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Uncategorized – Page 2 – Gopal Krishna Agarwal

अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ नव शिराएं

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विकास का एक नया मॉडल खड़ा किया है। इसमें कानून-व्यवस्था, परिवहन, शिया-स्वास्थ्य और नीतिगत सुगमता जैसी बुनियादी बातों में सुधार के साथ स्थानीयता को प्रदेश के विकास का आधार बनाने की सोच है। इस रणनीति से उत्तर प्रदेश भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उत्प्रेरक बनने की स्थिति में आ गया है

उत्तर प्रदेश उद्योगपतियों के लिए एक दुःस्वप्न से कम नहीं था जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानून-व्यवस्था में विश्वास रखने वालों के लिए एक स्वर्ग के अनुरूप परिवर्तित कर दिया है। योगी जी के विकास मॉडल ने साढ़े चार वर्षों में प्रदेश में न सिर्फ परिस्थितियां बदली हैं, बल्कि छवि और सोच भी बदल दी है।

कानूनव्यवस्था

वर्ष 2017 में जब पहली बार योगी जी की सरकार उत्तर प्रदेश में बनी, तब यहां गुण्डा राज था, उगाही अपनी चरम सीमा पर थी और संगठित अपराध का बोलबाला था। योगी जी की दृढ़ इच्छाशक्ति और कठोर कदमों ने माफिया की कमर तोड़ दी। इनका स्थान या तो जेल में रह गया या फिर वे परलोक सिधार गए। अब तक इनकी 1,848 करोड़ रुपये की अवैध सम्पति जब्त कर ली गई है।

परिवहन सुधार

आज प्रदेश में एक्सप्रेसवे, एफएनजी सड़क, पेरीफेरल सड़कों का अद्वितीय संजाल तैयार है। विश्वस्तरीय फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण, मल्टी मॉडल ट्रान्सपोर्टेशन हब की स्थापना कभी उत्तर प्रदेश में सोची ही नहीं गई थी। जेवर जैसे बड़े विश्वस्तरीय हवाई अड्डे के साथ आठ और हवाई अड्डों को चालू किया गया है। तेरह और हवाई अड्डों का निर्माण भी किया जाएगा। प्रदेश में दस शहरों, नोएडा, लखनऊ, गाजियाबाद, कानपुर, आगरी, मेरठ, गोरखपुर, वाराणसी, प्रयागराज एवं झांसी में मेट्रो की स्थापना की गई है।

शिक्षास्वास्थ्य सुधार

सड़कें, रेल, हवाई अड्डे ही नहीं चल्कि रहने के लिए घर, स्कूल, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, मॉल, इन सुविधाओं का भी शहरी विकास में ध्यान रखा गया है। आठ नए राज्य विश्वविद्यालय, 70 नए राजकीय महाविद्यालय, 28 इंजीनियरिंग कालेज जैसी कई शैक्षिक संस्थाएं यह सुनिश्चित करेंगी कि विद्यार्थियों को सही शिक्षा मिले और उद्योग एवं अन्य संस्थाओं को सेवा योग्य शिक्षित व्यक्ति मिल सकें। योगी जी ने केवल उद्योगों पर ही ध्यान नहीं दिया बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर भी लगातार काम किया है। 59 जनपदों में कम से कम एक मेडिकल कालेज की स्थापना हो चुकी है। आर्थिक विकास और औद्योगीकरण के लिए इनका बहुत महत्व है।

व्यवसाय सुधार

योगी जी के नेतृत्व में जरा सुनेर सरकार के 187 व्यवसाय सुधार कार्ययोजनाओं के मुख्मयों में से 166 सुझावों को श्रेणी में देश में दूसरे पायदान पर आओ श्रेणी में प्रदेश देश के बार बीमारू राज्यों की में ये परिणाम योगी सरकार के आर्थिक सुधारों की पहल का ही परिणाम है।उत्तर प्रदेश में हुई पहली इनवेस्टर समिट में 4,68,000 करोड़ रुपये के निवेश अनुबन्ध हुए थे और इसमे से लगभग तीन लाख करोड़ रुपए रुपए के निवेश की परियोजनाएं चालू भी हो गई है।

श्रम सुधार

योगी सरकार ने श्रम सुधार लागू किए हैं। ऑनलाइन एकीकृत पंजीकरण सुविधा भी लागू कर दी है। जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित करके केन्द्र सरकार के लैंड बैंक पोर्टल पर डाल दी गई है ताकि कम्पनियों को फैक्ट्री लगाने के लिए जमीन की उपलब्धता पारदर्शी रूप में हो जाए। भवन निर्माण के लिए आवश्यक अनुमति तीव्रता से मिल रही रही है। है। उत्तर प्रदेश के उद्योग मित्र पोर्टल ने तो पारदर्शिता और सुविधा का नया मापदण्ड ही देश में स्थापित कर दिया है। सभी योजनाओं और आयामों में सरकार ने नौकरियों के सृजन को भी ध्यान में रखा है। पिछले वर्षों में 4,50,000 नई सरकारी नौकरियों में भर्ती भी की गई है।

औद्योगिक हब

गौतमबुद्धनगर में इलेकट्रॉनिक पार्क, कपड़ा उद्योग, फिल्म सिटी, मोबाइल फैक्ट्रियां, वाहनों के पुर्जे बनाने का उद्योग, मिडिया हब और शिक्षा संस्थाएं स्थापित हो रही हैं। माइक्रो साफ्ट, सैमसंग आदि अनेक वैश्विक कम्पनियां यहां अपना निवेश कर रही हैं। आज नोएडा शहर को देश में सबसे ज्यादा निवेश प्राप्त हो रहा है। अकेले नोएडा में पिछले कुछ वर्षों में 64,000 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है। गौतमबुद्धनगर जिला देश का सबसे उत्कृष्ट औद्योगिक निवेश वाला जिला बन कर उभरा है। कोरिया जैसे जैसे बड़े निवेशक देशों ने अपना कोरियन चैम्बर आफ कॉमर्स का कार्यालय भी नोएडा में खोल दिया है। रक्षा के क्षेत्र में भी देश के दो में से एक औद्योगिक पार्क उत्तर प्रदेश में ही बनेगा।

पर्यटन विकास

पर्यटन क्षेत्र को देखें तो उत्तर प्रदेश में कई स्थान हैं। योगी जी ने धार्मिक स्थानों और मंदिरों के नवीनीकरण एव विकास पर विशेष ध्यान दिया है। अयोध्या, मथुरा, काशी जैसे सात सौ के लगभग धार्मिक स्थलों का विकास कर इन स्थानों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जागृत किया है। बौद्ध सर्किट, रामायण सर्किट, महाभारत सर्किट, शक्ति पीठ सर्किट, अध्यात्म सर्किट, जैन तथा सूफी सर्किट में पर्यटन सुविधाओं का विकास किया गया है। यही नहीं, कुम्भ के आयोजन को इतनी विशालता प्रदान कर दी कि वह अपने आप में धार्मिक अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए विश्वस्तर पर एक मिसाल बन गया है।

स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा

कोरोना संकट में प्रदेश के 40 लाख प्रवासी मजदूर वापस आए, उन्हें अपने ही ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार मिले, इसके लिए लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है। एक जिला- एक उत्पाद की पहल गांवों एवं कस्बों में परंपरागत छोटे-छोटे उद्योगों नको बढावा दे रही है। हर जिले की अपनी अलग पहचान होगी और उससे संबधित उद्योग चेन स्थापित होंगे। अलीगढ़ में ताले, फिरोजाबाद में शीशे का काम, मेरठ में क्रिकेट का सामान, मुरादाबाद का पीतल उद्योग, मथुरा के पेड़े, काशी की सिल्क की साड़ियां, नोएडा का कपड़ा उद्योग, रामपुर में जरदोजी का काम, ऐसे सभी उद्योग चेन प्रदेश की अर्थव्यवस्था को नया आयाम प्रदान कर रहे हैं।

किसान कल्याण

किसानों की आय को बढ़ाने पर भी योगी जी का पूरा ध्यान है। ग्रामीण क्षेत्र में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का तेजी से विस्तार, प्रधानमंत्री आवास योजना में घरों का निर्माण एवं सभी जनपदों में हर घर जल योजना से जल की आपूर्ति सुनिश्चित की गई है। योगी जी द्वारा निराश्रित गोंवंश के रख-रखाव एवं पशुपालन को बढ़ावा देने की विशेष पहल से किसानों की आय बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान होगा।

उत्तर प्रदेश तैयार है

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जो भारत को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यस्था बनाने का लक्ष्य है, उसका मार्ग निश्चय ही उत्तर प्रदेश से होकर ही गुजरेगा। और योगी जी ने जो संकल्प लिया है कि हम प्रदेश की अर्थव्यवस्था को एक खरब डॉलर की कर देंगे, वह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति के फलस्वरूप जल्द पूरा होगा। जिस प्रकार से विश्वस्तर पर उत्तर प्रदेश उद्योगों की स्थापना के लिए आकर्षण का केन्द्र बन रहा है, इसमें देर नहीं है जब अपनी 23 करोड़ जनसंख्या और बड़ी भौगोलिक भूमि के कारण विशाल बाजार व्यवस्था का केन्द्र बनकर यह प्रदेश चीन को सीधा टक्कर दे दे। योगी आदित्यनाथ के सफल नेतृत्व और नरेन्द्र मोदी के मार्गदशन में उत्तर प्रदेश डबल इंजन की विकास की तीव्र गति से आगे बढ़ेगा, इसमें कोई संदेह नहीं है।

