Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the limit-login-attempts-reloaded domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/smwxex545a0i/public_html/gopalkrishnaagarwal/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the feeds-for-youtube domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/smwxex545a0i/public_html/gopalkrishnaagarwal/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function _load_textdomain_just_in_time was called incorrectly. Translation loading for the instagram-feed domain was triggered too early. This is usually an indicator for some code in the plugin or theme running too early. Translations should be loaded at the init action or later. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 6.7.0.) in /home/smwxex545a0i/public_html/gopalkrishnaagarwal/wp-includes/functions.php on line 6121

Notice: Function add_theme_support( 'html5' ) was called incorrectly. You need to pass an array of types. Please see Debugging in WordPress for more information. (This message was added in version 3.6.1.) in /home/smwxex545a0i/public_html/gopalkrishnaagarwal/wp-includes/functions.php on line 6121
Uncategorized – Page 3 – Gopal Krishna Agarwal

सरकार की कल्याणकारी घोषणाओं में बुराई क्या है ?

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

ऐसा तो नहीं है कि सरकार ने बजट पेश करने की परंपरागत तिथि में ऐन पहले बदलाव किया है। बजट को अब तक के समय से पहले पेश करने की यह प्रक्रिया काफी समय पहले से चल रही थी। इसके पीछे मंशा भी यह रही है कि बजट पेश होने के बाद एक अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के पहले सरकार की घोषणाओं के मुताबिक आवंटित बजट संबंधित विभागों के पास पहुंच जाए। अब तक यह होता था कि बजट पास करने की प्रक्रिया में देरी की वजह से आवंटित किया गई धनराशि समय पर नहीं पहुंच पाती थी। इसकी वजह से विकास योजनाओं के शुरू करने और इनके पूरे होने में देरी होती थी। अब एक फरवरी को ही बजट पेश होने पर सरकार के पास पर्याप्त समय मिल जाएगा। 

जैसा कि मैंने बताया कि यह प्रक्रिया काफी समय से चल रही थी और सरकार ने बजट को फरवरी के अंत के बजाए पहले ही पेश करने के बारे में चुनाव आयोग को पहले बता भी दिया था। चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा इसके बाद की है। वैसे भी जिस तरह से चरणों में मतदान कराया जा रहा है उसके चलते बीच में मतदान तिथियों का आना स्वाभाविक था। इसे किसी पार्टी विशेष को चुनाव में फायदा पहुंचाने की मंशा से जोड़कर देखा जाना उचित नहीं कहा जा सकता। होना तो यह चाहिए कि बजट को परंपरागत समय से पहले पेश करने का स्वागत किया जाता।

वैसे भी बजट पेश करना किसी भी सरकार का संवैधानिक दायित्व है और भारत सरकार इसी दायित्व की पालना कर रही है। रेल बजट को आम बजट में समायोजित करने का काम भी सरकार की इसी मंशा का हिस्सा है ताकि सभी को बजट घोषणाओं के हिसाब से विकास कार्य शुरू करने का पूरा समय मिल सके। एक बात यह भी है कि बजट कब पेश किया जाए यह सरकार का अधिकार है। चुनाव आयोग के क्षेत्राधिकार में सिर्फ समय पर और निष्पक्ष चुनाव कराना होता है। मतदान तिथियों के बीच बजट पेश होने का विपक्ष जो विरोध कर रहा है उसका कोई औचित्य नहीं है। 

कोई भी सरकार जनकल्याण के काम करने के लिए ही होती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि वह जनता के हितों से जुड़े हुए काम करती है। विपक्ष को डर है कि चुनाव में लोकलुभावन घोषणाओं के जरिए मतदाताओं को केन्द्र में सत्तारूढ़ पार्टी को फायदा मिल सकता है। 

सरकार वैसे कोई भी अच्छा काम इसलिए करती है ताकि जनता के बीच उसके कामकाज का संदेश बेहतर जाए। हां, बजट घोषणाओं का साइड इफैक्ट हो सकता है लेकिन इसमें भला गलत क्या है? क्या कुछ कठोर फैसलों को घोषणाएं करने का नुकसान नहीं हो सकता? जो लोग सरकार के इस जनहितकारी फैसले का विरोध कर रहे हैं वे सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध कर रहे हैं। उनके पास अपनी बात कहने का उनके पास कोई ठोस आधार नहीं है।

सरकार ने बजट को फरवरी के अंत के बजाए इस माह के शुरू में पेश करने के बारे में चुनाव आयोग को पहले ही बता भी दिया था। चुनाव आयोग ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा इसके बाद की है

आर्थिक मामलो पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता 

भाजपा के संकल्प पत्र पर गोपाल कृष्ण अग्रवाल जी का विचार

महज चुनावी चिंता नहीं, सशक्त राष्ट्र का रोडमैप

भारतीय जनता पार्टी द्वारा जारी संकल्प पत्र न केवल पार्टी की पांच साल की उपलब्धियों का लेखा-जोखा है बल्कि भारत को सशक्त राष्ट्र की हैसियत तक पहुंचाने का रोडमैप भी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे जारी किए जाने के मौके पर कहा कि 130 और कौशल करोड़ भारतीयों की शक्ति और के बलबूते और जन भागीदारी के साथ हमने अवरोधों को अवसरों में बदला है। जिन मोर्चों पर बीजेपी कामयाब रही है, उनमें सबसे प्रमुख है महंगाई दर जो पिछली सरकार में 9 फीसद से ऊपर थी और अभी 3 प्रतिशत से कम है। 

2019 के संकल्प पत्र में जिन विषयों पर सरकार ने सबसे ज्यादा जोर दिया है, उनमें सबसे ऊपर है आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति। इसी से जुड़ा हुआ मामला घुसपैठियों का है, जिसने देश में सांस्कृतिक और भाषाई परिवर्तन किया है। इसे रोकने के लिए चरणबद्ध तरीके से एनआरसी को देशभर में लागू किया जाएगा। बीजेपी ने अपने संकल्प में नागरिकता संशोधन बिल पर पुरानी प्रतिबद्धता जताई है। जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रीय हित के खिलाफ भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण वाले अनुच्छेद 35 ए को खत्म किया जाना और अनुच्छेद 370 पर कटिबद्धता भी इसका हिस्सा है।

प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना अपने आप में एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे विश्व स्तर पर सराहा जा रहा है। इसके तहत 10.74 करोड़ गरीब परिवारों को 5 लाख का वार्षिक स्वास्थ्य कवर उपलब्ध कराया गया है। इसके साथ ही 2022 तक डेढ़ लाख ‘स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र’ स्थापित करने की बात संकल्प पत्र में है। अभी 17,150 ‘स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र काम करने लगे हैं। देशभर के लोकसभा और विधानसभा के चुनावों को एक साथ कराए जाने के वायदे पर बीजेपी कायम है। सुपर कंप्यूटर, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और क्वांटम मिशन भारत को इंडस्ट्री 5.0 के लिए तैयार करेंगे जिससे सभी संसाधनों का सतत उपयोग किया जा सके। मिशन शक्ति के बाद अगला लक्ष्य गगनयान का प्रक्षेपण है।

संकल्प पत्र में तीन तलाक, निकाह हलाला जैसी प्रथाओं के उन्मूलन के लिए कानून पारित करने की बात भी है। – संविधान में प्रावधान के जरिये संसद और राज्य विधानसभाओं – में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए बीजेपी प्रतिबद्ध है। 

गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों के प्रतिशत को अगले 5 वर्षों में दहाई से इकाई में लाने का लक्ष्य रखा गया है। महिलाओं को रोजगार में ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने के लिए 10 प्रतिशत सरकारी खरीदारी सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों से की जाएगी, जिनकी 50 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएं होंगी। 2022 तक कच्चे घर में रहने वाले सभी लोगों को पक्का घर दिया जाएगा। जहां तक किसानों का प्रश्न है, उनको लेकर बीजेपी की एक व्यापक योजना है जिसमें सभी के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, छोटे और सीमांत किसानों के लिए पेंशन, कृषि-ग्रामीण क्षेत्र में 25 लाख करोड़ रुपये का नया निवेश और ब्याज मुक्त किसान क्रेडिट कार्ड ऋण शामिल हैं।

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सभी संभावनाओं की तलाश, भाषाओं और बोलियों के लिए कार्यबल, गंगा की निर्मलता और अविरलता, सबरीमाला को लेकर आस्था- विश्वास को संवैधानिक संरक्षण तथा योग के प्रचार-प्रसार के लिए संकल्पपत्र में प्रतिबद्धता दोहराई गई है। बीजेपी का यह भी मानना है कि बिना समान नागरिक संहिता के लैगिक समानता कायम नहीं की जा सकती और एक नीति निर्देशक सिद्धांत के रूप में यह संविधान में भी दर्ज है।

सुपर कंप्यूटर, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस और क्वांटम मिशन भारत को इंडस्ट्री की पांचवी पीढ़ी के लिए तैयार करेंगे

जी. के. अग्रवाल

विपक्ष की ओछी राजनीति

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

चुनाव के हालिया दौर में और उससे पहले भी बीते चार-पांच वर्षों से विपक्ष केंद्र सरकार पर सरकारी संस्थानों को कमजोर करने का आरोप लगाता रहा है जिसे निराधार कहा जा सकता है

लोकतांत्रिक व्यवस्था में विपक्ष की, शासक दल पर नियंत्रण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विपक्ष की जीवंतता समाज के राजनीतिक एवं लोकतांत्रिक विकास का मापदंड होती है। लोकतंत्र के उद्देश्यों को संसद, न्यायपालिका और चुनाव आयोग जैसे विभिन्न संस्थानों के माध्यम से ही पूरा किया जाता है। मजबूत, स्वतंत्र और विश्वसनीय संस्थानों के बलबूते हो लोकतांत्रिक व्यवस्था फलती-फूलती है। लोकतंत्र में विश्वास करने वालों को उन संस्थानों का पोषण करना होता है जिसका विकास कई पीढ़ियों के अथक परिश्रम से हुआ है। संस्था, महान नेताओं के पदचिन्हों तथा संस्थापकों के सामूहिक ज्ञान को संजोए रखती है। इन सभी संस्थाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी सामूहिक रूप से सरकार और विपक्ष दोनों की होती है।

हाल के समय में, विपश्च ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई नरेंद्र मोदी सरकार के प्रति अपनी नफरत के चलते इन संस्थानों को कमजोर करने की कोशिश की है। आजादी के बाद सबसे अधिक समय सत्ता में रही कांग्रेस ने विभिन्न संस्थानों में वामपंथी और अति- वामपंथी विचारधारा वाले लोगों को स्थान दिया। वरिष्ठ मंत्री अरुण जेटली सही कहते है कि कांग्रेस ने ‘व्यवस्था को भीतर से खत्म करने’ के मार्क्सवादी सिद्धांत का अनुपालन किया। चुनावी प्रक्रिया से जनप्रतिनिधि तो बदल जाते हैं, लेकिन ये संस्थागत व्यक्ति नहीं बदलते। वर्तमान में संस्थानों को अस्थिर करने वाले ऐसे सभी लोग एकजुट हो रहे हैं।

ऐतिहासिक रूप से भारत में हमेशा से ही एक मजबूत और मुखर विपक्ष रहा है। यहां तक कि कांग्रेस के चरमोत्कर्ष के दौरान भी यही स्थिति थी। उदाहरण के लिए, आपातकाल के समय लोकतंत्र की रक्षा के लिए विपश्न ने बेहद अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन वर्ष 2014 से सरकार पर लगातार हमले करते हुए विपक्ष इतना अंधा हो गया कि वह राजनीतिक पार्टी, सरकारी कार्यकारी और स्वतंत्र संस्थानों के बीच का अंतर करने में भी विफल रहा है। ये हमले केवल संस्थानों तक ही सीमित नहीं थे, वल्कि इन संस्थानों के प्रमुखों को भी निशाना बनाया गया है। उच्चतम न्यायालय पर विपक्ष का हमला सबसे ज्यादा निंदनीय है। विपक्षी दलों ने पिछले पांच वर्षों में कई मामलों में उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। 

जब भी फैसला उनके पक्ष में आया उन्होंने न्यायालय की प्रशंसा की, पर जब तो भी उनकी अर्जी खारिज की गई तो वे उच्चतम न्यायालय पर हमला करने के लिए एकजुट हो गए। न्यायाधीशों को खुलेआम डराने-धमकाने के प्रयास किए गए। भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पर सरकार के पक्ष में फैसले देने के आरोप लगाए गए। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों द्वारा 12 जनवरी 2018 को की गई संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस, जो न्यायालय के आंतरिक कामकाज से संबंधित थी, का उपयोग करते हुए विपक्ष ने ये दर्शाने की कोशिश की कि ये सभी न्यायाधीश भाजपा सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं।

भारतीय रिजर्व बैंक भी विपक्ष की चपेट में आ चुका है। जब यह स्पष्ट हो गया था कि गवर्नर के रूप में रघुराम राजन का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाएगा तो विपक्षी दलों ने दावा किया कि विदेशी निवेशक भारतीय वित्तीय बाजार से पैसा निकाल लेंगे और रुपये का तेजी से अवमूल्यन होगा। एक व्यक्ति को पूरे संस्थान से वड़ा बनाने की कोशिश की गई, सिर्फ इसलिए क्योंकि कुछ मुद्दों पर वह केंद्र सरकार के खिलाफ नजर आ रहे थे और वार-वार सार्वजनिक मंचों पर बोल रहे थे। जब नोटबंदी की घोषणा की गई तो यह आरोप लगाया गया कि सरकार ने आरबीआइ के अधिकारों को नजरअंदाज किया है। तत्कालीन आरवीआइ गवर्नर उर्जित पटेल पर भी आरोप लगाए गए थे।

देश के सशस्त्र बलों को भी विपश्च ने नहीं बख्शा जो सदैव अपने पेशेवर रवैये के लिए जाने जाते हैं। जब भारतीय सेना ने यह घोषणा की थी कि उसने उड़ी में हुए आतंकी हमले के जवाव में कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया है, तो विपश्व ने उसके लिए साक्ष्य मांगे, उन्हें चिंता थी कि कहीं सरकार को श्रेय न मिल जाए। वालाकोट में आतंकी शिविरों पर की गई एयर स्ट्राइक के बाद भी इसी तरह की प्रतिक्रियाएं आई। विपक्ष की प्रतिक्रियाएं और पड़ोसी देश की प्रतिक्रियाओं में काफी समानता थी।

