उत्साहपूर्ण भागीदारी महत्वपूर्ण थी। और मुझे लगता है कि मोदी जी का Read India Campaign आने वाले समय में युवाओं को पढने और लिखने की तरफ तेजी से प्रेरित करेगा। उनमे पूर्ण जिज्ञासा है। ऐसे कारयक्रमों का आयोंजन भाजपा और संघ की वैचारिक संस्थाओ को भी समय समय पर करने चाहिए।

एक बात का जरुर खतरा नजर आया कि अगर आयोजन की दिशा पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह आयोजन साहित्यिक कम और मौज मस्ती का अड्डा बनने का खतरा रहेगा।