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

महागठबंधन : एक ढकोसला

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नफरत के कारण एकजुटता दिखा रहे और अपने राजनैतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे विभिन्न विपक्षी दल, बिना किसी साझा नीति या विचारधारा के, खुद को ‘महागठबंधन’ का नाम देकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के खिलाफ एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस अपने को इस महागठबंधन का केंद्र बताने की कोशिश कर रहा है, लेकिन दूसरे राजनैतिक दल उसके नेतृत्व को कतई स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। राज्य स्तर पर महत्व रखने वाली कई राजनीतिक पार्टियां भी महागठबंधन में शामिल नहीं हुई हैं। इससे साफ है कि एनडीए के खिलाफ संयुक्त विपक्ष का उम्मीदवार खड़ा करना सम्भव नहीं हो पा रहा है।

अगर हम देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से शुरू करें तो वहां पर समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ने के लिए गठबंधन किया है लेकिन इसमें कांग्रेस शामिल नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और कांग्रेस के बीच गठबंधन नहीं हो पाया है और कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के बीच वाकयुद्ध शुरु हो गया है। दिल्ली में ऐसा माना जा रहा है कि आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार नहीं करेगी, इसलिए उनके बीच भी किसी प्रकार के गठबंधन की संभावना कम ही है।

केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के खिलाफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट खड़ा है और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद से लेफ्ट और कांग्रेस के बीच लड़ाई और भी तेज हो गई है। ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में भी कमोवेश यही हाल है। कांग्रेस असम में बदरुद्दीन अजमल के संगठन के साथ भी गठबंधन करने में विफल रही है। इन सभी राज्यों में त्रिकोणीय या बहुकोणीय मुकाबला होगा, जिसने महागठबंधन को अप्रासंगिक बना दिया है। इन 8 राज्यों में लोकसभा की कुल 226 सीटें हैं।

हालांकि, कांग्रेस खुद को एक राष्ट्रीय पार्टी कहती है, लेकिन बिहार में महागठबंधन की प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) है और कांग्रेस को 40 में से सिर्फ नौ सीटें दी गई हैं, जबकि बाकी सीटें उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और मुकेश साहनी जैसे नेताओं के छोटे दलों को दे दी गईं। तमिलनाडु की 39 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को केवल नौ सीटें मिली हैं, जबकि पुड्डुचेरी एकमात्र सीट उसे लड़ने के लिए दी गई है। नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर की तीन लोकसभा सीटों के लिए गठबंधन किया है और तीन अन्य सीटों पर दोस्ताना चुनाव लड़ने की बात की हैं। कर्नाटक में जनता दल (सेक्युलर) ने 8 सीटें पाने के लिए काफी मोलभाव किया है और कांग्रेस वहां पर 20 सीटों पर अपना भाग्य आजमाएगी, जबकि राज्य में पहले से ही जेडी (एस) का मुख्यमंत्री है।

झारखंड में कुल 14 लोकसभा सीटें हैं। कांग्रेस को सात सीटें, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को चार, झारखंड विकास मोर्चा (जेवीएम) को दो और लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी को एक सीट दी गई थी। लेकिन यहां भी महागठबंधन में दरारें आ चुकी हैं। आरजेडी ने सीटों के इस बंटवारे पर आपत्ति जताई और चतरा से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया, जबकि यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आई थी। झारखंड में सीट बंटवारे के समझौते के अगले दिन ही आरजेडी की प्रदेश अध्यक्ष अन्नपूर्णा देवी भाजपा में शामिल हो गई जो गठबंधन के लिए एक बड़ा झटका है। महाराष्ट्र में कांग्रेस 26 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) – अपने लिए 22 सीटें हासिल करने में कामयाब रही है। एनसीपी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस में आंतरिक कलह चल रही है और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण भी इससे नाराज हैं।

एक ओर जहां इस तथाकथित महागठबंधन को लेकर पूरी तरह से अनिश्चितताएं हैं, वहीं एनडीए में पहले से ही 39 राजनीतिक दलों गंठबधन है। एनडीए की एकता तभी नजर आ ई गई थी जब उन्होंने विहार की लोकसभा सीटों न के लिए उम्मीदवारों की घोषणा को साथ में क किया था। गुजरात की गांधीनगर सीट से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नामांकन के समय भी एनडीए ने अपनी पूरी ताकत का प्रदर्शन किया र गया था। भाजपा पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ और महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। ये दोनों ही भाजपा के दशकों पुराने सहयोगी हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी एकता का विश्लेषण यह बताता है कि चुनाव पूर्व परिदृश्य में महागठबंधन विखंडित है और नेतृत्वहीन नजर आ रहा है। एनडीए की तुलना में अखिल भारतीय स्तर पर महागठबंधन की मौजूदगी भी वैसी नहीं है। एनडीए के सभी सहयोगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे है। महागठबंधन में शामिल दल कई राज्यों में अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। यह सीटों के बंटवारे को लेकर किसी भी तरह का समझौता न कर पाने में विफलता के अलावा और कुछ नहीं है।

महागठबंधन का यह शोर-शराबा केवल एक ढोंग है और मोदीजी के विरोध का ये हौआ इस लोकसभा चुनाव के आगे बढ़ने वाला नहीं है।

(लेखक भाजपा के आर्थिक मामलों के प्रवक्ता है)

विमुद्रीकरण सम्बन्धी तथ्य

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

देश में इस पर बहस चल रही है कि क्या विमुद्रीकरण से भ्रष्टाचार को समाप्त करने और कालेधन के उन्मूलन में मदद मिल सकेगी।इसका अर्थव्यवस्था पर अल्प, माध्यमिक और दीर्घकाल में क्या प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे लघु एवं मध्यम उद्योगों और छोटे व्यापारियों, दुकानदारों और दैनिक मजदूरों आदि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा।बड़े आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है कि हम डिजिटल अर्थव्यवस्था की नई क्रांति की तरफ बढ़ें।

विमुद्रीकरण सम्बन्धी हाल की घोषणाओं ने देश के आर्थिक परिदृश्य में भारी हलचल पैदा कर दी है। देश में इस पर बहस चल रही है कि क्या इससे भ्रष्टाचार को समाप्त करने और काले धन के उन्मूलन में मदद मिल सकेगी। इसका अर्थव्यवस्था पर अल्प, माध्यमिक और दीर्घकाल में क्या प्रभाव पड़ेगा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रो, छोटे लघु एवं मध्यम उद्योगों और छोटे व्यापारियों, दुकानदारों और दैनिक मजदूरों आदि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। बड़े आर्थिक सुधारों की आवश्यकता है कि हम डिजिटल अर्थव्यवस्था की नई क्रांति की तरफ बढ़े। विमुद्रीकरण को इसी परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है।

देश में आर्थिक विकास लाने तथा भ्रष्टाचार एवं काले धन के उन्मूलन के दो महत्वपूर्ण जनादेश पर हमारी सरकार सत्ता में आई थी। वर्तमान अर्थतंत्र को ध्यान में रखकर उसके कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को हमे देखना जरूरी हैः

  • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार देश का 20 प्रतिशत धन सभी परिसम्पदा वर्ग जैसे रियल एस्टेट, स्वर्ण तथा कैश करेंसी आदि में विद्यमान है।
  • विश्व सम्पत्ति रिपोर्ट 2016 से पता चलता है कि देश की मात्र 1 प्रतिशत जनसंख्या का देश की 58 प्रतिशत से अधिक सम्पत्ति पर अधिकार है। भारत पूरे विश्व में रूस के बाद कान्सनट्रेशन आफ वेल्थ में दूसरे नम्बर पर आता है।
  • हमारे देश की 97 प्रतिशत आवादी की कुल सम्पत्ति 10.000 डालर अर्थात् 7,00,000 रुपए से भी कम की है।
  • भारत में नकद करेंसी का जीडीपी अनुपात 12 प्रतिशत है, जो अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की तुलना में कहीं अधिक है।
  • सरकार का वार्षिक चजट संसाधन बहुत ही सीमित है। कुल 5.5 लाख करोड़ रुपए का लगभग योजनागत व्यय-इंफ्रास्ट्रक्चर विकास और सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकताओं से निपटने के लिए किसी भी कीमत पर पर्याप्त नहीं है।
  • देश का प्रत्येक नागरिक अप्रत्यक्ष करों के रूप में कर अदा कर रहा है. परन्तु यदि इस ट्रांजेक्शन को समुचित रूप से खाते में न डाला जाए तो यह आम जनता द्वारा दिया गया कर सरकार के खजाने में नहीं पहुंचेगा। इस व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए लेन-देन सम्बन्धी ट्रांजेक्शन की बैंकिंग प्रणाली में रिकार्डिंग बहुत आवश्यक है।

विमुद्रीकरण का विश्लेषण ऊपर दिये परिदृश्य को ध्यान में रखकर करना आवश्यक है। आरम्भ से ही श्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा निचे दिए गए कई उपायों में यह एक मह्त्वपूर्ण कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं

सत्ता में आते ही दूसरे दिन से सरकार ने इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कई कड़े कदम उठाएः

1. श्री मोदी के सत्ता में आते ही एसआईटी का गठन किया गया, ताकि देश में भ्रष्टाचार मिटाने के लिए उपाए किये जाएं।

2. विदेशी अवैध परिसम्पदा घोषणा योजना।

3. मॉरीशस, साइप्रस और सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय कर संधियों पर पुनः वार्ता, जिस के माध्यम से अधिकांश हवाला कारोबार होता था।

4. फाटका: FATCA के अन्तर्गत वित्तीय सूचना साझा करने के लिए अमेरिका के साथ संधी।

5. (OECD) और जी20 देशों के साथ वित्तिय सूचना के आदान-प्रदान करने के लिए मोदी जी की पहल।

6. इनकम डिस्क्लोजर प्लैन (आईडीएस)

7. बेनामी परिसम्पत्ति के कानूनों के प्रावधानों का पारित किया जाना, जोकि पिछले दस वर्षों से लम्बित पड़ा था।

8. संसद को वर्तमान सत्र में भ्रष्टाचार उन्मूलन अधिनियम एवं व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन अधिनियम में संशोधन बिल पेश करना।

9. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना का लाना यह उन लोगों को दण्डित करने के लिए हैं. जो बैंकिग चैनलों में काला धन वर्तमान में घोषित करते हैं।

10. अभी के ढाई वर्षों में लगभग 92 वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार के आरोपों पर दण्डित किया गया है जो विगत वर्षों की तुलना में कहीं ज्यादा है।

काले धन के उन्मूलन और भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ने के लिए विमुद्रीकरण एक बड़ी योजना का हिस्सा है। यह देश के सभी भौगोलिक हिस्सों में एवं समाज के आम आदमी के आर्थिक विकास के लिए समान एवं पारदर्शी अवसरों को प्रदान करने की प्रक्रिया का एक जरिया है।

विमुद्रीकरण के लाभ

  • भारी मात्रा में कैश करेंसी के सर्कुलेशन के कारण अर्थव्यवस्था पर मांग का भारी दबाव

         था. जिसके चलते आवास आदि महंगे हो गये थे, आम आदमी का घर का सपना उसके हाथों से फिसलता जा रहा था। विमुद्रीकरण से रियल एस्टेट की कीमतें घटेगी तथा इससे सभी प्रकार की महंगाई भी कम होगी।

  • गरीबों और अल्प आय ग्रुपों एवं विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए और सामाजिक योजनाओं के लिए सरकार को अधिक संसाधन प्राप्त होंगे।
  • इससे कम ब्याज दर वाली अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने में मदद मिलेगी, आवासीय ऋण, गरीबों के और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को कम दरों पर ऋण मिल सकेंगे।
  • जीएसटी जिससे की अप्रत्यक्ष करों को कम करने में मदद मिलेगी, उसके सुचारू कार्यान्वयन के लिए ढांचा तैयार होगा।
  • नकली करेंसी को अर्थव्यवस्था से हटाया जा सकेगा, आतंकवादी, माओवादी घटनाएं और

लूट-खसोट जैसी आपराधिक गतिविधियां पर लगाम लगेगा।

  • ऑनलाइन भुगतान तथा मोबाइल बैंकिंग के द्वारा जो ट्रांजेक्शन होती है उसकी कीमत प्रति ट्रांजेक्शन काफी कम बैठती है। इसका फायदा अर्थव्यवस्था को मिलेगा (ऑनलाइन भुगतान पर सरकार द्वारा अनेक कार्यक्रम के तहत जागरुकता की नई पहल की गई हैं)
  • लोगों द्वारा कर अनुपालन का स्तर देश में बढ़ेगा।

तीसरी तिमाही की कर रिपोर्ट से पता चलता है:

– अप्रत्यक्ष कर संग्रह में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

– प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15 प्रतिशत की वृद्धि हुई है

सरकार करेंसी की आवाजाही की कमी से पूर्ण रूप से अवगत है, परन्तु इसे जल्द सुलझा लिया जाएगा। हम लोगों से ऑनलाइन भुगतान और मोबाइल बैंकिंग के माध्यम द्वारा कम नकद अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ने का आग्रह कर रहे है. परन्तु हम इसे लोगों में जागरूकता के द्वारा करेंगे. इसे अनिवार्य नहीं बनाएंगे। सरकार सिस्टम में कैश करेंसी खत्म नहीं कर देगी, परन्तु उसे जीडीपी का लगभग 8 से 9 प्रतिशत तक रखने का प्रयास करेगी।

सरकार इस बात से भलीभांति अवगत है कि करेंसी की इस कमी का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।

इसलिए सरकार द्वारा जीडीपी के विकास और अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का रोडमैप तैयार है:

(क) बैंकों के चालू खाते और बचत खातों में जमाधन की वृद्धि होगी। इससे बैंकों के पास जमा धन कि कीमत कम होगी और इसके परिणाम स्वरूप सस्ते दर के फंड की उपलब्धता बढ़ेगी।

(ख) लघु एवं मध्यम क्षेत्रों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्टअप, स्टैंडअप, मुद्रा ऋण कम व्याज दरों पर दिया जाए इस पर ध्यान दिया जाएगा।

(ग) रियल एस्टेट की कीमतों में गिरावट और ईएमआई का रेट कम करने से आवास आम लोगों की पहुंच में आ सकेगा तथा इससे निर्माण उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।

 (घ) अधिक कर अनुपालन से सरकार कराधान के दर कम करने की तरफ बढ़ सकेगी और पहली बार ईमानदारी का फल लोगों को प्रत्यक्ष रूप से मिलेगा।

(ङ) काले धन के संचालन के कारण अर्थव्यवस्था में कई विसंगतियां आ गई हैं, इसे खत्म करने का प्रयास तभी पूर्ण सफल होगा जब लोग पुराने कालेधन को नई करेंसी में कन्वर्ट न कर सकें। इसीलिए सरकार कुछ कठोर नियमावलियों को ला रहीं हैं।

(च) करापूर्ति में वृद्धि और अधिक संसाधनों से. सरकार भारी निवेश कर सकेगी और सामाजिक क्षेत्र में व्यय से आम आदमी के जीवन की उत्कृष्टता में भी सुधार आएगा।

(छ) जीएसटी के कार्यान्वयन से अप्रत्यक्ष करों में कमी आएगी। इसके लिए सही इकोसिस्टम की आवश्यकता है, जिसके लिए सरकार वातावरण बना रही है, ताकि लेन-देन को समुचित पारदर्शी रूप से रिकार्ड किया जा सके।

काले धन के उन्मूलन और भ्रष्टावार से लड़ाई लड़ले के लिए विमुद्रीकरण एक बड़ी योजना का हिस्सा है। यह देश के सभी भौगोलिक हिस्सों में एवं समाज के आम आदमी के आर्थिक विकास के लिए समान एवं पारदर्शी अवसरों को प्रदान करने की प्रक्रिया का एक जरिया है।

(लेखक भाजपा के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता है)

सबल विदेश नीति, सक्षम अर्थव्यवस्था

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

मोदी के प्रयासों से भारत निवेश और व्यापार के लिए आकर्षक जगह बना

भारत की विदेश नीति का एक प्रमुख लक्ष्य है भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास। भारत 2032 तक 10 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन कर 175 करोड़ रोजगार के सृजन का लक्ष्य प्राप्तस करना चाहता है तो विदेश नीति को घरेलू आर्थिक सुधारों के साथ जोड़ना जरूरी है। तभी हम विदेशी पूंजी को बड़े पैमाने पर आकर्षित कर पाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस दिशा में निरंतर प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने विश्व के महत्वपूर्ण नेताओं के साथ जो व्यक्तिगत घनिष्ठता स्थापित की है, उसने भारत को नया आत्मविश्वास प्रदान किया है। यहां तक कि विश्व की दो बड़ी शक्तियों अमेरिका और चीन के साथ संतुलन स्थापित करने में भी भारत के हित को ध्यान में रखा गया है।

यात्राओं का असर

अभी जी-20 शिखर सम्मेलन में चीन और अमेरिका के आपसी संबंध तनावपूर्ण दिखे, लेकिन भारत के प्रति दोनों का रवैया मैत्रीपूर्ण था। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में कई प्रकार की समस्याएं उभर कर आ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अगर फिर 2008 जैसा संकट आया तो पश्चिमी देशों की सरकारे अपनी वित्तीय संस्थाओं को संभाल नहीं पाएंगी। मोदी जी ने वैश्विक स्तर पर लोगों के मन से यह शंका पूरी तरह निकाल दो है कि भारत आने वाले समय में आर्थिक शक्ति के रूप में नहीं उभर पाएगा। उन्होंने भ्रष्टाचार, पारदर्शिता, व्यापार का सरलीकरण और आर्थिक सुधारों की प्रतिवद्धता को लेकर सभी का भ्रम दूर कर दिया है। सरकार ने कर प्रणाली में सुधार के साथ-साथ कॉरपोरेट कानूनों में बदलाव भी किया है। संसाधनों के निष्पक्ष आवंटन, परियोजनाओं को समयबद्ध सरकारी अनुमति और प्रशासनिक बाधाओं को खत्म करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए है

मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया, डिजिटल कट इंडिया, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, स्वच्छ गंगा, नी जीएसटी जैसी नई परियोजनाएं व नीतियां शुरू बदी कर देश के विकास की नई रूपरेखा तैयार की यह है। रुकी हुई परियोजनाओं के पुनर्संचालन व आने विदेशी निवेश संबंधी नीति को उदार बनाकर नहीं भारत में निवेश आसान बना दिया गया है। र्शता, विश्व व्यापार क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार संबंधों व सुधारों समझौतों का महत्व अब बहुपक्षीय समझौतों से न दूर ज्यादा हो गया है। बहुपक्षीय व्यापार संगठनों सुधार पर सभी देशों को एकमत करना कठिन होता बदलाव जा रहा है। इसलिए आसियान, ब्रिक्स और वंटन, अफ्रीकी देशों के संगठन जैसे छोटे-छोटे समूहों अनुमति और द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों को भारत करने के के आर्थिक एवं सामरिक हितों को बढ़ावा देने के लिए अधिक महत्व दिया जा रहा है।

पिछले दो वर्षों में मोदी जी ने 42 से अधिक देशों का दौरा किया, जिनमें हर द्विपक्षीय वार्ता के केंद्र में आपसी आर्थिक विकास को रखा। उनकी पहल से भारत, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल में एकीकृत परिवहन नीति बनी। उत्तर- पूर्व से म्यांमार तक सड़क परियोजना प्रारंभ हुई जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र का तेजी से विकास होगा। द्विपक्षीय पहलकदमियों के तहत मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ वर्षों से लंबित भूमि सीमा विवाद समझौता और सामुद्रिक सीमा समझौता किया। अफगानिस्तान में भारत द्वारा समर्थित विकास परियोजनाओं को गति प्रदान की। भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह के निर्माण का त्रिपक्षीय समझौता (भारत-अफगानिस्तान-ईरान) आने वाले समय में बहुत महत्वपूर्ण होगा।

 भारत-जापान संबंध लगातार मजबूत हो रहा है। जापान हमारे आधारभूत ढांचे के निर्माण में विशेष सहयोगी है। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के साथ प्रगाढ़ संबंधों के चलते जर्मनी भारत की तकनीकी और पूंजीगत जरूरतें पूरी कर रहा है। जर्मनी का नदियों के संरक्षण का अनुभव हमारे गंगा सफाई अभियान के लिए आवश्यक है। फ्रांस के साथ साझा कार्यक्रम के  तहत हमने सौर ऊर्जा समझौता किया है, जिसका मुख्यालय गुरुग्राम, हरियाणा में बनाया गया है।

मोदी जी ने मध्य एशिया के साथ भी रिश्ते बेहतर किए हैं। उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कजाखिस्तान और ताजिकिस्तान जैसे देश हमारी ऊर्जा जरूरतों के लिए अहम हैं। अफ्रीकी देशों के साथ आदान-प्रदान बढ़ाने की दृष्टि से दिल्ली में पिछले साल इनका सम्मेलन आयोजित किया गया था, जो बेहद सफल रहा। मोदी जी ने एक दूरदर्शितापूर्ण कदम उठाते हुए अनिवासी भारतीयों को देश की विकास प्रक्रिया से जोड़ा।

मोदी जी की विदेश नीति के कई सार्थक आर्थिक परिणाम प्राप्त हो रहे हैं। 2015 में भारत विश्व में सबसे ज्यादा एफडीआई प्राप्त करने में सफल हुआ है, जिससे विकास की कई बाधाएं दूर हुई। हमें लगभग 200 अरब डॉलर निवेश का आश्वासन अलग-अलग देशों से प्राप्त हुआ है। 2014 में भारत का कुल आयात-निर्यात क सकल घरेलू उत्पाद का 46 प्रतिशत था, जिसे अगले दशक में दोगुना करने का लक्ष्य है। । 2019 तक हम विश्व के अग्रिम स्टार्टअप वाले . देश बन जाएंगे और व्यापार के क्षेत्र में सरलता – की दृष्टि से 50 वें पायदान के ऊपर आ जाएंगे। देश में 60 फीसदी डिजिटल पेनीटेशन हो । जाएगा। 2022 तक हमारे उद्योग जगत का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 15 पर्सेट से बढ़कर 25 पर्सेट हो जाएगा।

भ्रष्टाचार और काला धन

■ पहले जिन विषयों पर हम बचाव की मुद्रा में थे, उन पर चल रही विश्वस्तरीय चर्चाओं में मोदी जी की पहल साफ नजर आ रही है। जी-20 सम्मेलन में मोदी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भ्रष्टाचार और कालेधन पर जीरो टॉलरेंस होना चाहिए। हमे विनीय चोरों की शरणस्थली टैक्स हैवन समाप्त करने हैं और इनको बढ़ावा देने वाली विश्व की कठिन कर संरचना और बैंकिंग प्रणाली को पारदर्शी बनाना है। मोदी जी की ऐसी पहलकदमियों को पूरी दुनिया का समर्थन मिल रहा है।

(लेखक बीजेपी के आर्थिक मामलो के प्रवक्ता हैं)

अधिग्रहण पर भ्रामक प्रचार

भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर विपक्षी दलों की आपत्तियों को आधारहीन मान रहे हैं –

गोपाल कृष्ण अग्रवाल

भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक पर विपक्ष के तेवर काफी आक्रामक हो गए है। कई विपक्षी पार्टियों ने पैदल मार्च कर राष्ट्रपति को इसुके विरोध में ज्ञापन सौपा। उनका दावा है कि वर्तमान संशोधनों से इस विधेयक का स्वरूप किसान विरोधी हो जाएगा। जब भाजपा एक अध्यादेश के तहत संशोधन दिसंबर में लाई थी तो चारों तरफ इसका विरोध हुआ था। इसी को ध्यान में रखकर यह बताना आवश्यक है कि अध्यादेश लाना कानूनो आवश्यकता थी। भूमि अधिग्रहण विधेयक 2013 में एक क्लॉज था जिसके तहत 13 पूर्व कानूनों पर नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू नहीं होता। इसलिए उन 43 एक्ट के तहत अधिग्रहीत की गई भूमि पर मुआवजा पुराने रेट से ही किसानों को मिलता अगर उसको नए एक्ट के तहत 31 दिसंबर 2014 तक नहीं लाया जाता।

नए कानून के तहत किसानों को ज्यादा मुआवजा मिले. इसके लिए अध्यादेश लाना जरूरी हो गया था। यह किसानों के हित की बात थी। अध्यादेश के बाद जब संशोधन विधेयक संसद में लाया गया तो हर जगह इस पर तीखी प्रतिक्रियाएं हुई। हर जगह कहा गया कि यह संशोधन किसान विरोधी है जबकि स्थिति ऐसी नहीं है। संशोधन किसान विरोधी नाहीं है। पाटी नेतृत्व को लगा कि यह सब भ्रामक स्थितियों के कारण है। इसमें विरोधी दलों का दुष्प्रचार भी शामिल है। भाजपा ने महसूस किया कि किसानों से सीधी बात करनी चाहिए और उनकी जरूरतों पर चर्चा करनी चाहिए। किसान एवं किसान संगठनों से सीधी वार्ता एवं उनके सुझशवों को शामिल करने के लिए भाजपा ने छह सदस्यीय भूमि अधिग्रहण समिति का गठन किया। अलग-अलग संशोधनों पर उनके विचारों को शामिल कर ही रिपोर्ट देनी थी, जो उस समिति ने दी और सरकार ने इस संशोधन विधेयक में कुल नौ और संशोधन पेश करके लोकसभा में पारित करवाया।

रिपोर्ट में हमने कुछ समस्याएं बताई थी। आम तौर से आप देखेंगे तो किसान इस एक्ट के तहत भूमि अधिग्रहण के पक्ष में है। वे यह भी जानते हैं कि अगर इसमें सरकार थोड़ा संशोधन नहीं करती तो वर्तमान कानून में इतनी पेचीदगियां है कि कोई अधिग्रहण के लिए सामने नहीं आएगा और अगर यह प्रक्रिया नहीं होती है तो आज जो खेती का हाल है उससे जीविका चलाना मुश्किल है। भूमि अधिग्रहण एक्ट 2013 के बारे में सभी की मान्यता है कि यह किसानों के हित में है। यह जानना आवश्यक है कि उसमें भी सरकारी परियोजनाओं के लिए भू-स्वामी की सहमति का कत्र्याज नहीं है।

उसमें केवल दो प्रकार के अधिग्रहणों के लिए किसानों की सहमति की बात यो। पहला अगर सरकार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोजेक्ट के लिए भूमि अधिग्रहीत करती है तो ही 70 प्रतिशत भू स्वामियों से सहमति लेने की आवश्यकता थी और अगर सरकार किसी प्राइवेट परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहीत करती है तो उसमें 80 प्रतिशत भू-स्वामियों की सहमति की जरूरत थी। इसके अलावा अगर सरकार अपने लिए नौ क्षेत्रों की परियोजनाओं में किसी भूमि का अधिग्रहण करती तो उसमें सहमति वाला क्लॉज नहीं था। यह अधिग्रहण सरकारी प्रोजेक्ट के लिए है, जिसमें किसानों की रसहमति की आवश्यकता नाहीं थी। पुराने एक्ट के 9 क्षेत्र जिसमें सहमति जरूरी नहीं है इसमें अब केवल 5 और आवश्यक क्षेत्रों को जोड़ा है।