चुनी हुई भाजपा सरकार को नीचा दिखाने के लिए पूरी चुनाव प्रक्रिया को अमान्य करार देने का सबसे बड़ा और भयावह हमला भारत के चुनाव आयोग और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर किया जा रहा है। चुनावों के निष्पक्ष संचालन के लिए भारतीय चुनाव आयोग की दुनिया भर में प्रशंसा होती है। लेकिन जब भी विपक्षी दल चुनाव हार जाते हैं तो जनता के फैसले को विनम्रता के साथ स्वीकार करने की बजाय, वे चुनाव आयोग पर दोष मढ़ने लगते हैं और ईवीएम के हैक किए जाने का राग अलापने लगते हैं। 

चुनाव आयोग ने उनके सवालों का जवाब देने की पूरी कोशिश की, यहां तक कि ईवीएम को हैक करने की खुली चुनौती भी दी, लेकिन विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ। जब इन पार्टियों से वह पूछा जाता है कि केंद्र में पहली वार भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार कैसे बन गई जबकि पूर्ववर्ती सरकार कांग्रेस के नेतृत्व वाली थी या फिर 2015 में दिल्ली और बिहार में हुए विधानसभा चुनावों और हाल ही में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा कैसे हार गई तो इन नेताओं के पास कोई जवाब नहीं है।

जरा सोचिए कि एक दुश्मन देश और उसके मीडिया द्वारा ये कहना कि भारत में हुए चुनावों में बड़े पैमाने पर धांधली हुई, इसका अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत सरकार की साख पर कैसा प्रभाव पड़ेगा। विपक्ष को यह समझना होगा कि वह देश की स्वतंत्र संस्थाओं को कमजोर करके लोकतंत्र में अपनी सही भूमिका नहीं निभा सकता। कुछ चीजों को रोजमर्रा की छोटी राजनीति से दूर रखना चाहिए। देश के महत्वपूर्ण संस्थानों को कमजोर करके उन्हें अल्पकालिक राजनीतिक लाभ तो हो सकता है, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टि से देखें तो वे हम सबके लिए विनाशकारी सावित होगा।

सेना से ज्यादा आतंकवादियों के मानवाधिकार की चिंता

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

अपने चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस ने कहा है कि अगर वह सत्ता में आती है तो जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (आफ्रया) पर मानवाधिकारों के मद्देनजर पुनर्विचार करेगी। शायद कांग्रेस को सेना से ज्यादा आतंकवादियों के मानवाधिकारों की चिंता है। कांग्रेस जी. के. अग्रवाल यह नजरअंदाज कर रही है कि इसका कितना बुरा असर सेना के जवानों के कार्य पर पड़ेगा जो वहां आतंकवादियों के साथ हर रोज सीधा मुकाबला करते हैं। इस कानून में कोई भी छेड़छाड़ पाकिस्तान की तरफ से चलाए जा रहे छग्य युद्ध में सेना को कमजोर ही करेगी। कांग्रेस का आतंकवादियों, अलगाववादियों और देशविरोधी शक्तियों के प्रति हमेशा से सहानुभूतिपूर्ण रवैया रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने टाडा हटाया, बाद की कांग्रेस सरकार द्वारा पोटा हटाया गया।

इसी तरह कांग्रेस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए से राजद्रोह के प्रावधान को हटाए जाने का वादा देश के अंदर चुन की तरह लगी राष्ट्रविरोधी ताकतों को समर्थन और मजबूती देना है। इससे माओवाद और उन्हें समर्थन देने वाले छद्म प्रबुद्ध वर्ग के विरुद्ध संघर्ष कमजोर होगा। सीआरपीसी के तहत भी अभियोगाधीन आपराधिक मामलों में जमानत की बात इसी श्रृंखला की कड़ी है। अपने घोषणापत्र में कांग्रेस कोई मजबूत आर्थिक नीति नहीं प्रस्तुत कर पाई है। जिस ‘न्याय’ योजना की बात वह कह रही है, उसके लिए जरूरी संसाधन जुटाने को लेकर उसके पास न तो जवाब है और न ही भविष्य की कोई रणनीति। कांग्रेस 72000 करोड़ रुपये की आर्थिक योजना के लिए मध्यवर्ग पर कर का और ज्यादा बोझ डालने की बात कर रही है। इसके लिए वह कितनी अन्य योजनाओं को निरस्त करेगी, यह अभी नहीं बता रही। इसका बोझ प्रदेश सरकारें भी वहन करेगी। बिना उनकी सहमति के केंद्र यह घोषणा नहीं कर सकता।

किसानों की समस्याओं को लेकर क्या रोडमैप है, कुछ नहीं बताया गया। अलग किसान बजट की घोषणा करने से क्या होगा, स्पष्ट नहीं है। वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) को लेकर भी कांग्रेस एक रेट की बात करके आम जनता पर बोझ ही बढ़ाएगी। क्या शराब और खाद्यान्न पर एक ही टैक्स होना चाहिए? बीजेपी ने जीएसटी के अंतर्गत आम

जनता की आवश्यकता की वस्तुओं पर टैक्स दर काफी कम की है जो कांग्रेस बदलना चाहती है। 22 लाख सरकारी नौकरियों की संख्या बेमानी है। केंद्र में केवल 4 लाख नौकरियां है और सरकारी उद्यमों में केंद्र किसी को रखवा नहीं सकता। रोजगार की समस्या का यह कोई समाधान नहीं है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि वह न्यायपालिका व्यवस्था में व्यापक बदलाव करेगी। उसकी योजना है कि एक बिल लाकर सुप्रीम कोर्ट को संवैधानिक अदालत में बदल दिया जाए और एक अपीलीय अदालत का निर्माण करके हाई कोटों में फैसला पा चुके मामलों को सुना जाए। ऐसी व्यवस्था का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि सारे मामले अंततः सुप्रीम कोर्ट में ही आकर समाप्त होंगे। इस नए प्रावधान से न्याय प्रक्रिया लंबी और जटिल हो जाएगी।

कांग्रेस हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए न्यायिक आयोग स्थापित करना चाहती है। ऐसा कोई भी प्रावधान न्यायपालिका में हस्तक्षेप जैसा होगा। कांग्रेस कानून बदलेगी और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से कहेगी कि पत्रकारों के लिए कोड ऑफ कंडक्ट लाए। यह पत्रकारों की स्वंतत्रता पर सीधा प्रहार होगा। बिना व्यापक विमर्श के यह खतरनाक होगा। आज हजारों अखबार, न्यूज चैनल और वेबसाइट हैं जिनकी पहुंच वैश्विक है। बहुत सी चीजें सेल्फ रेगुलेटरी होती जा रही हैं। कांग्रेस को समझना चाहिए कि लोकतंत्र में मीडिया की स्वतंत्रता कितनी महत्वपूर्ण होती है। पार्टी को उन चीजों से दूर रहने की जरूरत है जो देश हित में नहीं हैं।

जिसन्याययोजना की बात कांग्रेस कह रही है, उसके लिए संसाधन जुटाने उसके पास कोई को लेकर जवाब नहीं है