पूर्व में कुछ आवश्यकताओं के लिए भूमि अधिग्रह्नण पर सहमति नहीं चाहिए थी। पहली सुरक्षा संबंधी आवश्यकता के लिए। दूसरी आधारभूत ढांचे के लिए। तीसरी कृषि क्षेत्र की आवश्यकताओं के लिए। चौथी इंडस्ट्रीषल कोरिडोर के लिए। पांचवीं सामरिक प्रयोजनों या भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा अथवा राज्य पुलिस, जनररुधारण की सुरक्षा के महत्वपूर्ण कार्य के लिए। छठवीं भारत सरकार के के आर्थिक कार्य, कृषि प्रसंस्करण शैक्षणिक और अनुसंधान स्कीमों इत्यादि के लिए।

सातवी परियोजना से प्रभावित कुटुबों की पुनर्वास परियोजना के लिए। आठवीं विशेष वर्ग के लिए और गृह निर्माण परियोजना। नौवीं निर्धन, भूमिहीन या प्राकृतिक आपदा से प्रभावित व्यक्तियों के लिए। इसलिए स्पष्ट होना चाहिए कि सरकार ने अब इसमें पांच नई आवश्यकताओं को ही सम्मिलित किया है। बिना सहमति से भूमि अधिग्रहीत किए जाने वाले जो पांच वर्ग है उनमें इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, इडस्ट्रियल कोरिडोर जैसे बिंदुओं को और भी सौमित किया गया है। इसे सरकार ने माना कि इंडस्ट्रीयल कोरिडोर के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर से ज्यादा का क्षेत्र अधिग्रहीत नहीं किया जाएगा। निजी-सार्वजनिक भागीदारी वाली परियोजनाएं जिसमें भूमि का स्वामित्व तो सरकार के पास ही रहेगा उसमें भी सामाजिक ढांचागत परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहीत करने का अधिकार सरकार ने अपने पास से हटा लिया है। निजी अस्पताल और निजी शिक्षण संस्थाओं के लिए भूमि अधिग्रहीत नहीं की जाएगी।

कुछ लोगों का इस पर मतभेद है कि सरकार ने सामाजिक प्रभाव आकलन की आवश्यकता को भी हटाया है। यह धारणा सही नहीं। सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि परियोजना के लिए जितनी जमीन मांगी गई है, क्या वास्तव में उतनी जमीन की आवश्यकता है और इतनी जमीन ही अधिग्रहीत की जाए जितनी कम से कम आवश्यक हो। देश में जितनी बंजर भूमि है उसका सर्वेक्षण कर एक ‘लैंड बैंक’ बनाया जाए जिसमें परियोजनाओं को लगाने की छूट हो। इस सारी बंजर भूमि की जानकारी संलग्नक में दी जाए। अधिग्रहीत क्षेत्र में खेतिहर मजदूर के परिवार के कम से कम एक सदस्य को परियोजना में रोजगार देना आवश्यक किया गया है।

फिर भी अगर सबका विचार बनेगा तो सामाजिक प्रभाव आकलन का संशोधित रूप लागू किया जा सकता है। संशोधनों के तहत अब बिल में किसानों की ज्यादातर बात मान ली गई है। अब जो विपक्ष का मार्च है वह केवल राजनीति के तहत ही लगता है, क्योंकि जिला स्तर पर किसानों की शिकायतों के निस्तारण के लिए ट्रिब्यूनल का गठन करने की बात और उसकी सुनवाई भी जिला स्तर पर ही किए जाने का प्रावधान और साथ में राज्य सरकारों को इस संशोधन को लागू करने या न करने की स्वतंत्रता देकर केंद्र सरकार ने राज्यों को काफी स्वतंत्रता दे दी है। अब इस आदोलन की आवश्यकता नहीं है।

किसान जानते है कि अगर सरकार संशोधन नहीं करती तो वर्तमान कानून में इतनी पेचीद गियां हैं कि कोई अधिग्रहण के लिए सामने नहीं आएगा

(लेखक भाजपा की भूमि अधिग्रहण समिति के सदस्य हैं)

मोदी सरकार – आर्थिक एवंसामाजिक जन आंदोलन

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

मोदी सरकार अपने कार्यकाल के प्रथम चार वर्ष पूरे कर रही है। देश अगले साल आम चुनाव की तैयारी कर रहा मा है। यह आकलन करने का उपयुक्त समय है कि सरकार अपनी नीतियों और कार्यकमों को कितनी सफलता से लागू कर रही है और उसकी वैचारिक सोच समझने का। 2014 के आम चुनाव में श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा की जीत भारतीय राजनीति में एक युगांतकारी परिवर्तन था। भारत के मतदाताओं ने मोदी जी को आर्थिक विकास, प्रष्टाचार मुक्त सरकार और समावेशी विकास के लिए चुना था।

आर्थिक दर्शन :  मोदी सरकार वित्तीय रूप से जिम्मेदारी के साथ, सरकारी व्यय की दक्षता में विश्वास रखती है। हमारी नीतियों का जोर समाज के सशक्तिकरण पर हैं। यह विचार ‘अंत्योदय’ के द्वारा गरीबों के कल्याण के लिए है। तेज आर्थिक वृद्धि के साथ असमानता की चुनौती को समाप्त करने के लिए सरकार को जिन जिन साधनों का उपयोग किया जाना चाहिए उनका बेहिचक पालन कर रही है। यह यूपीए सरकार की सौरात की नीति से बिल्कुल विपरीत है।

इसके लिए सरकार के द्वारा बुनियादी ढांचे के खर्च के साथ समाज के आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के लिए आवंटन में वृद्धि की आवश्यकता थी। जीडीपी के अनुपात में कर को बढ़ाना और राजकोषीय घाटे को कम करने के लक्ष्य से सरकार ने जीएसटी (GST) लागू किया जो आजादी के बाद सबसे बड़ा कर सुधार है। जीएसटी के अन्तर्गत कम्प्यूटरीकृत प्रणाली के द्वारा टैक्स के दायरे को बढ़ाने के साथ पंजीकरण, फाइलिंग, असेसमेंट, और रिफंड सभी कार्यों को ऑनलाइन बिना किसी व्यक्तिगत हस्तक्षेप के आसानी से किया जा सकता है।

सरकार ने नीतिगत फैसला लेकर मुद्रास्फीति राजकोषीय घाटे को नियंत्रित किया। सरकार की योजनाओं का जैसे, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT), जन धन खाता, और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता आदि कदमों से भ्रष्टाचार पर रोक लगी। बेनामी (shell) कंपनियों का पंजीकरण रद्द करना, विदेशों से द्विपक्षीय कर संधि का पुनर्निर्देशन, इनकम डिस्क्लोजर स्कीम – (IDS) और बेनामी प्रॉपटर्टीज एक्ट भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। बैंकिंग चैनलों के माध्यम से व्यापार के लेनदेन को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि व्यापार के लेनदेन का पूरा लेखा जोखा पारदर्शी हो जाए।

इन्सॉल्वेसी एवं बैंकरप्सी कोड (IBC) पूंजी बाजार में बैंकों के लिए सबसे बड़े सुधारों में से एक है। इसके कारण डिफॉल्टर कंपनियों के प्रमोटरों को अपनी कंपनियों पर नियंत्रण खोने की वास्तविक चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। आईबीसी के तहत भूषण स्टील लिमिटेड के एनपीए का सफल निस्तारण बैंकिंग क्षेत्र के लिए एक बड़ी राहत ला रहा है। फायनेंसियल रिजोल्यूशन और डिपोजिट इंश्योरेंस (FRDI) विधेयक भी वित्तीय संस्थानों में पारदर्शिता ला सकता है।

यूपीए के समय भारत के भविष्य को लेकर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में निराशा का भाव था। वर्तमान सरकार की विदेश नीति छवि को दूर करने और वैश्विक समुदाय को आश्वस्त करने में सफल रही है कि भारत अपनी वास्तविक क्षमता हासिल करेगा। सरकार की नीतियों की सफलता देश में बढ़ते विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) से होती है।

सामाजिक दर्शन :  सामाजिक सोच में मोदी सरकार कार्यक्रमों और नीतियों के माध्यम से सामाजिक उत्थान के लिए बड़ी सोच, तेज गति और जन भागीदारी में विश्वास करती है। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत स्वच्छता अभियान गरीबों को सम्मान का जीवन प्रदान करना है, चाहे उनके धर्म, जाति या लिंग कोई भी हो ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ की पहल हमारी बेटियों को अवसर की समानता प्रदान करती है। सरकार ऐसे सभी कार्यकमों से जागरूकता और सार्वजनिक भागीदारी लाने में सफल रही है। तीन तलाक के मामले में सर्वोच्च न्यायालय में मोदी सरकार का रुख मुस्लिम महिलाओं के प्रति उनके सम्मान को दर्शाता है।

राजनीतिक दर्शन : ‘सबका साथ सब का विकास’ समाज के हर वर्ग के विकास के लिए काम करने का श्रेय मोदी सरकार को जाता है।

मोदी सरकार संकीर्ण चुनावी लाभ के लिए कोई काम नहीं करती। इसमें कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार पूरी तरह से संलग्न थी। 2004-2014 की अवधि के दौरान कांग्रेस सरकार ने चुनावी लाभ प्राप्त करने की उम्मीद से भारतीय समाज को बाटने की कोशिश के अंतर्गत ‘सांप्रदायिक हिंसा विधेयक’ को पारित करने के प्रयास किए। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) में केवल अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को ही छूट दी, जिसके परिणाम स्वरूप हिंदू धर्म से अलग होने के लिए विभिन्न संप्रदायो में प्रोत्साहन हो गया। यूपीए सरकार ने मुस्लिमों के लिए सच्चर कमेटी भी गठित की और कई सारे बदलाव करने की कोशिश की जिन्हें असंवैधानिक माना जाता था। कांग्रेस सरकार द्वारा ‘भगवा आतंकवाद’ की मनगढंत कहानी भी तैयार की गई. ताकि मुस्लिम वोट उसे मिले

मोदी सरकार का मानना है कि उत्तरदायित्व और सुशासन ही चुनावी सफलता सुनिश्चित करता है। सरकार की झूठी आलोचना पर ध्यान दिए बगैर, जनादेश का सम्मान करते हुए अपना काम करते रहना हमारा लक्ष्य है। पिछली सरकारों के विपरीत, मोदी सरकार का मानना है कि अच्छो आर्थिक नीति ही अच्छी राजनीति है। सरकार ने जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उच्च मानक तय किए और अपने मूल्यांकन आधार भी तैयार किए है और वह इस परीक्षा के लिए वह सदा तैयार है। 2014 से अब तक के राज्य चुनावों में बीजेपी की सफलता इसकी गवाही देती है कि मोदी सरकार केंद्र में अपने काम के और श्री अमित शाह जी के नेतृत्व में मजबूत संगठन के कारण राजनीतिक सफलताएं प्राप्त करती आ रही है।

लेखक भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता (आर्थिक मामले) है

विकास के लिए जरुरी है तेल

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत हमेशा से ही एक विवादित मुद्दा रहा है। एक तरफ घरेलू मुद्रास्फीति पर इसका बड़ा असर पड़ता है और दूसरी ओर यह केंद्र और राज्य के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। तेल पदार्थ के उपभोग की आवश्यकताओं के लिए 80 फीसद से अधिक हमारी आयात पर निर्भरता इसकी कीमतों को निर्धारित करने की हमारी क्षमता को काफी कमजोर करती है। एक डॉलर कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमत में वृद्धि से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत में रुपये 0.50 प्रति लीटर की बढ़ोतरी होती है और अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये की विनिमय दर में गिरावट से भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमत में रुपये 0.65 प्रति लीटर की वृद्धि होती है। इस प्रकार पेट्रोलियम पदार्थ के मूल्य निर्धारण में हम माहरी कारकों पर ही अधिक निर्भर है।

2004-08 के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं, पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम करने के लिए सरकारी सब्सिडी अपर्याप्त साबित हो रही थी। चूंकि यूपीए सरकार की वित्तीय स्थिति पहले से ही खराब थी, इसलिए वह नकद सब्सिडी के स्थान पर ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को तेल बांड जारी करने के वैकल्पिक का सहारा लिया। तेल बांड के मूल धन एवं ब्याज राशि भी सरकार द्वारा बजट प्रावधान में नहीं दधाए गए जिसकेपरिणामस्वरूप बढ़े हुए राजकोषीय घाटे का कृत्रिम मूल्यांकन हुआ। 2005-06 और 2009-10 के बीच सरकार द्वारा 1,42,202 करोड़ रुपये के तेल बांड जारी किए गए थे, जिनकी ब्याज दर 7.33 से 8.4 फीसद थी। इस राशि को ब्याज सहित भविष्य की सरकारों द्वारा 2024-25 तक चुकाना था।

इस खराब वित्तीय स्थिति ने आर्थिक स्तर पर ब्याज दरों में काफी बढ़ोतरी की और सामान्य जन के लिए महंगाई की मुद्रास्फीति को बढ़ा दिया। इस प्रकार लोग कृत्रिम रूप से कम कीमत पर पेट्रोल और डीजल प्राप्त तो कर रहे थे, लेकिन वे लगभग सभी चीजों के लिए अधिक कीमत भी चुका रहे थे। यूपीए सरकार द्वारा तैयार इस तंत्र ने सरकारी तेल कंपनियों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी।

दूसरा तर्क है कि भारत में पेट्रोलियम उत्पादों पर अत्यधिक कर लगाया गया है में और उन्हें बढ़ती कीमतों को निर्यात्रत करने के लिए नीचे लाया जाना चाहिए। पहले तो भारत के आर्थिक विकास, बेहतर जीवन के लिए , आधारभूत बुनियादी ढांचे का निर्माण और गरीब वर्गों और पिछड़े क्षेत्रों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए इस राजस्व की जरूरत है। दूसरा, पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र सरकार के करो का एक बड़ा हिस्सा; – मूल उत्पाद शुल्क का 42 फीसद राज्य सरकारों को दिया जाता है और शेष कर राशि 58 फीसद का भी 60 फीसद (यानी 34.8 फीसद) केंद्रीय प्रायोजित कल्याण योजनाओं पर खर्च के लिए प्रदेश सरकार को दिया जाता है। इस प्रकार राज्यों में स्थानांतरित कुल राशि 76.8 फीसद है। सरकारी अनुमान है कि केंद्र द्वारा पेट्रोलियम पदार्थ पर उत्पाद शुल्क में 1 रुपये की कटौती से उसका राजस्व संग्रह 14,000 करोड़ रुपये कम हो जाएगा।

केंद्र और राज्यों द्वारा एकत्रित कर पर पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि का असर स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए। केंद्र द्वारा लगाए गए कर, प्रति यूनिट के आधार पर तय किए गए है। इसलिए यदि खपत गिरती है तो केंद्रीय कर कम हो जाता है। राज्य, मूल्यानुसार कर लेते हैं जिससे पेट्रोलियम की कीमतों में वृद्धि के साथ, इससे कर की मात्रा बढ़ जाती है। इसलिए बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों के चलते पेट्रोलियम उत्पादों पर करों को केंद्र की तुलना में राज्यों को अधिक कम करना चाहिए।

हमें इस कठिन समस्या का दीर्घकालिक समाधान भी खोजना जरूरी है जिसके लिए हमें ऊर्जा खपत मिश्रण में पेट्रोलियम उत्पादों के हिस्से (34.48 फीसद, वर्ष 2015-16) को बदलना होगा। हमें कोयले और लिग्नाइट (46.28 फीसद) से अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने की जरूरत है, जल, सौर, हाइड्रो, परमाणु व अन्य नवीकरणीय स्रोतों (12.75 फीसद) से अधिक बिजली उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। मोदी सरकार इस दीर्घकालिक समाधान पर काम कर रही है और आने वाले वर्षों में जब इस स्रोतों से ऊर्जा मिलने लगेगी तो पेट्रोलियम उत्पादों के उपयोग में अपने आप गिरावट देखी जाएगी।

(भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता)

चुनाव आयोग नियुक्ति कानून जरुरी ?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

क्या सत्ता में बैठे लोगों को इतना भी अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे योग्य व्यक्तियों को चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं में नियुक्त करें?  चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाने वालों को हमारे चुनावों का इतिहास भी देखना चाहिए

चुनाव आयोग का स्वच्छंद होना इतना आसान नहीं

वैसे तो हर सिस्टम में सुथार की हमेशा गुंजाइश रहती है। लेकिन कोई बदलाव तब ही किया जाना चाहिए जब मौजूदा सिस्टम में कोई दोष नजर आ रहे हों। हमारे देश में चुनाव आयोग और इस जैसी दूसरी कई संस्थाओं का स्वतंत्र अस्तित्व है। यानी इनके कामकाज पर सस्कार का सीधे तौर पर कोई दखल नहीं है। चुनाव आयोग की बात करें तो उसे वित्तीय संसाधनों के लिए सरकार का मुंह नहीं ताकना पड़ता। आयोग के पास इसके लिए अलग से कोष होता है। इतना ही नहीं आयोग के पास व्यापक शक्तियां हैं जिससे वे चुनाव प्रयोजन के लिए किसी को भी निर्देशित व नियंत्रित कर सकता है। हमने यह भी देखा है कि चुनाव आयोग ने अपनी निष्पक्षता को सदैव प्रमाणित किया है। अब चुनाव आयुकों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति कानून बनाकर निश्चित प्रक्रिया से करने की बातें हो यहीं है। इससे ऐसा लगता है कि हमारा चुनाव आयोग निव्यध नहीं है और आयोग के सदस्य व मुख्य निर्वाचन आयुक्त की चयन प्रक्रिया पर राजनीतिक आधार पर हो रही है। सवाल यह है कि क्या सत्ता में बैठे लोगों को इतना भी अधिकार नहीं होना चाहिए कि वे योग्य व्यक्तियों का चयन कर चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं में नियुक करें? 