किसानों को गुमराह करने में बिचौलियों का हाथ

पिछले 15 दिनों से कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन कर रहे किसान अपनी मांग पर अडिग है। पांच बार सरकार की ओर से वार्ता की गई मगर वार्ता विफल रही। किसानों के आंदोलन से नोएडा दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, रोहतक, बहादुरगढ़ आदि इलाकों के उन लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जो नौकरी करने के लिए यहां से आते जाते हैं। किसान आंदोलन कब खत्म होगा और किसानों की मांग मानी जाएगी या नहीं और इस कानून को लेकर जय हिंद जनाब ने भाजपा प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल से बातचीत की।

 जय हिंद जनाब को गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने बताया कि सरकार किसानों के कई प्रस्तावों पर अमल करने को तैयार है लेकिन जिस तरह कि किसान अब मांग कर रहे हैं। वह सब मांगे मानना उचित नहीं है। श्री अग्रवाल ने कहा कि किसान आंदोलन में बिचौलिए यानी आढ़ती आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। सबसे ज्यादा नुकसान बिचौलियों का हो रहा है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए सरकार ने कृषि कानून बनाए हैं। मगर इस कानून का असर किसानों पर उतना नहीं पड़ रहा जितना बिचौलियों पर पड़ रहा है। 

श्री अग्रवाल ने कहा कि हरियाणा और पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां गेहूं और चावल का 90 प्रतिशत होती है। एमएसपी पर यह दोनों फसल खरीदी जाती हैं। सरकार एमएसपी पर 4 लाख करोड रुपए खरीदने के लिए निर्धारित करती है। जिसका 60 प्रतिशत इन दोनों राज्यों में ही जाता है जबकि शेष 40 प्रतिशत पर पूरे देश में सरकार खरीददारी करती है। उन्होंने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर जो भ्रम फैलाया जा रहा है।

 वहीं है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों की जमीन किसी भी निजी व्यक्ति के हाथ में नहीं जाएगी। बल्कि प्राइवेट कंपनियों के लिए कई ऐसे क्लोज लगाए गए हैं। जिससे किसानों को ही फायदा होगा। एग्रीमेंट से किसान बाहर जा सकता है और कंपनी उसको किसी भी तरह से फोर्स नहीं कर सकती। एसडीएम और डीएम स्तर पर सुनवाई का क्लोज सरकार हटाने को तैयार है। उन्होंने कहा कि जो किसान अपने राज्य से बाहर वाली मंडियों में अपनी उपज बेचना चाहते हैं। उनके लिए मंडी टैक्स माफ का भी प्रावधान है। श्री अग्रवाल ने दावा किया कि अघोषित रूप से भारतीयों ने विभिन्न किसानों को करीब 40 हजार करोड रुपए का ऋण दिया हुआ है। जिसकी मजबूरी के चलते किसान आंदोलन कर रहा है। उन्होंने कहा कि देश भर में 7 हजार मंडियां है जबकि पूरे देश में इस वक्त 30 हजार मंडियों की जरूरत है। 

सरकार ने किसानों के लिए वैकल्पिक मंडी का रास्ता खुला है ताकि बिचौलियों का कब्जा ना हो सके। उन्होंने उदाहरण दिया कि धान 1950 रुपए है इस कीमत पर 15 प्रतिशत किसानों से राज्य सरकार एमएसपी पर खरीद कर दिए जबकि एमएसपी से नीचे आरती खरीदते हैं और फिर अपना मुनाफा लेकर सरकार को ही बेच देते हैं।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल, राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

साहसी सरकार कर रही है व्यापक मूलभूत सुधार

मौजूदा केंद्र सरकार यदि यथास्थितिवाद में विश्वास रखती तो पिछली सरकारों की तरह झूठे वादे कर बरगलाती रहती

ये तीन कृषि बिल सिर्फ सामान्य बदलाव भर नहीं हैं। इस क्षेत्र में व्यापक सुधार के लिए सुविचारित कार्ययोजना को मूर्त रूप देने की पहल हैं। जब भी किसी अहम क्षेत्र में ऐसे बड़े सुधार होते हैं, सरकार को अपनी राजनीतिक पूंजी दांव पर लगानी होती है। देश के अन्नदाताओं के लिए यह साहस भरा कदम मोदी सरकार ने उठाया है। सरकार यथास्थितिवाद में विश्वास रखती तो पहले की तरह झूठे आश्वासन दे कर बरगलाती रहती 70 वर्षों से चली आ रही किसानों की दुर्दशा को दूर करने के लिए यह बड़ा कदम उठाया गया है।

इन आंदोलनकारियों के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि वे किसान नहीं है या फिर वे राष्ट्रविरोधी है, लेकिन उनके विरोध को गंभीरता से देख कर उसका निष्पक्ष आकलन करने की जरूरत है। इसमें मुख्यतः पंजाब-हरियाणा तथा सीमित रूप से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान व आढ़ती परोक्ष-अपरोक्ष रूप से शामिल है। इनकी धान और गेहूं की लगभग 90 फीसदी खरीद सरकारी एजेंसियों से हो जाती है। राष्ट्रीय परिदृश्य देखें तो ये अपेक्षाकृत संपन्न किसान हैं और आढ़तिए इनके साथ है। इन्हें लग रहा है कि नई व्यवस्था में इनका अपना हित प्रभावित होगा, इसलिए ये संघर्ष कर रहे हैं और यथास्थिति बनाए रखने में दिलचस्पी ले रहे हैं। लेकिन देश के अन्य भागों में बाजार व्यवस्था चरमराई हुई है। 

सरकार के लिए बाकी 70 से 80 फीसदी किसान इनसे कम अहमियत नहीं रखते, इसलिए बाजार की यथास्थिति को बदलना चाहती है। और भी फसल है और दूसरे किसान हैं, उनके लिए सुधार बहुत जरूरी है। आंदोलन कर रहे वर्ग की बातों को भी सरकार ने पूरे ध्यान से सुना और महत्त्व दिया है। सरकार ने अब तक पांच चक्र की बातचीत की है। इस दौरान किसानों के कई सुझावों को रजामंदी भी दी है। नए बिल में बनने वाली प्राइवेट मंडियों के लिए भी समान कर प्रावधान जोड़ने को तैयार हुई। विवाद की स्थिति में एसडीएम के पास जाने की व्यवस्था इसलिए की गई थी कि समयबद्ध तरीके से उन्हें न्याय मिल सके। लेकिन मांग के मुताबिक सामान्य अदालती व्यवस्था में जाने के प्रावधान को लागू करने को तैयार हुई है। जो कह रहे हैं कि कोरोना के बीच बिना चर्चा किए ये बिल लाने की क्या जरूरत थी, वे स्थिति की गंभीरता और सचाई को पूरी तरह झुठला रहे है। 

पिछले 20 साल से देश में इन पर चर्चा हुई है, वैकल्पिक बाजारों की सिफारिशें आई हैं। राज्यों के कृषि मंत्रियों की समिति ने भी सलाह दी है। संसद की कृषि संबंधी समिति की 62वीं रिपोर्ट में भी यही कहा गया। समिति ने पूरे देश में घूम कर मशविरा किया। तब जाकर जून में यह अध्यादेश आया, फिर संसद में पारित किया गया। किसानों के नाम पर की जा रही राजनीति को भी समझना चाहिए। जिस कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में लिखा कि एपीएमसी (मंडी समितियों) को समाप्त कर देंगे, वह किसानों को मंडियों और एमएसपी के खत्म होने का डर दिखा कर बरगला रही है, एमएसपी का भ्रम फैलाया जा रहा है, जिसका बिल से कोई संबंध नहीं है। किसानों की आय जैसे बेहद महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर पिछले चार-पांच वर्षों में पहली बार इतनी गंभीरता से कदम उठाए गए हैं। 

इस सरकार ने समझा है कि जब तक किसानों के लिए यह काम लाभदायक नहीं बना दिया जाता, तब तक देश के संतुलित और सतत विकास को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। यह पिछले 20 साल में बनी सहमति है, सरकार अपनी कठिनाइयां बढ़ा कर भी देश के लिए जरूरी इस सुधार को लागू करने को कृत संकल्प है।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

6 हजार करोड़ की सालाना चोट खाने वाले 25 हजार आढ़तियों ने किसानों को भड़काया

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मानना है कि दिल्ली सीमा पर किसानों के आंदोलन के पीछे पंजाब के आढ़तियों, बिचौलियों और कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक संगठनों का हाथ है। भाजपा के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल का दावा है कि नए कानून के कारण सालाना छह हजार करोड़ रुपये के कमीशन पर चोट पहुंचता देख 25 हजार आढ़तियों ने आम किसानों को भड़काना शुरू कर दिया। जबकि नए बने तीनों कानून किसानों के हित में हैं। भाजपा को उम्मीद है कि सही जानकारी मिलने पर किसानों के बीच नए कानूनों को लेकर गलतफहमी दूर हो जाएगी। केंद्र सरकार और भाजपा के बीच आर्थिक मामलों में सेतु की भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने आईएएनएस से कहा कि पिछले 20 साल का इतिहास देखेंगे तो पता चलेगा कि कई कमेटियों ने किसानों के लिए वैकल्पिक बाजार बनाने पर जोर दिया है। स्वामीनाथन कमेटी हो, पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी हो या फिर शांता कुमार समिति की रिपोर्ट, सभी ने इस दिशा में व्यापक बदलाव की जरूरत बताई थी। 

गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने किसानों के आंदोलन के पीछे आढ़तियों और राजनीतिक दलों की सांठगांठ बताई। उन्होंने कहा, पंजाब में 25 हजार आढ़ती हैं। नए कानून से सालाना छह हजार करोड़ रुपये की कमाई पर चोट पड़ी है। साढ़े आठ प्रतिशत उनका कमीशन होता था। जिस तरह से नए कानूनों से एमएसपी और मंडी व्यवस्था खत्म होने की झूठी बात जोड़कर आंदोलन किया जा रहा है, उसमें राजनीति की बू आती है। मुझे लगता है कि आढ़तियों और उनसे मिले हुए कांग्रेस जैसे राजनीतिक दलों ने किसानों को भड़काने का काम किया है। 

शत प्रतिशत एमएसपी की खरीद के सवाल पर उन्होंने कहा कि शांता कुमार की रिपोर्ट उठाकर देखेंगे तो पहले कुल उत्पादन का सिर्फ छह प्रतिशत फसल ही सरकार खरीदती थी। अब मोदी सरकार में सरकारी खरीद बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई है। यानी कि मोदी सरकार किसानों के कल्याण के लिए बेहतर कर रही है। एमएसपी को लेकर भ्रम फैला रहे लोगों को समझना होगा कि केंद्र सरकार सिर्फ न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जबकि राज्य सरकारें खरीद करती है। राज्य सरकारें आर्थिक रूप से इतनी मजबूत नहीं हैं कि शत प्रतिशत खरीद वो कर पाएं और न ही उनके पास भंडारण की उचित क्षमता है। 

सरकार लिखित रूप में एमएसपी का आश्वासन क्यों नहीं देती? इस सवाल के जवाब में गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा कि जब नए कानून का एमएसपी से कोई संबंध नहीं है, तो फिर लिखकर देने की बात ही नहीं है। एमएसपी अलग विषय है, उस पर दूसरे स्तर से चर्चा हो सकती है। सरकार पहले ही कह चुकी है कि एमएसपी की मौजूदा व्यवस्था खत्म नहीं हो रही है। जैसे 70 साल से व्यवस्था चली आ रही है, वैसे ही चलती रहेगी। मंडियों की व्यवस्था भी पहले की तरह होगी। आज की डेट में एपीएमसी की मोनोपाली (एकाधिकार) किसानों की सबसे बड़ी समस्या है। आढ़तिये लोकल मंडी में किसानों को फसल बेचने के लिए मजबूर करते हैं। क्योंकि उन्हें साढ़े आठ प्रतिशत कमीशन मिलता है। जबकि नए कानून से जहां लाभ मिलेगा, किसान वहीं फसल बेच सकेंगे। 

कानून को लेकर किसान संगठनों से संवाद की कमी के कारण क्या यह आंदोलन खड़ा हो गया? इस पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि सरकार ने व्यापक विचार विमर्श किया है। कई रिपोर्ट की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए और किसान संगठनों से बातचीत के बाद कृषि कानूनों से जुड़े ऑर्डिनेंस जून में आए थे। किसी को समस्या थी तो जून में भी बात उठा सकते थे। अब नवंबर के अंत में आंदोलन हो रहा है। इससे पता चलता है कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है। स्टोरेज की लिमिट में छूट के पीछे क्या कारपोरेट को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है? इस सवाल पर भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि देश में वेयर हाउसिंग की क्षमता कम है। उसके लिए स्टोरेज कैपेसिटी बनानी है। यह तभी होगा जब प्राइवेट इन्वेस्टमेंट आएगा। भारत में आवश्यक वस्तु अधिनियम (एसेंशियल कमोडिटीज एक्ट) 1955 में बना था, तब देश में अनाज की कमी थी। आज देश में अनाज सरप्लस है। ऐसे मे स्टोरेज की लिमिट में रियायत देकर प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देने की कोशिश है।

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा।

खेती के लिए जरुरी सुधारों का विरोध बेतुका

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

बात महज असहमति की नहीं है, खेती से जुड़े नए कानूनों पर विपक्ष झूठी सूचनाएं फैलाने में लग गया है

2020-21 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की गिरावट एक गंभीर मुद्दा है लेकिन जीडीपी के आंकड़े यह भी दशति है कि कृषि क्षेत्र में है, जो अच्छा संकेत है। कोविड-19 समस्या के परिणामों से निपटने के लिए मोदी सरकार ने मई 2020 में ‘आत्मनिर्भर भारत’ पैकेज की घोषणा की थी। इनमें से अधिकांश उपाय अल्पकालिक चुनौतियों का सामना करने से संबंधित थे, लेकिन कृषि और औद्योगिक क्षेत्र आदि में सुधार के कुछ बड़े उपायों की भी घोषणा की गई थी। इन घोषणाओं के अनुरूप केंद्र सरकार 5 जून 2020 को तीन अध्यादेश लाई। वे थे कृषि उपज, वाणिज्य और व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश, मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता अध्यादेश और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश। ये अध्यादेश पूर्ववर्ती सरकार के किसान कल्याण के नाम पर गलत हस्तक्षेप को रोकने के लिए थे।

■ खेती में बढ़े निवेश

कृषि क्षेत्र में आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने के लिए खुदरा वितरण, वेयरहाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज और परिवहन आवाजाही आदि में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। यह बड़ा निवेश अकेले निजी क्षेत्र से ही आ सकता है। लेकिन जब तक हम भंडारण की सीमा नहीं हटाते हैं, निजी निवेश और वैल्यू ऐडिशन नहीं होगा। भारतीय कृषि कम उपज से प्रचुरता की ओर बढ़ रही है। इसलिए वर्ष 1955 से लागू आवश्यक वस्तुओं के कानून पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। कृषि क्षेत्र के ये सुधार व्यापक अर्थव्यवस्था के विकास के लिए वर्ष 1991 के समय के मूलभूत बदलावों के समान ही हैं। सभी प्रमुख अर्थशाध्वियों और कृषि विशेषज्ञों द्वारा इनका स्वागत भी किया गया है।

इन सभी सुधारों की आवश्यकता लंबे समय महसूस की जा रही थी। ‘राज्य मंत्रियों की समिति द्वारा कृषि बाजार सुधारों को लागू करने के लिए कृषि विपणन प्रणाली वाली अपनी रिपोर्ट में इन सभी आवश्यकताओं पर जोर दिया गया था। कृषि पर संसदीय स्थायी समिति की 62वीं रिपोर्ट में भी यही बात दोहराई गई थी। चूंकि ये रिपोर्ट राजनीतिक पक्षपात में नहीं फंसी थी, इसलिए इन्हें लगभग सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हुआ था। अब हालांकि संसद में ये बिल पास कर दिए गए हैं और राष्ट्रपति ने भी इन पर अपनी मुहर लगा दी है लेकिन कांग्रेस, कुछ अन्य राजनीतिक दल और उनसे जुड़े किसान और विचौलियों से संबंधित संगठन अपने नुकसान को ध्यान में रख कर कोलाहल मचा रहे हैं।

विपक्ष द्वारा लगातार गलत सूचनाएं और स्म अफवाहें फैलाई जा रही हैं। यह बहुत ही दुखद है कि इस प्रकार किसानों के हित को अनदेखा करके कहा जा रहा है कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म कर देगी जबकि सरकार द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि एमएसपी सिस्टम को हटाने का कोई सवाल ही नहीं है। संसद में इस वर्ष की एमएसपी की बढ़ी हुई खरीद की दरों का ऐलान भी कर दिया गया है। मंडी अधिनियम भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यों के दायरे में आते हैं इसलिए केंद्र को इसमें एकतरफा संशोधन करने का कोई अधिकार ही नहीं है। केवल अंतर-राज्यीय कमोडिटी ट्रेड ही केंद्र के अधीन आता है। इसलिए मौजूदा मंडी संरचना को समाप्त नहीं किया जा सकता है। वर्तमान में स्थानीय मंडियों के माध्यम से संबंधित राज्य सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीद किया जाने वाला प्रशासनिक तंत्र अपनी जगह बरकरार है और वह यथावत चलता रहेगा।

हालांकि एमएसपी का उद्देश्य किसानों को न्यूनतम मूल्य प्रदान करना था, लेकिन समय के साथ यह मूल्य बाजार में अधिकतम मूल्य बन गया। अब कृषि उपज के लिए व्यापार और वाणिज्य की वैकल्पिक बाजार सुविधा प्रदान करने के लिए नए अधिनियम के साथ कई नई संभावनाएं बन रही हैं। निजी बाजारों से प्रतिस्पर्धा के कारण मंडियां अब किसानों की उपज खरीद का एकाधिकार नहीं कर सकेंगी। जहां तक किसानों के अपनी जमीन कॉरपोरेट के हाथों खोने का सवाल है तो मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा, 2020 अधिनियम के तहत किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) समझौता, कृषि उत्पाद की खरीद का समझौता है, किसान की भूमि के बारे में किया गया कोई समझौता नहीं। 

इस अधिनियम में किसानों के भूमि मालिकाने को लेकर सुरक्षा के कई नए उपाय भी हैं। उपज के नुकसान के मामले में किसानों को ही बीमा क्षतिपूर्ति का लाभ मिलेगा और उनकी भूमि पर उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को उनके लिए ही संरक्षित किया गया है। अधिनियम के अंदर विवाद समाधान की प्रक्रिया को भी जिला स्तर पर जिला बोर्ड के माध्यम से निर्धारित किया गया है। किसानों को न्याय पाने के लिए एक अदालत से दूसरी अदालत में अब चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। 

2014 के बाद से जिम्मेदार विपक्ष का अभाव भारतीय राजनीति का एक हिस्सा बनता जा रहा है। मोदी सरकार जो कुछ भी करती है उसका हर हाल में विरोध कांग्रेस पार्टी को करना ही है, यह सोच पूर्णतः गलत है। ध्यान रहे, जब कांग्रेस सत्ता में थी तो इन नीतियों की उसने खुद पैरवी की थी। कांग्रेस पार्टी ने अपने 2014 और 2019 के चुनाव घोषणापत्र में इन उपायों का जनता से वादा भी किया था।

 ■ किसानों का हित सर्वोपरि

सभी तीन अधिनियम कृषि बाजारों के सुधार के लिए ही है। नए और राष्ट्रीय बाजारों के विकल्प देना, बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी निवेश को आकर्षित करना, बेहतर मूल्य के निर्धारण में मदद करना, सूचना प्रसार तंत्र स्थापित करना और किसानों को उनकी उपज के लिए उचित मूल्य आश्वासन प्रदान करना इनका लक्ष्य है। प्रधानमंत्री मोदी किसानों के हित के लिए दिन-रात प्रयासरत हैं, और सही सूचना जन-जन तक पहुंचाने के लिए भारतीय जनता पार्टी सतत कार्य कर रही है। किसी को भी इस बात को लेकर कोई दुविधा नहीं रहनी चाहिए कि हमारी सरकार के लिए किसानों का हित ही सर्वोपरि है।

मंडी अधिनियम राज्य सूची में द्वारा आते हैं। केंद्र को इसमें एकतरफा संस् संशोधन करने का अधिकार नहीं है। एमएसपी पर खरीदी से जुड़ा दाख तंत्र यथावत चलता रहेगा

(लेखक बीजेपी के आर्थिक मामलों के राष्ट्रीय प्रवक्ता है

कोरोना वायरस का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव एवं निदान

कोरोना वायरस से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था को एक ज़बरदस्त झटका लगा है। वैश्विक स्तर पर यूरोप, चीन और अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर सभी देशों की अर्थव्यवस्था आधारित है। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हो गई है। और आने वाले दौर में तीसरे पायदान पर पहुँचने का लक्ष्य रख कर बढ़ रही है।

कोरोना कि आपदा ने पहले चीन को झटका दिया। पर चूंकि वहां प्रजातंत्र नहीं है और सरकार का जबरदस्त डंडा चलता है तो उसने डंडे के जोर पर इस महामारी को रोक लिया । जैसी जानकारी मिल रही है वहाँ आर्थिक गतिविधि पुनः चालू हो रही है जिसके कारण बड़ी आशंका पूरे विश्व में फैल रही है कि सही समय पर इस त्रासदी की सूचना विश्व स्तर पर चीन से नहीं मिली।

यूरोप खासकर इटली और स्पेन में महामारी फैल गई है और वहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई है और ये देश अपने आप को विवश महसूस कर रहे हैं। यूरोप और अमेरिका की स्वास्थय सेवाएं बहुत अच्छी मानी जाती है। अमेरिका में अभी देखना पड़ेगा कि वह कैसे और कितना इससे जूझने में सफल होता है। भारत में यह महामारी अपना पाँव पसार रही है और आगे कितना हम इसको संभालने में सफल होते हैं यह आने वाला समय बताएगा।

अगले 20 दिन महत्वपूर्ण है कि हम महामारी को जन भागीदारी और प्रबल इच्छा शक्ति से कितना रोक लेते हैं, नहीं तो भारत की अर्थव्यवस्था को भी यह हिलाकर रख देगा। भारत की अर्थव्यवस्था में कई चुनौतियां पहले से मौजूद थी। वैश्विक स्तर पर पहले से ही चीन और अमेरिका का औद्योगिक संघर्ष चल रहा था। वैश्वीकरण के दौर के विपरीत सभी देश अपने आंतरिक आर्थिक विकास पर ज़्यादा ध्यान दे रहे थे। भारत ने उस चुनौती को ध्यान में रखकर RCEP से अपने को अलग किया, फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) आसीयान देशों के साथ समझौतों पर पुनः विचार की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी थी। और बजट 2020 में कस्टम ड्यूटी एवं इंर्पोट टियूटी कई सामानों पर बढ़ा दी थी। जिससे हमारे छोटे और मझौली व्यापारियों को बडी राहत मिली है।

भारत सरकार जिस तरह से अब सोच रही है उस पर जल्द ही और आगे बढ़ेगी तो हमारे मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों को बड़ा सहारा मिलेगा। पेट्रोलियम पदार्थो के दाम भी विश्व में काफी गिर गए हैं इससे भारत को बडी राजकोशीय राहत मिल रही है। अभी आवश्यकता है कि जो हमारे दिहाड़ी मज़दूर हैं, रेहड़ी लगाने वाले लोग हैं और अनऑर्गेनाइज सैक्टर के कर्मचारी है इनको आने वाले एक / दो महीने में सीधे धन की उपलब्धता को पूरा करने की। यह आवश्यक है कि उन्हें उनका वेतन मिलता रहे और उनके दैनिक कमाई की चरमराई व्यवस्था जब तक पुनः चालू नहीं होती तब तक उनके खाते में पैसे पहुँचते रहे। सरकार ने सभी कर्मचारियों को वेतन दिलवाने का निर्णय कर दिया है।

कॉर्पोरेट और व्यापार जगत के लोगों को भी इन दो तीन महीने की उथल-पुथल में सहयोग की आवश्यक्ता है जिसको ध्यान में रखके वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि हम एक राहत पैकेज लेकर आ सकते हैं जिसका ऐलान जल्द होगा।

वित्तमंत्री ने अपने मीडिया ब्रीफिंग में कुछ निम्नलिखित महत्वपूर्ण घोषणाएं की थी जिससे हमारे आर्थिक जगत को तुरंत राहत मिलेगी। उन्होने घोषणा की कि हम statutory and regulatory compliance से जुड़ी एक विस्तृत योजना लेकर आए है ताकि कंपनियों को इंकम टैक्स या IBC कोड से जुड़े नियमों को पालन करने में कोई दिक्कत ना हो। फाइनेंशियल ईयर 2018-19 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख 30 जून होगी। देर से रिटर्न फाइल करने पर लगने वाला ब्याज भी घटा दिया गया है। पहले इस पर 12 फीसदी ब्याज देना पड़ता था जिसे घटाकर अब 9 फीसदी कर दिया गया है।

आधार से पैन कार्ड लिंक करने की आखिरी तारीख, विवाद से विश्वास (Vivaad se Vishwas) स्कीम की अंतिम तिथि , GST रिटर्न फाइल करने की आखिरी तारीख, सबका विश्वास (Sabka Vishwas) स्कीम की डेडलाइन और कस्टम्स क्लीयरेंस से जुड़े मामलों का निपटान सभी की तारीख 30 जून 2020 कर दी गई है।

 कोरोना वायरस से जुड़े कार्यों में अब CSR का फंड दिया जा सकता है। इसकी भी धोषणा वित्तमंत्री ने की थी। कंपनियों की बोर्ड मीटिंग को अगली दो तिमाहियों तक 60 दिनों की और मोहलत दी गई है। Applicability of The Companies Auditors’ Report Order 2020 जो पहले फिस्कल ईयर 2019-20 में आने वाली थी अब इसे फिस्कल ईयर 2020-21 के लिए टाल दिया गया है। किसी कंपनी के डायरेक्टर को देश में कम से कम 182 दिन रहना पड़ता था लेकिन अब वो ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

ऐसी अनेक घोषणाएं वित्त मंत्री के द्वारा कि गई उससे व्यापार जगत को राहत मिलेगी।

प्रधानमंत्री ने अपने कल के संदेश में 21 दिन के कर्फ्यू की घोषणा की है, और सभी प्रकार की ज़रूरी आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने का आश्वासन भी दिया है। इसलिए आवश्यक है कि इन 21 दिनों की विकट परिस्थिति में हम अपना धैर्य नहीं खोएं। इस समस्या के निदान के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और सामुहिक प्रयास की बहुत आवश्यकता है । हमें विश्वास है कि इस समस्या के निदान के साथ हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होकर उभरेगी।

 गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

राष्ट्रीय प्रवक्ता, आर्थिक प्रकोष्ठ, भाजपा

मोदी सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल ई-रुपी से जनता को सीधा लाभ

गोपाल कृष्ण अग्रवाल,

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ई-रुपी वाउचर लॉन्च किया। यह मोदी सरकार की एक महत्वपूर्ण पहल है। इस प्रणाली को लागू करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह लक्षित, पारदर्शी और रिसाव मुक्त वितरण में मदद करेगा। ई-रुपी इस बात का प्रतीक है कि लोगों के जीवन को प्रौद्योगिकी से जोड़कर भारत कैसे प्रगति कर रहा है।’

 2014 में जब श्री नरेन्द्र मोदी शासन में आए तो सरकारी वितरण तंत्र में बड़े पैमाने पर रिसाव हुआ करता था। सरकार की सामाजिक कल्याण योजनाएं लाभार्थियों तक कुशलतापूर्वक नहीं पहुंच रही थीं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण कार्य, मोदीजी के लिए सामाजिक कल्याण लाभ के लिए वितरण तंत्र को सुव्यवस्थित करना था, जिसमें भ्रष्टाचार और अन्य रिसावों के लिए स्थान नहीं रहे। प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की उन्होंने ऐतिहासिक पहल की थी। जन-धन खाते खोलना, इसे आधार कार्ड से जोड़ना और ऑनलाइन फंड ट्रांसफर के लिए डिजिटल तकनीकों के उपयोग के द्वारा वित्तीय समावेशन को लागू किया गया, जिसे ‘जैम ट्रिनिटी’ कहा जाता है। इसे विश्व बैंक द्वारा दुनिया भर में सबसे प्रभावी वित्तीय समावेशन कार्यक्रमों में से एक के रूप में सराहा गया है। ऑनलाइन भुगतान तकनीक जैसे भीम और #99 ऐप आदि के लिए अधिक से अधिक एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) विकसित किए गए और उनके माध्यम से सीधे लाभार्थी के खाते में धनराशि स्थानांतरित की गई।

आम आदमी के जीवन में क्रांति लाने के लिए वित्तीय तकनीकों का उपयोग करना प्रधानमंत्री की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। प्रधानमंत्री फिनटेक समाधानों के अंतर्गत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और डेटा मैनेजमेंट का उपयोग करके नवाचार लागू करने के लिए स्टार्ट-अप्स को निरंतर प्रोत्साहित कर रहे हैं

आम आदमी के जीवन में क्रांति लाने के लिए वित्तीय तकनीकों का उपयोग करना प्रधानमंत्री की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। प्रधानमंत्री फिनटेक समाधानों के अंतर्गत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और डेटा मैनेजमेंट का उपयोग करके नवाचार लागू करने के लिए स्टार्ट-अप्स को निरंतर प्रोत्साहित कर रहे हैं। टैक्स रियायतों के माध्यम से स्टार्ट-अप परिस्थितिकी तंत्र बनाना और फिर उसके लिए निवेश योग्य धन उपलब्ध कराने के साथ, सरकार का एक स्पष्ट रोडमैप है। अटल टिंकरिंग लैब और अटल इनोवेशन मिशन के माध्यम से अकादमिक और उद्योगों को जोड़ने के लिए भी योजनाएं बनायी गयी हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों द्वारा नवाचार प्रोत्साहन के लिए हैकाथॉन का आयोजन और फिर उसके उत्पादन के लिए पूर्ण सहयोग करना और समूची पेटेंट व्यवस्था को सुदृढ़ करना सरकार की नई पहल है। फिनटेक नवाचारों और समाधानों ने भारत में वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में अत्यधिक क्रांति ला दी है। वर्ष 2021 में 32 यूनिकॉर्न (एक बिलियन डॉलर मूल्य की स्टार्ट-अप कंपनी) में से नौ वित्तीय प्रौद्योगिकी कंपनियां हैं।

इस डिजिटल परिवर्तन ने अमीर और गरीब, शहरी और ग्रामीण आबादी के बीच तकनीकी दूरी को कम करने में मदद की है। पंचायत स्तर पर इंटरनेट कनेक्टिविटी का एकीकृत तंत्र बनाया गया जा रहा है। डिजिटल इंडिया प्लेटफॉर्म के तहत भी कंप्यूटर सेवा केंद्र (सीएससी) स्थापित कर, लोगों के जीवन को सुगमता प्रदान की जा रही है। तकनीक का इस्तेमाल करते हुए मोदी सरकार ‘न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन’ के अपने वादे को पूरा कर रही है। प्रौद्योगिकी समाधानों ने सरकारी निर्णय और उसके कार्यान्वयन में मानवीय हस्तक्षेप और व्यक्तिपरकता को काफी हद तक कम कर दिया, जिससे सभी को अपने दैनिक जीवन-यापन में सुविधा मिली है। सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए ऑनलाइन समाधान मानवीय हस्तक्षेप को कम करता है और इसमें भ्रष्टाचार की संभावनाएं भी कम होती हैं।

 डिजिटल इंडिया पहल जैसे जीएसटी का कार्यान्वयन, वर्चुअल ई-मूल्यांकन, सरकारी ई-मार्केट (जीईएम) प्लेटफॉर्म, डिजिटल लॉकर, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी), ऑनलाइन भुगतान, भीम ऐप और #99, ई-मंडियां, 59 मिनट में पीएसबी लोन, स्टार्ट-अप इकोसिस्टम, आरोग्य सेतु और कोविन ऐप, टोल प्लाजा पर फास्ट टैग सुविधा और अब ई-रुपी वाउचर ने आम लोगों के जीवन को बदल दिया है। प्रधानमंत्री मोदी, सरकारी योजनाओं को कुशलतापूर्वक लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करने में सफल रहे हैं, चाहे वह लक्षित व्यक्तियों तक सामाजिक लाभ पहुंचाना हो, या व्यवसाय करने में आसानी (ईओडीबी) या फिर लाभ वितरण और शासन के लिए भ्रष्टाचार मुक्त तंत्र का निर्माण करना हो। अकेले जुलाई महीने में, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) ने रिकॉर्ड 324 करोड़ लेनदेन संसाधित किए है। अगर राशि की बात करे तो इस प्लेटफॉर्म से 6.06 लाख करोड़ रुपये के लेनदेन को संसाधित किया जा चुका है।

 हमारी सरकार 300 सरकारी योजनाओं के अंतर्गत लक्षित लाभार्थियों को 17.5 लाख करोड़ रुपये की धनराशि हस्तांतरित करने में सफल रही है और इस राशि को गलत हाथों में जाने से रोककर 1.75 लाख करोड़ रुपये की बचत करने में भी सफल रही है। इस साल सरकार ने न्यूनतम मूल्य पर खाद्यान्न खरीद कर किसानों के खाते में 86 हजार करोड़ रुपये ट्रांसफर किए हैं। सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत भी बड़ी राशि सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर की है। ई-रुपी वाउचर की यह नई पहल लक्षित व्यक्ति तक फंड ट्रांसफर करने के लिए एक अभिनव साधन बनकर उभरेगी। जब सरकार ई-रुपी वाउचर जारी करती है, तो वह सुनिश्चित करती है कि फंड का उपयोग केवल निश्चित उद्देश्य के लिए ही किया जा सकता है। यह व्यक्ति-विशिष्ट भुगतान प्रणाली प्री-पेड उपहार-वाउचर के रूप में कार्य करती है, निर्धारित सेवा केंद्रों पर भुनाया जा सकता है।

योजना सेवाओं के प्रायोजकों, लाभार्थियों और सेवा प्रदाताओं को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म पर साथ ले आयेगी। एक बार जब यह वाउचर किसी निजी संगठनों या व्यक्ति द्वारा जारी किया जाएगा, तो उसे इस बात का भरोसा होगा कि इस निधि का उपयोग उनके निर्देशानुसार ही होगा। इसका उपयोग कॉरपोरेट्स द्वारा (सीएसआर) गतिविधियों के लिए, धर्मार्थ संस्थानों द्वारा दान और थर्ड पार्टी भुगतान के लिए भी किया जा सकता है।

सरकार ‘पुश मॉडल’ पर काम कर रही है, जहां योजनाओं की घोषणा की जाती है, लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और सरकारी अधिकारियों को उनके कार्यान्वयन के लिए जिम्मेदार बनाया जाता है, न कि पुल मॉडल पर जहां नागरिकों को लाभ लेने के लिए सरकारी विभागों के पीछे भागना पड़ता है। 115 आकांक्षी जिलों की पहचान करना और उनके अन्तर्गत जिला प्रशासन द्वारा यह सुनिश्चित करना की लाभार्थियों को सरकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त हो, यह एकीकृत समाधान इसका एक उदाहरण है। श्री नरेन्द्र मोदी का यह प्रयास रहा है कि किसी भी समस्या की पहचान की जाए, इसके समाधान के लिए एक तकनीकी तंत्र तैयार किया जाए, सभी हितधारकों को उससे जोड़ा जाए और इस तंत्र के कुशल कार्यान्वयन और मूल्यांकन के लिए परफॉर्मेंस मैट्रिक्स स्थापित किया जाए ताकी जवाबदेही सुनिश्चित हो।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)