जो लोग चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहे है उनको हमारे चुनावों का इतिहास भी देखना चाहिए। टीएन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त रहने के दौरान हुए चुनाव सुधार आज भी लोगों की जुबान पर है। उनका भी चयन सरकार ने ही किया था। 

फिर, हमारे देश में चुनाव आयोग के कामकाज पर नजर रखने के लिए पहले ही कई तंत्र मौजूद हैं। इनमें राजनीतिक दलों व मीडिया के साथ-साथ सबसे ऊपर न्यायपालिका भी है। हमें आपातकाल के पहले का दौर भी याद करना चाहिए जब श्रीमती इंदिरा गांधी के निर्वाचन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अवैध करार दे दिया। तब भी चुनाव प्रक्रिया में गड़बड़ी के सवाल उठे थे। मेरा यह कहना है कि सरकारें भी निर्वाचन आयोग में नियुकियां श्रेष्हों में से सर्वश्रेष्ठ को छांटकर करती है। 

चुनाव आयोग के कामकाज में सस्कार का कहीं हस्तक्षेप होता हो ऐसा लगता नहीं है। उल्टे आयोग के पास सस्कारों को पाबंद करने की कई शक्तियां हैं। क्या कोई आज के दौर में यह सोच सकता है कि चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पथपातपूर्ण होगी? जवाब होगा, कदापि नहीं। जैसा मैंने पहले ही कहा जिस देश में जागरुक राजनीतिक दल, सचेत मीडिया व प्रभावी न्यायपालिका हो वहां चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं का स्वच्छंद होना इतना आसान नहीं जितनी कि चर्चाएं की जा रहीं है। रही बात, चुनाव आयोग में नियुक्तियां कानून बनाकर करने की, मेरा मानना है कि फिलहाल इसकी आवश्यकता नहीं है क्योंकि आयोग में काबिल लोग तैनात है।

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता,

देश और किसानों के हित में है नया विधेयक

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

सदस्य, भाजपा भूमि अधिग्रहण समिति ,

सरकार ने किसानों की हित को पूरी तरह संरक्षित करते हुए जटिलताओं को कम करने का काम किया है और इससे  सिर्फ विकास की प्रक्रिया तेज होगीबल्कि विकेंद्रीकरण होगा और ग्रामीण भारत विकास की प्रक्रिया में कदम ताल मिला कर चल सकेंगे

संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में देशहित में समय-समय प पर कानून बनाये जाते हैं, उनमें फेरबदल होता है. हमारे देश का विकास तभी संभव है, जब सभी राजनीतिक दल एक सकारात्मक बहस के द्वारा देश में बदलाव और विकास की आवश्यकता को। ध्यान में रखकर उसे आगे बढ़ायें और जो कानून भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को रोकने में सहायक। हो, उन्हें संसद में पास करायें. भूमि का सवाल और इसके अधिग्रहण से जुड़े मसले हमेशा से ही विवाद को जन्म देते रहे हैं. वर्तमान सरकार ने इसी विवाद को सुलइराने और अधिग्रहण की प्रक्रिया को चिना किसानों के हित को नुकसान पहुंचाये या यह भी कह सकते। हैं कि किसानों के हित में में भूमि अधिग्रहण बिल 2015 लेकर आयी. वर्ष 2013 के कानून में अध्यादेश के के जरिये कुछेक फेरबदल कर इसे विकास की प्रक्रिया के अनुकूल बनाने की कोशिश की.

विपक्ष किसानों की समस्याओं और उनके समाधान के प्रति तो सजग नहीं है और न ही आगे बढ़ना चाहता है, बल्कि किसानों की समस्याओं पर सिर्फ राजनीति की जा रही है. इस देश में किसानों की स्थिति क्या है, यह समाज के किसी भी तबके से छुपा हुआ नही है. किसान को उसके उत्पादन का पूरा मूल्य नहीं मिलता. न्यूनतम सर्मथन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा की जाती है, उसे प्राप्त करने के लिए भी किसान को स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है. प्राकृतिक आपदा से उसकी फसल नष्ट हो जाती है. उसे समय रहते मुआवजा नहीं मिलता. उसको खाद और बीज की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पाती. उसे पर्याप्त सब्सिडी नहीं मिल पाती, न ही उसके द्वारा उत्पादित अनाज को के संरक्षण की व्यवस्था है. उसे फसल बीमा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता. नतीजा सामने है. इस देश में ऐसा माहौल बनता जा रहा है कि खेती लाभकारी नहीं है और किसान खेती के बजाय अन्य पेशे की ओर भाग रहा है. इन समस्याओं का समाधान क्या है?

समाधान यही है कि खेती को लाभकारी बनायें. कृषि भूमि पर दवाव कम हो. किसानों की बुनियादी आवश्यकता पूरी हो इस देश की लगभग 66 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है जमीन के छोटे से टुकड़े पर परिवार के पूरे लोगों के भरण-पोषण का दबाव है 65 फीसदी आबादी देश के कुल घरेल घरेलू उत्पादन में मात्र 14 फीसदी का योगदान देती है जब तक यह भागीदारी 14 फीसदी से बढ़ कर 20-25 फीसदी तक नहीं पहुंचेगी, तबर तक नया रास्ता लिए वैकल्पिक रोजगार के संसाधन जुटाने होंगे ग्रामीण क्षेत्र में ही कुटीर उद्योग, लघु उद्योग, ग्राम आधारित उद्योग तैयार करना होगा ताकि लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले और पलायन में कमी हो यह तभी संभव हो पायेगा जब सरकार, विपक्ष और नागरिक संगठन किसानों की समस्या पर समग्रता में विचार करें नहीं निकलेगा. हमें 65 फीसदी आबादी के लिए वैकल्पिक रोजगार के संसाधन जुटाना होंगे ग्रामीण क्षेत्र में ही कुटीर उद्योग लघु उद्योग ग्राम आधारित उद्योग तैयार करना होगा ताकि लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार मिले और पलायन में कमी हो यह तभी संभव हो पाएगा जब सरकार विपक्ष और नागरिक संगठन किसने की समस्या पर समग्रता में विचार करें.

भूमि अधिग्रहण विधेयक के द्वारा सारी समस्याओं का समाधान हो, ऐसा नहीं है यह विधेयक समस्या के एक ही पक्ष का समाधान करता है इसका उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य है कि देश के आर्थिक ढांचे के विकास के लिए जो भूमि की आवश्यकता है, सरकार उसे अधिगृहीत कर सके सरकार जिसकी भूमि अधिगृहीत करती है, उसे उसका उचित मुआवजा मिले. यही नहीं, उस क्षेत्र में और भी जो काश्तकार हैं, जिनका रोजगार भूमि अधिग्रहण की वजह से छिनेगा, उनके वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था हो. उनके आवास, पुनर्स्थापन, और पुनर्व्यवस्थापन की व्यवस्था हो. सरकार जो भी भूमि अधिगृहीत करे, उसका उद्देश्य जनहित में हो. जब हम इन मापदंडों को सामने रखते हुए इस विधेयक को देखेंगे तो यह स्पष्ट होगा कि 2015 का भूमि अधिग्रहण विधेयक अपने उद्देश्यों में सफल हुआ कि नहीं. किसान मुआवजे की राशि से संतुष्ट है या नहीं. उनके पुनर्स्थापन और पुनर्व्यवस्थापन की व्यवस्था में तो कोई फेरबदल नहीं हुआ. किसानों की इसे लेकर कुछ समस्याएं थी, उन्होंने अपनी बात सरकार के सामने रखी और सरकार ने उन बातों को संशोधित बिल में समाहित भी किया.

कुछेक मामलों में बिल को बेहतर बनाया गया है. जैसे वर्ष 2013 के बिल में यह प्रावधान था कि भूमि अधिग्रहण के मामले में कोई विवाद होता है. उसे सिर्फ न्यायालय के जरिये ही निपटाया जा सकता है. जबकि इसमें यह भी व्यवस्था की गयी है कि इस समस्या के समाधान के लिए जिला स्तर पर ही ट्रिब्यूनल की स्थापना की जायेगी, जिसमें किसानों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे. इस तरह से विवादों का निपटारा जिले में ही संभव होगा इसका एक दूरगामी परिणाम देखने को मिल सकता है इसके साथ ही किसान यदि ट्रिब्यूनल के निपटारे से संतुष्ट नहीं है तो वह चाहे तो कोर्ट में भी जा सकता है जबकि ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि किसान को अदालत जाने का अधिकार नहीं है एक और भ्रम फैलाया जा रहा है कि सरकार ने सहमति की आवश्यकता को खत्म कर दिया है वर्ष 2013 के बिल में ऐसे 12 क्षेत्र थे जिसमें खंड ड 2 2 के अंतर्गत और शेड्यूल 4 में भी भी शामिल किया गया था उसमें 13 ऐसे कानून थे जिसमें सरकार लगभग 70 से 80 फीसदी भूमि अधिगृहीत कर सकती थी इसमें वर्तमान सरकार ने सिर्फ 5 क्षेत्र और जोड़े हैं, जिनमें सरकार जनहित और देश की आवश्यकता के लिए जरूरी मानती है. सुरक्षा, गरीबों को आवास, आधारभूत संरचना का विकास, ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण क्षेत्र में सिंचाई के साधान और इंडस्ट्रियल कॉरीडोर. बाकी चीजों के लिए सहमति की आवश्यकता अब भी बनी हुई है. कहा जा रहा है कि सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार इस नये बिल में खत्म किया गया है, जबकि संशोधित विधेयक में भी भारतीय दंड संहिता की धारा 197 के तहत ये प्रक्रिया सुनिश्चित की गयी है कि वे सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत दर्ज करा सकते हैं किसी प्रोजेक्ट के पांच वर्ष की अवधि में शुरू न होने पर किसानों को भूमि वापसी का अधिकार पहले के बिल में था इस नये विल में भी यह अधिकार है सिर्फ समयावधि में थोड़ा फेरबदल किया गया है कुछ प्रोजेक्ट ऐसे हैं, जिसमें पांच वर्ष से ज्यादा का समय लगता है, उनके अंतर्गत यदि समयावधि के भीतर प्रोजेक्ट नहीं लगता है, तो भूमि किसानों को वापस करना था. 

किसानों को पांच साल की के बाद भ बाद भी मुआवजा मिलेगा, यह प्रावधान अब भी है, सिर्फ यह फेरबदल किया गया है कि यदि मामले में अदालत ने स्थगनादेश दिया है तो इस काल के समय में पांच साल और जोड़ दिया जायेगा, इस समय के पूरे होने नये रेट से मुआवजा मिलेगा. इस बिल में भी है कि आदिवासी और वनवासी भूमि पर यह नया कानून लागू नहीं होगा, बल्कि आदिवासी अधिकार कानून ही लागू होगा, पीपीपी और इंडस्ट्रियल कॉरीडोर को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है यह कॉरीडोर राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे लाईन के दोनों ओर एक किलोमीटर के दायरे की भूमि ली जानी है. एक किलोमीटर के दायरे में कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं लग सकता जबकि पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप के लिए जिस जमीन का अधिग्रहण सरकार बिना सहमति के करेगी, उस प्रोजेक्ट का मालिकाना हक सरकार के पास होगा यदि सरकार भूमि का हस्तांतरण करना चाहती है तो उसे सहमति की जरूरत होगी.

इन सब बिदुओं पर गौर करेंगे, तो यही तथ्य सामने आता है कि सरकार ने किसानों की हित को पूरी तरह संरक्षित करते हुए जटिलताओं को कम करने का काम किया है और इससे न सिर्फ विकास की प्रक्रिया तेज होगी, बल्कि विकेंद्रीकरण होगा और ग्रामीण भारत विकास की प्रक्रिया में कदम ताल मिला कर चल सकेंगे.

नोटबंदी से इकॉनमी को नई दिशा

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

नोटबंदी ने देश के आर्थिक परिदृश्य में भारी हलचल पैदा कर दी है। आज इस पर बहस चल रही है कि क्या इससे भ्रष्टाचार और काले धन को समाप्त करने में मदद मिल सकेगी? इसका अर्थव्यवस्था पर तात्कालिक और दीर्घकालिक क्या असर पड़ेगा, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में। छोटे, लघु एवं मध्यम उद्योग इससे किस तरह प्रभावित होंगे? छोटे व्यापारियों, दुकानदारों और दैनिक मजदूरों आदि पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? और भी कई प्रश्न उठ रहे हैं।

सरकार देश के आर्थिक विकास के प्रति प्रतिबद्धता के साथ सामने आई थी। भ्रष्टाचार एवं काले धन पर रोक के लिए इस सरकार को जनादेश मिला था। इसलिए वर्तमान अर्थतंत्र के महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखकर सरकार अपनी रणनीति तैयार कर रही है।

आम आदमी के लिए

यह एक गलतफहमी है कि देश का हर नागरिक कर नहीं देता। प्रत्येक नागरिक अप्रत्यक्ष करों के रूप में टैक्स अदा कर रहा है, पर यदि इस ट्रांजैक्शन को समुचित रूप से खाते में न डाला जाए तो यह कर सरकार के खजाने में नहीं पहुंचता। इस व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए लेन-देन संबंधी ट्रांजैक्शन की बैंकिंग प्रणाली में रिकॉर्डिंग बहुत आवश्यक है। नोटबंदी का उद्देश्य इसी परिदृश्य को ठीक करना है। सरकार का मकसद है अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता लाकर सभी को विकास के समान अवसर प्रदान करना।

सत्ता में आने के दूसरे दिन ही सरकार ने सबसे पहले एसआईटी का गठन किया ताकि भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नए उपाय किए जा सकें। फिर विदेशी अवैध परिसंपदा घोषणा योजना को लागू किया गया ताकि विदेशों में जमा अवैध संपत्ति को रोका जा सके। साथ में मॉरीशस, साइप्रस और सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय कर संधियों के पुनर्निर्धारण द्वारा अधिकांश हवाला कारोबार रोकने के लिए कदम उठाया। अमेरिका के साथ वित्तीय सूचना साझा करने के लिए नई संधि की गई। उसी प्रकार ओईसीडी और जी-20 देशों के साथ वित्तीय सूचना का आदान-प्रदान करने के लिए मोदी जी ने नई पहल की। देश के अंदर के कालेधन को मुख्यधारा में लाने के लिए इनकम डिस्क्लोजर स्कीम (आईडीएस) लाई गई। भ्रष्टाचार रोकने के लिए बेनामी संपत्ति पर शिकंजा कसना जरूरी था। इसलिए बेनामी परिसंपत्ति कानूनों के प्रावधानों को पारित किया गया जो कि पिछले दस वर्षों से लंबित पड़े थे।

काले धन की लड़ाई में नोटबंदी एक बड़ी योजना का हिस्सा है। यह देश के सभी हिस्सों में आम आदमी के आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण जरिया है।सरकार विभिन्न योजनाओं के जरिए आने वाले समय में हमारी अर्थव्यवस्था में कई सुधार लाएगी। देश में भारी मात्रा में कैश करंसी के सर्कुलेशन के कारण आवास महंगे हो गए थे। आम आदमी का घर का सपना उसके हाथों से फिसलता जा रहा था। नोटबंदी से सभी प्रकार की महंगाई कम होगी। सरकार को अधिक संसाधन प्राप्त होंगे जिसका इस्तेमाल वह गरीबों और अल्प आय ग्रुपों को राहत देने के लिए तथा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे के विकास के लिए करेगी। नोटबंदी की बदौलत हम कम ब्याज दर वाली अर्थव्यवस्था की तरफ बढ़ रहे हैं।

और जीएसटी को कैसे भूल सकते हैं? जीएसटी से अप्रत्यक्ष करों को कम करने में मदद मिलेगी। इसके सुचारू कार्यान्वयन के लिए भी ढांचा तैयार हो गया है। नकली करंसी का चलन अर्थव्यवस्था से हटाया गया है जिससे आतंकवादी, माओवादी और लूट-खसोट जैसी आपराधिक गतिविधियों पर लगाम लगायी जा सके।

नोटबंदी से बैंकों के चालू खाते और बचत खातों में जमाधन की वृद्धि हुई है। इससे बैंकों के पास जमा धन की कीमत कम हो गई है परिणामस्वरूप बैकों ने ब्याज दर में कमी की है। ऑनलाइन भुगतान तथा मोबाइल बैंकिंग द्वारा जो ट्रांजैक्शन होता है उसकी लागत प्रति ट्रांजैक्शन काफी कम बैठती हैं। इसका फायदा अर्थव्यवस्था को तुरंत ही मिलेगा। ऑनलाइन भुगतान के लिए कई तरह की छूट दी जा रही हैं। लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर कर देने के कारण ही तीसरी तिमाही की कर रिपोर्ट में अप्रत्यक्ष कर संग्रह में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15 प्रतिशत की। अभी काले धन के संचालन के कारण अर्थव्यवस्था में कई विसंगतियां आ गई हैं जिन्हें दूर करने का प्रयास तभी पूर्ण सफल होगा जब लोग पुराने कालेधन को नई करंसी में कन्वर्ट न कर सकें। इसीलिए सरकार कुछ कठोर नियमावलियां ला रही है।

अगला रोडमैप तैयार

सरकार करंसी की आवाजाही की कमी से पूर्ण रूप से अवगत है, पर इसे जल्द सुलझाया जा रहा है। लोगों से आग्रह किया जा रहा है कि ऑनलाइन भुगतान और मोबाइल बैंकिंग को अपनाएं। इसके लिए जागरूकता पैदा की जाएगी। इन्हें अनिवार्य नहीं किया जाएगा। सरकार सिस्टम में कैश करंसी खत्म नहीं कर देगी, पर उसे जीडीपी के 8 से 9 प्रतिशत तक रखने का लक्ष्य है। सरकार इस बात से भली-भांति अवगत है कि करंसी की इस कमी का प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। इसीलिए उसके पास जीडीपी के विकास और अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने का अगला रोडमैप तैयार है। देश में बड़े आर्थिक सुधारों के लिए आवश्यक है कि हम डिजिटल अर्थव्यवस्था की नई क्रांति की तरफ बढ़ें।

लेखक बीजेपी के आर्थिक मामलो के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं।